TECHNICAL ANALYSIS IN HINDI | TECHNICAL ANALYSIS KYA HAIN AUR KAISE KARE ? 2023

TECHNICAL ANALYSIS

शेयर मार्केट में किसी भी सेगमेंट में ट्रेडिंग करने से पहले TECHNICAL ANALYSIS ( तकनीकि विश्लेषण ) करके मार्केट की दिशा का सही अनुमान लगाया जाता हैं। आपने ट्रेडिंग के लिए जो भी स्टॉक या इंडेक्स का चयन किया हैं, उसका ट्रेंड अप साइड हैं, या डाउन साइड या फिर साइड वेज चल रहा हैं, ये समझने के लिए TECHNICAL CHART पर आप इंडीकेटर का प्रयोग करके मार्केट की दिशा का सही और सटीक अंदाजा लगा सकते हैं।

TECHNICAL ANALYSIS

TECHNICAL ANALYSIS क्या होता हैं ?

जब किसी भी स्टॉक या इंडेक्स को लेकर ट्रेडिंग करने से पहले TECHNICAL CHART पर उस स्टॉक या इंडेक्स की प्राइज में आज से पहले जो बदलाव ( PERFORMANCE ) हुए थे, उस मार्केट प्राइस डाटा को देखकर कैंडल स्टिक और इंडिकेटर का उपयोग करके आगे मार्केट का क्या TREND रहे सकता हैं ,आगे मार्केट किस दिशा में जा सकता हैं, मार्केट प्राइस कहा पर SUPPORT और RESISTANCE ले सकता हैं, इस बात का अनुमान लगाने की प्रक्रिया को TECHNICAL ANALYSIS या CHART ANALYSIS कहते हैं।

TECHNICAL ANALYSIS एक ऐसी पद्धति होती है, जिसमे TECHNICAL CHART पर मार्केट प्राइज में हुए पिछले बदलाव को देखकर आगे मार्केट की क्या चाल हो सकती हैं, इसे INDICATOR और कुछ TOOLS का उपयोग कर के समझा जाता हैं।

टेक्निकल चार्ट पर कुछ INDICATOR और TOOLS के उपयोग से TECHNICAL ANALYSIS करके सभी प्रकार के ट्रेडिंग सेगमेंट में ट्रेडिंग किए जा सकती हैं। और मार्केट से अच्छे प्रॉफिट निकालने का प्रयास किया जा सकता हैं।

अब हम समझते हैं की वो कोन से इंडीकेटर और टूल्स हैं, जिसका उपयोग TECHNICAL ANALYSIS ( तकनीकी विश्लेषण ) के लिए सबसे ज्यादा किया जाता हैं। लेकीन उससे पहले हमें CANDLE STICK को समझना बेहद जरूरी होगा।

TECHNICAL ANALYSIS करते समय 14 प्रकार के कैंडल चार्ट मिल जाते हैं। लेकिन उनमें से जो अधिक लोकप्रिय  चार्ट हैं, उन्हें हम अच्छे से समझेंगे।

  • CANDLE STICK CHART :-  टेक्निकल चार्ट पर ये एक सबसे लोकप्रिय कैंडल मानी जाती हैं। इस CANDLE प्रकार में मार्केट प्राइज में चल रहे बदलाव अनुसार अलग अलग प्रकार में कैंडल का स्वरूप बदलते रहता हैं। जैसे की MORO BOJU ,HAMMER , INVERTED HAMMAR , DOJI , GRAVE STONE DOJI , DRAGAN FLY DOJI , HANGING MAN , SOOTING STAR , MORNING STAR , BULLISH INGULFING , BEARISH INGULFING , WHITE SHOULDER , BLACK SHOULDER आदि. ऐसे बहुत सारी कैंडल बनती हैं। इन हर एक कैंडल के बनने के बाद मार्केट ट्रेंड में बदलाव होता हैं। इस लिए CANDLE STICK का उपयोग करके अच्छे से TECHNICAL ANALYSIS किया जा सकता हैं।  
  • HEIKIN ASHI CHART :- ये भी एक सबसे पॉपुलर कैंडल चार्ट है। ये कैंडल चार्ट समझने में बहुत ही आसान होता हैं। इस चार्ट को देखकर आसानी से उस समय चल रहे मार्केट ट्रेंड का अनुमान लगाया जाता हैं। क्यू की ये कैंडल जब मार्केट प्राइस गिर रहा होता हैं , तब लाल रंग का कैंडल बनाता हैं। और जब मार्केट प्राइस बढ़ रहा होता हैं, तो हरे रंग के कैंडल बनाते जाता हैं। इस के कारण मार्केट ट्रेंड अप साइड हैं या डाउन साइड इसका आसानी से अनुमान लग जाता हैं। इस लिए ये एक लोकप्रिय कैंडल मानी जाती हैं।  
  • HOLLOW  CHART :- इस प्रकार की कैंडल का   टेक्निकल चार्ट पर ट्रेडर्स द्वारा थोड़ा बहुत उपयोग किया जाता हैं। ये कैंडल चार्ट बिल्कुल CANDLE STICK चार्ट जैसे ही होता हैं , बस इस चार्ट में हरे रंग की कैंडल HOLLOW ( खोखला ) दिखाई देती हैं। बाकी CANDLE STICK चार्ट की तुलना में HOLLOW कैंडल चार्ट में कुछ और बदलाव नहीं होते हैं। तो इसलिए समझने में HOLLOW कैंडल चार्ट भी आसान होता हैं।
  • BAR CHART :- इस प्रकार की कैंडल मे जैसे मार्केट प्राइस में बदलाव होते रहता हैं, वैसे वैसे चार्ट पर कैंडल की जगह पतला बार बनते जाता हैं। ये TECHNICAL CHART पर बहुत ही अस्पष्ट दिखाई देता हैं। और नए ट्रेडर्स या सब के लिए समझने में कठिन होता हैं। इस कारण इस कैंडल प्रकार का TECHNICAL ANALYSIS करते समय बहुत कम उपयोग होता हैं।
  • LINE CHART :- टेक्निकल चार्ट पर ट्रेंड का अनुमान लगाने के लिए इस LINE CHART का उपयोग बहुत ही कम होता हैं। क्यू की LINE CHART का प्रयोग करके TECHNICAL ANALYSIS करना बहुत मुश्किल काम होता हैं। लाइन चार्ट मार्केट के चल रहे प्राइस के HIGH अनुसार टेक्निकल चार्ट पर लाइन बनाते रहता हैं। इस से मार्केट ट्रेंड का हमे अंदाजा लगाना आसान नहीं होता हैं। इस लिए लाइन चार्ट का टेक्निकल एनालिसिस करने के लिए बहुत कम प्रयोग होता हैं।
  • AREA CHART :- टेक्निकल एनालिसिस करते समय ट्रेंड का अनुमान लगाने के लिए AREA CHART का भी बहुत ही कम उपयोग होता हैं। क्यू की AREA CHART से TECHNICAL ANALYSIS करना बड़ा मुश्किल काम होता हैं। AREA CHART में लाइन चार्ट के जैसे ही चल रहे मार्केट प्राइस के HIGH अनुसार चार्ट पर लाइन की जगह डार्क एरिया बनते जाता हैं। इससे हम मार्केट ट्रेंड का अनुमान सही से नहीं लगा सकते । इस कारण एरिया चार्ट का ज्यादातर  टेक्निकल एनालिसिस करने के लिए उपयोग नहीं किया जाता।
TECHNICAL ANALYSIS / CHART TYPE

इस तरह और भी 8 प्रकार के चार्ट होते हैं , जैसे की COLOUMNS CHART, BASE LINE CHART , RANKO CHART, HIGH LOW CHART, LINE BREAK CHART, KEGI CHART, POINT & FIGURE CHART और RANGE CHART ये सब मिलाके 14 कैंडल चार्ट होते हैं, 

मगर जिन कैंडल चार्ट का TECHNICAL ANALYSIS में सबसे अधिक उपयोग होता हैं और जो समझने में सबसे आसान हैं, ऐसे 6 कैंडल चार्ट का ही हमने यहां पर विश्लेषण करना उचित समझा हैं। बाकी जो 8 कैंडल चार्ट होते हैं , उनका उपयोग करना और समझना बेहद जटिल होता हैं।

इस कारण हम यहां उन सब चार्ट का विस्तूत में खुलासा नहीं करेंगे। अगर इन सब चार्ट को हमने यहां समझने प्रयास किया तो आपके लिए कैंडल को समझने में बहुत कन्फ्यूजन हो सकता हैं। फिर भी ट्रेडर्स अपनी अपनी समझ और इच्छा अनुसार इन 14 प्रकार के चार्ट में से किसी एक का TECHNICAL ANALYSIS करते समय उपयोग करते हैं।

लेकिन इनमें सबसे अधिक तर CANDLESTICK CHART और HIEKIN ASHI CHART का ही ट्रेडर्स TECHNICAL ANALYSIS करते समय अधिक उपयोग करते हैं।

अब हम बात करते हैं की TECHNICHAL ANALYSIS करने के लिए कोन से इंडीकेटर का ट्रेडर्स द्वारा सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता हैं। जो की सबसे लोकप्रिय इंडिकेटर भी हैं।

TECHNICAL ANALYSIS के लिए सबसे BEST INDICATOR :-

TECHNICAL ANALYSIS के लिए चार्ट पर बहुत सारे INDICATOR मिल जाते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही इंडिकेटर का ट्रेडर्स अधिक उपयोग करते है। उन इंडिकेटर को हम यहां समझते हैं।

1) MOVING AVERAGE :- टेक्निकल एनालिसिस करने के लिए ये सबसे अधिक पसंदीदा इंडीकेटर हैं। इस इंडीकेटर का प्रयोग करके आसानी से मार्केट की दिशा (TREND) का अनुमान लगाया जा सकता हैं। किसी भी सेगमेंट में ट्रेडिंग करने हेतु इस इंडिकेटर का उपयोग करके मार्केट ट्रेंड का अनुमान लगाना सहज हो जाता हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / MOVING AVERAGE

इसमें मुख्य दो प्रकार के MOVING AVERAGE का उपयोग होता हैं। उसमे से पहला हैं SMA (SIMPLE MOVING AVERAGE) और दूसरा हैं EMA (EXPONATIONAL MOVING AVERAGE) , SMA की तुलना मे EMA मार्केट के प्राइस VOLATALITY अनुसार चार्ट पर जल्दी मुड़ते रहता हैं। इस लिए आपको बस टेक्निकल चार्ट पर EMA या SMA को सेट करना हैं।

आप अगर INTRADAY TRADING कर रहे हो या फिर SHORT TERM/ LONG TERM TRADING कर रहे हो, उसके अनुसार आप चार्ट पर  5/10/20/50/100DAYS इस में कोई एक या एक से अधिक MOVING AVERAGE को चार्ट पर सेट कर सकते हो।

अगर आप INTRADAY TRADING कर रहे हो तो आप 5 से 20 DAYS तक के मूविंग एवरेज को चार्ट पर लगा सकते हो, या फिर आप SHORT TERM या LONG TERM पर में काम कर रहे हो तो आप 50,100 या 200DAYS के मूविंग एवरेज को चार्ट में सेट कर सकते हो। इस प्रकार से आपको चार्ट में MOVING AVERAGE की सेटिंग करनी हैं।

जब भी टेक्निकल चार्ट पर EMA या SMA के उपर अगर मार्केट प्राइस मतलब कैंडल स्टीक मूव करता हैं, तो वहा से BUY सिग्नल मिलता हैं ,और अगर मार्केट प्राइस मतलब  कैंडल स्टिक EMA या SAMA के नीचे जाने लगता हैं तो वहा से SELL सिग्नल मिलता हैं।  इस तरह से हमे MOVING AVERAGE को चार्ट पर लगाकर मार्केट ट्रेंड का आसानी से अनुमान लग जाता हैं।

2) BOLINGER BAND :- बोलिंगर बैंड ये भी एक पॉपुलर चार्ट इंडिकेटर हैं। इस इंडिकेटर का उपयोग करना बड़ा आसान होता हैं। नए ट्रेडर भी इसे आसानी से टेक्निकल चार्ट पर सेट करके ट्रेडिंग कर सकते हैं। SCALPING TRADING करते समय इस इंडिकेटर का अधिक उपयोग किया जाता हैं। इससे आपको ENTRY , EXIT और STOP LOSS कैसे और कहा लगाना हैं, ये समझना आसन हो सकता हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / BOLLINGER BANDS

इस इंडिकेटर को आप जैसे ही चार्ट पर सेट करोगे तो आपको चार्ट पर तीन लेवल मिल जाएंगे। ये तीन लेवल मिलाके चार्ट पर ZONE या बैंड बनाता हैं। मतलब की इस इंडिकेटर से चार्ट पर आपको ऑटोमेटिकली SUPPORT और RESISTANCE की लेवल मिलती हैं।

जब स्टॉक प्राइज MIDDLE लाइन के उपर जाने लगे तो आप नीचे की साइड सपोर्ट लेवल पर STOP LOSS और उपर की साईड RESISTANCE लेवल पर टारगेट लगाकर BUY ट्रेड ले सकते हो।

बिल्कुल उसी तरह जब स्टॉक प्राइज MIDDLE लाइन के नीचे की साईड मूव करे तो आप वहा से ऊपर की साईड रेसिस्टेंस पर STOP LOSS और नीचे की साइड सपोर्ट पर TARGET लगाकर  SELL पोजिशन के लिए ENTRY ले सकते हो। 

इस प्रकार से आप TECHNICAL ANALYSIS करने के लिए BOLLINGER BAND को चार्ट पर सेट करके ट्रेडिंग कर सकते हो। लेकिन आपको हमेशा टारगेट और स्टॉप लॉस का सही रेश्यो सेट करके ही ट्रेडिंग करनी हैं।

3)RELATIVE STRENGTH INDEX (RSI) :- RSI इस टेक्निकल इंडिकेटर से आपको उस समय चल रहे मार्केट के ट्रेंड का अनुमान लग जाता हैं। ये भी एक बहुत ही पॉपुलर इंडिकेटर हैं। इसका उपयोग लगभग सभी ट्रेडर्स TECHNICAL ANALYSIS करने के लिए करते हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / RSI

जब भी आप इस इंडिकेटर को चार्ट पर सेट करते हो तो आपको इसके सेटिंग में 0 से 100 का स्केल मिल जाता हैं। आपको इसके सेटिंग में नीचे की साइड 20 और उपर की साईड में 80 का लेवल सेट करना होता हैं। देखा जाए तो यही सबसे अच्छी सेटिंग होती हैं। और यह डिफॉल्ट सेटिंग भी होती हैं। 

जब चार्ट पर RSI इंडिकेटर में ट्रेंड लाइन 20 स्केल लाइन के नीचे या 0 लाइन तक जाता हैं,तो स्टॉक या इंडेक्स OVER SOLD सोल्ड हुआ हैं , ऐसा संकेत हमे मिलता हैं। बाद में RSI TREND लाइन जब फिर से 20 लाइन के उपर जाने लगे तो वहा से स्टॉक फिर से BUY साइड जा सकता हैं, ऐसा इंडिकेट हो जाता हैं।

और जब RSI इंडिकेटर में ट्रेंड लाइन 80 स्केल लाइन के उपर या 100 लाइन तक जाता हैं,तो स्टॉक या इंडेक्स OVER BOUGHT हुआ हैं ,ऐसा संकेत हमे मिलता हैं। बाद में RSI TREND लाइन जब फिर से 80 लाइन के नीचे जाने लगे तो वहा से स्टॉक फिर से SELL साइड जा सकता हैं, ऐसा इंडिकेट हो जाता हैं।

इस प्रकार बहुत ही आसान तरीके से INTRADAY TRADING हो या SWING TRADING या फिर SCALPING TRADING इन सभी ट्रेडिंग प्रणाली में ट्रेड करते समय RSI INDICATOR का उपयोग किया जाता हैं। और मार्केट ट्रेंड का अनुमान लगाया जाता हैं। इन सभी सेगमेंट में TECHNICAL ANALYSIS करने के लिए RSI इंडिकेटर का बहुत अच्छे से उपयोग होता हैं।

4) PIVOT PONIT :- टेक्निकल  चार्ट पर SUPPORT और RESISTANCE को दर्शाने के लिए ‘ PIVOT POINT ‘ ये इंडिकेटर होता हैं। TECHNICAL CHART पर उपर का जो लेवल होता हैं, उसे RESISTANCE और नीचे के लेवल को SUPPORT कहते हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / PIVOT POINTS

PIVOT PONIT इस इंडिकेटर को चार्ट पर सेट करके या मैनुअली लेवल निकाल कर भी जब भी मार्केट प्राइज RESISTANCE के उपर की साईड ब्रेकआउट देता हैं, तो वहा से BUY किया जा सकता हैं। और अगर मार्केट प्राइज SUPPORT लेवल से नीचे ब्रेक डाउन देता हैं ,तो वहा से SELL कर सकते हैं।

जो ट्रेडर मार्केट में नए होते हैं, वो टेक्निकल चार्ट पर PIVOT POINTS सेट करके भी सिर्फ लेवल फॉलो करके ट्रेडिंग करेंगे तो भी अच्छे प्रॉफिट निकाल सकते हैं। सिर्फ आपको STOP LOSS और TARGET STRICTLY लगाकर ट्रेडिंग करनी जरूरी होगी।

मैनुअली लेवल निकलने के लिए टेक्निकल चार्ट पर आप अपने हिसाब से टाइम फ्रेम सेट कर सकते हो। और आपको चार्ट पर कैंडल स्टिक के कुछ दो से अधिक ऐसे पॉइंट्स को तलाश करना हैं, जो लगभग एक ही लेवल में आते हो, उन्हें जोड़कर एक Horizontal Line Draw करनी होती हैं, और फिर उस लेवल के उपर मार्केट प्राइज अगर ब्रेकआउट देगा तो BUY और नीचे की साईड ब्रेकडाउन करे तो SELL करना हैं।

इस प्रकार SUPPORT और RESISTANCE को देखकर मार्केट के ट्रेंड का अनुमान लगाया जाता हैं। ये भी TECHNICHAL ANALYSIS करने का आसान तरीका हैं।

5) MACD :- MOVING AVERAGE CONVERGENCE DIVERGENCE ( MACD ) ये एक मोमेंटम इंडिकेटर हैं। यह सबसे लोकप्रिय इंडिकेटर हैं। मार्केट ट्रेंड BULLISH हैं, या BEARSISH चल रहा हैं, इसको समझने के लिए MACD इस इंडिकेटर का उपयोग किया जाता हैं। इस इंडिकेटर से हमे ट्रेंड जब बदलने लगता हैं ,तो उसके संकेत मिल जाते हैं। इस लिए यह एक TREND FOLLOW इंडिकेटर हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / MACD

इस इंडिकेटर की सबसे बेस्ट EMA सेटिंग 12, 26, 9 यह होती हैं। ये इंडिकेटर दो अलग अलग EMA के कॉम्बिनेशन से बनता हैं। इसमें 12 EMA लाइन को MACD लाइन कहते हैं, और 26 EMA लाइन को सिग्नल लाइन कहते हैं। और बिल्कुल मध्य में ‘0’ लाइन होती हैं। चार्ट पर MACD लाइन हरे रंग से और सिग्नल लाइन लाल रंग से दर्शाए जाते हैं।

इस प्रकार जब भी MACD लाइन ‘0’ लाइन के उपर की साइड हो तो BULLISH ट्रेंड और MACD लाइन ‘0’ लाइन के नीचे की साइड जाए तो BEARISH ट्रेंड माना जाता हैं।

और जब भी हरे रंग की MACD लाइन लाल रंग के सिग्नल लाइन को ‘0’ लाइन से उपर की साइड CROSS OVER करे तो वहा से मार्केट एक अच्छे BULLISH ट्रेंड में जाने की संभावना होती हैं।

उसी प्रकार जब भी हरे रंग की MACD लाइन लाल रंग के सिग्नल लाइन को ‘0’ लाइन से नीचे की साइड CROSS OVER करे तो वहा से मार्केट एक अच्छे BEARISH ट्रेंड में जाने की संभावना अधिक होती हैं।

उसी के साथ साथ जब मार्केट प्राइज HIGHER HIGH बना रहा होता हैं, तब MACD ‘0’ लाइन के उपर LOWER HIGH बनाये तो वहा से BEARISH TREND शुरू हो सकता हैं।

और जब मार्केट प्राइज LOWER LOW बना रहा होता हैं, तब MACD ‘0’ लाइन के नीचे  HIGHER LOW बनाए ,तो वहा से BULLISH TREND शुरू हो सकता हैं।

इस प्रकार आप TECHNICAL ANALYSIS करने के लिए MACD INDICATOR का उपयोग सभी सेगमेंट में करके मार्केट ट्रेंड का सही अनुमान लगा सकते हो।

TECHINCAL ANALYSIS करने के लिए हमने यहां पर जो सबसे अधिक लोकप्रिय और उपयोग में आने वाले इंडिकेटर होते हैं ,उन्हें यहां पर समझा हैं। इनके अलावा दूसरे कुछ और भी टेक्निकल इंडिकेटर होते हैं, पर ट्रेडर्स उनका बहुत कम उपयोग करते हैं। इस लिए हमने उन्हें यहां समझना जरूरी नहीं समझा।

ये हो गए इंडिकेटर अब हम CANDLE STICK CHART PATTERN और टूल्स के बारे में समझते हैं। कीस तरह इन सब का भी TECHNICAL ANALYSIS करने के लिए उपयोग किया जाता हैं।

TECHNICAL ANALYSIS CHART PATTERN :-

जब भी आप CANDLE STICK चार्ट या फिर HIEKIN ASHI चार्ट का टेक्निकल एनालिसिस करने के लिए उपयोग करते हो तो गतिशील मार्केट प्राइस अनुसार चार्ट पर कुछ PATTERN बनते जाते हैं। वह अलग अलग स्वरूप में बनते रहते हैं। उस में से जब भी कुछ पैटर्न चार्ट पर बनते हैं तो उसके आकार अनुसार हमे मार्केट मूल्य वहा से घटेगा या बढ़ेगा, इसके संकेत मिल जाते हैं।

वह कोन कोन से चार्ट पैटर्न हैं, जिनको चार्ट पर देख कर हमे TECHNICAL ANALYSIS करने में आसानी होती हैं, उन चार्ट पैटर्न को हम यहां समझते हैं।

DOUBLE TOP ( M ) PATTERN :- टेक्निकल चार्ट पर किसी स्टॉक या इंडेक्स का एनालिसिस करते समय आपने इस पैटर्न को बहुत बार देखा होगा। ये चार्ट पैटर्न समझने में बहुत ही आसान होता हैं। जब भी मार्केट प्राइस उस समय के HIGH पर होता हैं, और तब टेक्निकल चार्ट पर कैंडल स्टीक RESISTANCE के पास इंग्लिश ‘M’ से मिलता जुलता कोई आकार बना देता हैं, तो वहा से हमे मार्केट प्राइस गिरने के संकेत मिल जाते हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / DOUBLE TOP M PATTERN

आपको एक बात अवश्य ध्यान में रखना हैं  की,  इस पैटर्न के साथ साथ किसी दूसरे इंडिकेटर से भी आपको उसी समय एक  जैसा ही कन्फर्मेशन मिल रहा हो तो ही आपको ट्रेड करना हैं ।

DOUBLE BOTTOM ( W ) PATTERN :- यह चार्ट पैटर्न ‘M’ चार्ट पैटर्न से बिल्कुल ही विपरीत होता हैं। जब आप को टेक्निकल चार्ट पर किसी स्टॉक या इंडेक्स का एनालिसिस करते समय मार्केट प्राइस उस समय के LOW पर होता हैं , और तब टेक्निकल चार्ट पर कैंडल स्टीक SUPPORT के पास इंग्लिश ‘W’ जैसा  कोई आकार बना देता हैं, तो वहा से हमे मार्केट प्राइस बढ़ने के संकेत मिल जाते हैं। आपने इस पैटर्न को भी बहुत बार देखा होगा। ये चार्ट पैटर्न आपको बहुत जल्द समझ में आ सकता हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / DOUBLE BOTTOMS W PATTERN

इस बार भी आपको एक बात अवश्य ध्यान में रखनी हैं की,  इस पैटर्न के साथ साथ किसी दूसरे इंडिकेटर से भी आपको उसी समय एक जैसा ही कन्फर्मेशन मिल रहा हो तो ही आपको ट्रेड करना हैं।

HEAD AND SHOULDER PATTERN :- ये एक ऐसा चार्ट पैटर्न होता हैं, जिसके नाम में ही उसका अर्थ छुपा हुआ हैं। HEAD AND SHOULDER का मतलब दो कंधे और एक सर होता हैं ।

जब भी TECHNICAL CHART पर रेसिस्टेंस लेवल के पास मार्केट प्राइस थोड़ा उपर जाता हैं और फिर नीचे आ जाता हैं। बाद में फिर से मार्केट प्राइस उसके पहले HIGH को तोड़ कर एक नया HIGH बनाकर फिर नीचे रेसिस्टेंस के पास आकर फिर एक बार थोड़ा उपर जाकर नीचे आता हैं। तब वहा चार्ट पर मार्केट प्राइस दो कंधे और बीच में एक सर जैसा आकार बनाता हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / HEAD AND SHOULDER PATTERN

ऐसी स्थिति में वहा से मार्केट प्राइस तेजी से नीचे जाने की संभावना बढ़ती हैं। इससे हमे BEARISH या SELL के संकेत मिल जाते हैं।

और यही प्रक्रिया जब मार्केट प्राइस सपोर्ट लेवल के पास होती हैं। मतलब जब मार्केट प्राइस जब सपोर्ट लेवल के पास HEAD AND SHOULDER पैटर्न बनाता हैं ,तो वहा से हमे तेजी से BUY के संकेत मिलते हैं। वहा से मार्केट प्राइस उपर जाने की संभावना अधिक होती हैं।

इस लिए चार्ट पर इस प्रकार के पैटर्न को HEAD AND SHOULDER पैटर्न कहा जाता है। इसका उपयोग करके हम आसानी से मार्केट ट्रेंड को समझ पाते हैं।

FLAG PATTERN :- इस चार्ट पैटर्न को FLAG पैटर्न कहना का एक कारण यह हैं की , ये चार्ट पर तिकोनाकार झंडे के आकार में दिखाई देता हैं। ये भी एक लोकप्रिय चार्ट पैटर्न माना जाता हैं। जब मार्केट प्राइस किसी रेसिस्टेंस के पास ट्रेड कर रहा होता हैं, तब मार्केट प्राइस में VOLATALITY थोड़ी थोड़ी करके कम होते जाती हैं। और टेक्निकल चार्ट पर कैंडल स्टीक एक तिकोनाकार झंडे जैसा पैटर्न बना देता हैं।

TECHNICAL ANALYSIS / FLAG PATTERN

तब ट्रेडर्स मार्केट प्राइस को रेसिस्टेंस के उपर की साइड ब्रेक होने का इंतजार करते हैं। और उसके बाद जब मार्केट प्राइस उस रेसिस्टेंस के उपर की साइड ब्रेक आउट देता हैं, तो वहा से ट्रेडर्स BUY की पोजिशन लेते हैं। और तब BUY साइड में बड़ा मूवमेंट होने की संभावना बढ़ जाती हैं।

और जब मार्केट प्राइस किसी SUPPORT के पास ट्रेड कर रहा होता हैं, तब मार्केट प्राइस में VOLATILITY थोड़ी थोड़ी  करके कम होते जाती हैं। और टेक्निकल चार्ट में नीचे की साइड सपोर्ट पर कैंडल स्टीक एक तिकोनाकार झंडे जैसा दिखने वाला पैटर्न बना देता हैं।

तब उस समय ट्रेडर्स मार्केट प्राइस को सपोर्ट के नीचे की साइड ब्रेक डाउन होने का इंतजार करते हैं। और जैसे ही मार्केट प्राइस उस सपोर्ट के नीचे की साइड ब्रेक डाउन देता हैं, तो वहा से मार्केट प्राइस SELL साइड जाने के संकेत मिलते हैं। तब मार्केट प्राइस वहा से तेजी से गिर सकता हैं। और वहा से मार्केट में SELLING बढ़ सकती हैं।

इस प्रकार से हमे TECHNICAL ANALYSIS करते समय FLAG पैटर्न से BUY और SELL के संकेत मिलते हैं। लेकिन आपको इस पैटर्न के साथ साथ उसी समय किसी दूसरे इंडिकेटर से भी मिल रहे एक जैसे कन्फर्मेशन को भी देखना हैं , अगर इंडिकेटर से भी आपको एक जैसा ही संकेत मिल रहा हो तो ही आप ट्रेड कर सकते हो। इस बात को आपको हमेशा ध्यान में रखना हैं।

वैसे कुछ और भी चार्ट पैटर्न होते हैं ,मगर जो समझने में सबसे अधिक आसान पैटर्न हैं, उनके बारे में हमने यहां पर विस्तृत में समझा हैं। बाकी पैटर्न नए ट्रेडर्स के लिए समझने में ज्यादा कठिन होते हैं, इस कारण हमने उनके बारे में यहां चर्चा नहीं की।

और अब हम यहां पर कुछ सबसे आसान और लोकप्रिय टेक्निकल टूल्स के बारे में समझेंगे।

TECHNICAL ANALYSIS TOOLS :-

FIBONACCI RETRACEMENT :- चार्ट पर तकनीकी विश्लेषण करने के लिए ये भी एक बहुत ही प्रचलित टूल हैं। इस टूल्स के प्रयोग से चार्ट पर ENTRY, EXIT और TARGET पॉइंट मिल जाते हैं। इसका मतलब अगर आप लेवल को देख कर ट्रेड लेते हो तो आपको ये टूल्स लेवल निकाल के देता हैं।

इस टूल्स के उपयोग के लिए आपको टेक्निकल चार्ट पर कोई एक बड़ी SWING ढूंढनी होती हैं। और स्विंग के HIGH & LOW पर FIBONACCI टूल DRAW करना होता हैं। तो वहा पर आपको 0, 38.20, 50, 61.80, 78.60 और 100 ऐसे लेवल मिलते हैं। इनमे से हमे 38.20 और 61.80 ये दो लेवल के बीच जो ZONE बनता हैं , यही हमारे लिए GOLDEN ZONE होता हैं। 

इस ZONE से मार्केट प्राइस कैसे ट्रेड करता हैं। इसे देखकर ही हमे ट्रेड ENTRY लेनी होती हैं।

जब मार्केट प्राइस गिर रहा होता हैं , तब आपको चार्ट पर एक बड़ी SWING पर HIGH से LOW तक फिबोनैकी DRAW करना होता हैं, तो आपको वहा उपर से नीचे 100, 78.60, 61.80, 50, 38.20, और 0 ऐसे लेवल मिलेंगे। इनमे से हमे 61.80 और 38.20 ये दो लेवल के बीच में GOLDEN ZONE मिलता हैं।

तब गिरता हुआ मार्केट प्राइस फिर से मुड़कर उपर ( बढ़ने) जाने की कोशिश करने लगे,और GOLDEN ZONE से मतलब 61.80 और 38.20 ये दो लेवल तक जाकर या इसके बीच से मुड़कर फिर तेजी से गिरने लगे, तो वहा से मार्केट प्राइस फिर तेजी से गिरने वाला हैं, ये संकेत मिलते हैं। इस तरह हमे वहा पर SELL सिग्नल मिलता हैं।

इस प्रकार आप GOLDEN ZONE के नीचे से तुरंत SELL के लिए ट्रेड पोजिशन ले सकते हो।

बिल्कुल उसी प्रकार मार्केट प्राइस जब बढ़ रहा होता हैं,तब आपको चार्ट पर एक बड़ी SWING पर LOW से HIGH तक फिबोनैकी DRAW करना हैं, तो वहा उपर से नीचे  0, 38.20, 50, 61.80, 78.60 और 100 ऐसे लेवल मिलेंगे। इनमे से हमे 38.20 और 61.80 ये दो लेवल के बीच में GOLDEN ZONE मिलता हैं।

और फिर चढ़ता मार्केट प्राइस अगर फिर से मुड़कर पीछे जाने ( घटने ) लगे और GOLDEN ZONE से मतलब 38.20 और 61.80 ये दो लेवल तक जाकर या इसके बीच से मुड़कर फिर से तेजी से बढ़ने लगे, वहा से मार्केट प्राइस फिर तेजी से बढ़ने वाला हैं, ऐसे संकेत हमे मिलते हैं। इस तरह हमे वहा पर BUY सिग्नल मिलता हैं।

इस प्रकार आप GOLDEN ZONE के उपर से तुरंत BUY के लिए ट्रेड पोजिशन ले सकते हो।

और यदि मार्केट प्राइस 61.80 और 38.20 या 38.20 और 61.80 इस GOLDEN ZONE से अगर मुड़ता नही हैं, और उसी दिशा में GOLDEN ZONE से आगे सीधा निकल जाता हैं, तो इसका मतलब हैं की मार्केट ट्रेंड में RETRACEMENT ना होकर मार्केट ट्रेंड वहा से पूरी तरह से बदल गया हैं। तो वहा पर हमे ट्रेड से तुरंत EXIT करनी हैं। हमेशा ये बात अवश्य ध्यान में रखिए।

इस प्रकार से आपको FIBONACCI टूल का उपयोग करके ट्रेडिंग करनी हैं। यदि आप सही तरीके से चार्ट पर   FIIBONACCI DRAW करेंगे और बताए गए तरीको का पालन करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।

HORIZONTAL LINE :- टेक्निकल चार्ट पर होरिजोंटल लाइन TECHNICL ANALYSIS के लिए ये एक बहुत उपयोगी टूल हैं। इसका उपयोग करके हम चार्ट पर आसानी से लेवल निकाल सकते हैं।

जब टेक्निकल चार्ट पर कैंडल स्टीक किस लेवल को बहुत बार छूकर फिर से निकल जाता हैं, ऐसे दो से अधिक पॉइंट्स को सीधा एक लाइन में जोड़ने के लिए हमे होरिजोंटल लाइन इस टूल का बहुत उपयोग होता हैं। इस टूल की मदत से हम चार्ट पर सपोर्ट और रेसिस्टेंस लेवल निकाल सकते हैं। इस प्रकार TECHNICAL ANALYSIS में HORIZONTAL लाइन का प्रगोग किया जाता हैं।

TREND LINE :- मार्केट में चल रहे ट्रेंड को चार्ट पर चढ़ते या गिरता हुआ दिखाने के लिए इस टूल का उपगोग किया जाता हैं। ट्रेंड लाइन से हम चार्ट पर यदि मार्केट प्राइस गिर रहा हैं ,या बढ़ रहा हैं उसके अनुसार उपर से नीचे की ओर या फिर नीचे से ऊपर की ओर जहा जहा मार्केट दो से अधिक पॉइंट्स को छूकर वहा से नीचे या उपर जा रहा होता हैं , उस दो से अधिक पॉइंट्स को जोड़कर वहा से हम उपर से नीचे मतलब SELL TREND और नीचे से उपर मतलब BUY TREND को दर्शाने के लिए TREND LINE का उपयोग करते हैं।

जब मार्केट प्राइस ट्रेंड लाइन के उपर या नीचे ब्रेक आउट या ब्रेक डाउन दे तो वहा से ट्रेंड बदलने के हमे संकेत मिल जाते हैं। इस प्रकार TREND LINE का TECHNICAL ANALYSIS करते समय उपयोग किया जाता हैं।

इस तरह से हमने TECHNICAL ANALYSIS में उपयोगित सभी महत्वपूर्ण INDOCATOR, TOOLS और CHART PATTERN को यहां पर विस्तृत में समझा हैं। अब हम समझते हैं की TECHNICAL ANALYSIS ( तकनीकी विश्लेषण ) कैसे किया जाता हैं।

TECHNICAL ANALYSIS KAISE करते हैं ?

जैसे की आपने समझा टेक्निकल चार्ट पर आपको अपने हिसाब से कोई एक कैंडल के प्रकार को जैसे CANDLE STICK या HEIKIN ASHI या फिर कोई और कैंडल प्रकार को चार्ट पर सेट करना हैं।

और फिर उपर हमने जितने भी इंडिकेटर को समझा हैं, आप उनमें से कोई दो से तीन इंडिकेटर को चार्ट पर सेट कर सकते हैं। हर एक इंडिकेटर कैसे काम करता हैं, इसका विश्लेषण हमने उपर किया हैं। इसलिए उपर बताये गए पद्धति से उनसे मिल रहे ट्रेंड का अनुमान लेकर ही आपको ट्रेडिंग करनी हैं।

जैसे की EMA का उपयोग करके आप चल रहे ट्रेंड अनुसार ट्रेड ले सकते हो, या फिर BOLINGER BAND का प्रयोग करके और ( LEGING ) नीचे की साइड RSI , MACD जैसे इंडिकेटर का भी कंफर्मेशन लेकर ट्रेडिंग कर सकते हो।

BOLINGER BAND का उपर बताए तरीके से आप उपयोग कर सकते हो। आप उसमे LOWER, MIDDLE और UPER लाइन पर ट्रेड ENTRY, STOPLOSS और प्रॉफिट TARGET लगा कर ट्रेडिंग कर सकते हो।

अगर आपको चार्ट पर कोई कैंडल पैटर्न जैसा आकार दिखाई दे रहा हो तो, जैसे की DOUBLE TOP या BOTTOM या FLAG या फिर HEAD AND SHOULDER पैटर्न इसे देखकर भी उपर बताए गए पद्धति से आप ट्रेडिंग करके मार्केट से लाभ कमा सकते हो।

आप HORIZONTAL या फिर TREND लाइन का उपयोग दो से अधिक पॉइंट्स को जोड़ने के लिए करके ट्रेंड का सही अनुमान लगा सकते हो। PIVOT POINTS से मिलने वाली ऑटोमैटिक लेवल का भी आप उपयोग कर सकते हो। आज से पहले मार्केट प्राइस ने चार्ट पर कैसे बरताव किया था , उसे देखकर भी आपको मार्केट ट्रेंड का अनुमान लगाना हैं।

याद रहे आपको चार्ट पर एक समय दो से तीन तक ही इंडिकेटर लगाने हैं। और लगाए गए सभी इंडिकेटर एक जैसा ही संकेत दे रहे हो तो ही आपको ट्रेड लेना हैं। मतलब दो तीन से अधिक इंडिकेटर का एक जैसा संकेत अगर आपको चार्ट पर मिल रहा हैं , इसका इसका मतलब आपका अनुमान सही हो सकता हैं, और आपको प्रॉफिट मिल सकता हैं।

कभी भी आपको तीन चार से अधिक इंडिकेटर को चार्ट पर लगाना नहीं हैं। क्यू की हो सकता हैं, सभी इंडिकेटर आपको अलग अलग संकेत दे और आप का कंफ्यूजन बढ़ जाए। इस लिए हमेशा दो या तीन इंडिकेटर को सेट करके सक्ति से STOP LOSS लगाकर ही TECHNICAL ANALYSIS करके ट्रेडिंग करे। यही सही तरीका होता हैं।


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इस प्रकार से आप उपर बताए गए पद्धति अनुसार INDICATOR और TECHNICAL TOOLS का उपयोग करके TECHNICAL ANALYSIS कर सकते हो, और मार्केट से लाभ प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हो।

TECHNICAL ANALYSIS के फायदे और नुक्सान क्या हैं ?

TECHNICAL ANALYSIS ( तकनीकी विश्लेषण ) के बहुत सारे फ़ायदे हैं, लेकिन उसी के साथ कुछ नुकसान भी होते हैं, ये हम यहां पर समझेंगे।

TECHNICAL ANALYSIS के फ़ायदे:-

  • TREND :- TECHNICAL ANALYSIS करने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये हैं की , EMA जैसे इंडिकेटर का उपयोग करके हम मार्केट ट्रेंड किस दिशा में जा रहा हैं ,इसका सही अनुमान लगा पाते हैं।
  • MARKET LEVEL :- मार्केट प्राइस कहा पर सपोर्ट और रेसिस्टेंस ले सकता हैं , इसका अंदाजा हमे होरीजोंटल लाइन , ट्रेंड लाइन और PIVOT POINTS इस इंडिकेटर से मिल सकता हैं। इस इंडिकेटर से हमे टेक्निकल चार्ट पर ऑटोमैटिक सपोर्ट और रेसिस्टेंस लेवल मिल जाते है।
  • OVER BOUGHT & OVER SOLD ZONE :- स्टॉक या इंडेक्स में चल रहे समय में कितनी खरीददारी या बिकवाली हुई हैं, मार्केट OVER BOUGHT हुआ हैं, या OVER SOLD हुआ हैं , इस का अंदाजा हमे RSI जैसे इंडिकेटर से मिल जाता है। RSI लाइन अगर 80 के उपर हो तो OVER BOUGHT और 20 के नीचे जाए तो OVER SOLD ZONE में मार्केट ट्रेड कर रहा हैं। ये अनुमान हम लगा सकते हैं।
  • STOP LOSS & TARGET :- चल रहे मार्केट में कब पोजिशन बनानी हैं, मतलब कब ENTRY लेनी हैं, स्टॉप लॉस कहा पर रखना सही होगा, और कहा पर टारगेट रखना उचित हो सकता हैं , इसका सटीक अंदाजा हम PIVOT POINTS, होरिजोंटल & ट्रेंड लाइन जैसे इंडिकेटर और टूल्स के उपयोग से इस मिल रहे लेवल से लगा सकते हैं। 

इस तरह हमने TECHNICAL ANALYSIS के क्या क्या फ़ायदे होते हैं, और कैसे उसका उपयोग करके मार्केट से लाभ उठा सकते हैं, इस बात को समझा हैं।

अब हम TECHNICAL ANALYSIS के क्या क्या नुक़सान हो सकते हैं, उसे समझेंगे।

TECHNICAL ANALYSIS के नुक़सान:-

  • TRADING STRATEGY :- किसी भी स्टॉक या इंडेक्स के ट्रेंड का सही अनुमान लगाने के लिए आप जो भी TRADING STRATEGY का उपयोग कर रहे हो उसकी एक्युरेसी कैसी हैं, उसके कैसे परिणाम आप को मिल रहे हैं, ये बहुत ही महत्वपूर्ण होता हैं। अगर आपकी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी की एक्युरेसी अगर अच्छी नहीं होगी तो, यहां पर आपको बड़े नुकसान उठाने पड़ सकते हैं।
  • LATE SIGNAL :- तकनीकि विश्लेषण करने में एक बड़ी समस्या ये हैं की, मार्केट प्राइस में मूवमेंट पहले होती हैं और TECHNICAL CHART पर हमे थोड़े देर बाद संकेत मिलते हैं, जैसे की MACD और RSI ये इंडिकेटर लेगिंग इंडिकेटर होते हैं, ये मार्केट में मूवमेंट होने के कुछ देर बाद संकेत देते हैं। इस कारण हम मार्केट ट्रेंड को तुरंत पकड़ नही पाते।
  • OVER CONFIDENCE :- जब टेक्निकल चार्ट पर हमे कुछ इंडीकेटर एक जैसा ही संकेत दे रहे होते हैं, और हम उसे देखकर पोजिशन बनाते हैं। उसके बाद मार्केट में कोई अचानक आए न्यूज़ के कारण हमारा अनुमान गलत हो जाता हैं, और हमारी पोजिशन लॉस में चली जाती हैं, लेकिन फिर भी हम टेक्निकल संकेतो के कारण पोजीशन से एक्जिट नहीं लेते और बाद में हमे बड़ा लॉस लेना पड़ता हैं।

इस प्रकार से हमने यहां पर TECHNICAL ANALYSIS के क्या फ़ायदे और क्या नुक़सान होते हैं, इसे अच्छे से समझा हैं।

आपने इस लेख से क्या सीखा ?

इस प्रकार से हमने यहां पर TECHNICAL ANALYSIS क्या होता हैं, और कैसे करते हैं, इससे संबंधित पूरी जानकारी देना का प्रयास किया हैं। TECHNICAL ANALYSIS करने में कोन कोन से इंडीकेटर का किस प्रकार से उपयोग किया जाता हैं, और चार्ट पैटर्न क्या होता हैं, टेक्निकल टूल्स कोन कोन से हैं ,कैसे उनका उपयोग करके टेक्निकल एनालिसिस आसानी से किया जा सकता हैं, इन सभी मुद्दों पर विस्तृत रूप में विश्लेषण किया हैं।

हमारे द्वारा दिए गई जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित हो, हम ये अपेक्षा करते हैं। आपको ये लेख कैसा लगा और यदि आप हमें कोई सुझाव देना चाहते हो तो कृपया नीचे कॉमेंट्स में लिखिए।

KYA 1000 RUPAYE SE OPTION TRADING SHURU KAR SAKATE HAIN ? HINDI 2023

KYA 1000₹ SE OPTION TRADING SHURU KAR SAKATE HAIN ? HINDI 2023

जी हां दोस्तों 1000 रुपये जैसे छोटे कैपिटल फंड से भी आप OPTION TRADING शुरू कर सकते हो। ऑप्शन ट्रेडिंग में 1000₹ जैसे छोटे फंड को लेकर ऑप्शन ट्रेडिंग करना संभव होता हैं। लेकिन ऑप्शन ट्रेडिंग ये सेगमेंट बहुत रिस्की होता हैं। ऑप्शन में ट्रेडिंग करने से पहले आपको ऑप्शन ट्रेडिंग के बारे में पूरी जानकारी होनी बेहद जरूरी होती हैं।

KYA 1000₹ SE OPTION TRADING SHURU KAR SAKATE HAIN ? HINDI 2023

तो इस लिए हमे ऑप्शन ट्रेडिंग के बारे में जानना जरूरी हैं। OPTION TRADING क्या है और ऑप्शन ट्रेडिंग में कोन कोन सी जोखिम होती हैं , ये सब अब हम यहां समझते हैं। 

OPTION TRADING क्या हैं ? OPTION TRADING MEANING

शेयर मार्केट में DERIVATIVES TRADING को ही OPTION TRADING कहा जाता हैं। ये ट्रेडिंग सेगमेंट एक लिमिटेड समय निर्धारित कॉन्ट्रैक्ट पर आधारित होता हैं। जिनका कैपिटल स्मॉल हैं , और जो ट्रेडर्स बड़े कैपिटल को लेकर ट्रेडिंग करते हैं ये सभी ट्रेडर्स ऑप्शन ट्रेडिंग की ओर अधिक आकर्षित होते हैं।  INTRADAY TRADING और SWING TRADING करने वाले  ट्रेडर्स के लिए सेगमेंट एक सही विकल्प हैं। 

ये एक समय निर्धारित CONTRACT सेगमेंट होने के कारण OPTION सेगमेंट में समय का मूल्य (प्रीमियम) का टोकन  देकर ट्रेडिंग किए जाती हैं। ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में जितना अधिक समय होता हैं , उसके अनुसार  प्रीमियम की Value होगी। ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में जितना कम समय बचता जाता हैं उस के अनुसार  प्रीमियम भी घटते जाता हैं। इस सेगमेंट में आपने जितना प्रीमियम देकर ट्रेड पोजिशन बनाई हुई हैं, आपका आखरी लॉस भी उतना ही होगा। लेकिन यहां आपने लगाए अनुमान अनुसार ट्रेंड में मूवमेंट हुआ तो प्रॉफिट भी बड़ा या अनलिमिट  हो सकता हैं। इस कारण OPTION TRADING में HIGH VOLATILITY देखने को मिलती है।

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के बचे हुए समय अनुसार जितना प्रीमियम देकर आपने ट्रेड लिया हैं , उतना ही आपका आखरी लॉस होगा , अगर ट्रेड आपके लगाये अनुमान अनुसार चला जाए और बड़ी मूवमेंट आ जाए तो यहां प्रॉफिट की कोई सीमा नहीं होती हैं । मतलब आपका लॉस होगा तो जितना आपने प्रीमियम देकर ट्रेड लिया था, उतना ही आपका आखरी लॉस होगा।

इस प्रकार  यहां प्रॉफिट का कोई लिमिट नही, और लॉस लिमिटेड होता हैं। इस तरह किसी स्टॉक या इंडेक्स के ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में चल रहे समय मूल्य देकर उसके लॉट साइज में BUY और बाद में SELL करके किए जाने वाली ट्रेडिंग प्रणाली को OPTION TRADING कहते हैं।

इस सेगमेंट में कम प्रीमियम देकर बड़े प्रॉफिट के लिए ट्रेडिंग का अवसर मिल जाता हैं, इस कारण शेयर मार्केट में ऑप्शन में सबसे अधिक VOLATILITY देखने को मिलती हैं। लेकिन ये समय निर्धारित सेगमेंट होने के कारण जैसे जैसे ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का समय कम होते जायेगा वैसे वैसे प्रीमियम ऑटोमेटिकली घटते जाता हैं। इस लिए OPTION TRADING को सबसे रिस्की या जोखिमभरा ट्रेडिंग कहा जाता हैं। 

ऐसे कॉन्सेप्ट के कारण ऑप्शन ट्रेडिंग नए ट्रेडर्स के लिए समझने में बहुत आसान लगता हैं, इस लिए नए ट्रेडर्स इस सेगमेंट में ज्यादा आकर्षित होते हैं। शेयर मार्केट की सही समझ और जानकारी ना होने के कारण और HIGH VOLATILITY के कारण ये यहां पर अपने पैसे गवा देते हैं।

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लेकिन ट्रेडिंग के कुछ नियमों का पालन करके और उसके साथ साथ TECHNICAL ANALYSIS करके ऑप्शन ट्रेडिंग से भी बहुत अच्छे प्रॉफिट कमाए जा सकते हैं। अब हम समझते हैं की वो कोनसे ट्रेडिंग नियम हैं , जिसका पालन करके OPTION TRADING से अच्छे परिणाम निकाल सकते हैं। उन नियमों को हम यहां पर समझते हैं।


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OPTION TRADING के नियम :-

ऑप्शन ट्रेडिंग ये ट्रेडिंग सेगमेंट सबसे जोखिम भरा होता हैं, फिर भी सही सूझभुज से और  कुछ नियमों का सक्ति से पालन करके यहां से भी आकर्षक प्रॉफिट कमाए जा सकते हैं।

  • PAPER TRADING :-यदि आप शेयर मार्केट मे नए नए हो तो आपको एकदम से लाइव ट्रेडिंग बिल्कुल भी नही करनी हैं। सबसे पहले आपको कोइ एक अच्छी स्ट्रेटजी को लेकर कुछ दिनों तक पेपर ट्रेडिंग करनी हैं।  उसके के बाद जब आपका कॉन्फिडेंस बढ़ जायेगा तो आप लाइव ट्रेडिंग कर सकते हैं।
  • VOLATILITY :- OPTION TRADING में आपको सबसे पहले ऐसे स्टॉक या इंडेक्स का चयन करना हैं, जिसमे HIGH VOLATILITY हों। क्यू की अगर VOLATALI TY कम होगी तो आपका प्रॉफिट टारगेट कम समय में पूरा नहीं होगा। और जितने समय तक आपका ट्रेड पूरा नहीं होगा तब तक आपका प्रीमियम घटते जायेगा। इस लिए ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए हमेशा HIGH VOLATILE  स्टॉक या इंडेक्स का ही चयन करे।
  • STRIKE PRISE :- जिस स्टॉक या इंडेक्स को लेकर आपको ट्रेडिंग करनी हैं, उसके करंट प्राइस पर चल रहे प्रीमियम का ही ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए चयन करे। चल रहे करंट प्राइस से दूर का प्रीमियम मतलब (OUT OF THE MONEY) प्रीमियम ऑप्शन के लिए ना चुने। क्यू की मार्केट रेंज बाउंड रहा तो दूर का ऑप्शन प्रीमियम घटते रहता हैं। और आपको लॉस हो सकता हैं। इस लिए करंट प्राइज पर चल रहे AT THE MONEY प्रीमियम का ही ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए चयन करे।
  • TREND:- जो भी स्टॉक या इंडेक्स में आप ऑप्शन ट्रेडिंग करने की सोच रहे हो उसके चल रहें ट्रेंड को पहले समझ लीजिए, चुने हुए स्टॉक या इंडेक्स का ट्रेंड अप साइड हैं या डाउन साइड इसे देखकर ही ट्रेडिंग करे। जब मार्केट रेंज बॉन्ड चल रहा हो तो ऐसे में ट्रेडिंग ना करे, क्यू की ऐसी स्थिति में आपका टारगेट मिस होता रहेगा और स्टॉप लॉस पे स्टॉप लॉस हिट होते रहेंगे, उसी के साथ ऑप्शन प्रीमियम भी घटता जायेगा। इस लिए हमेशा ट्रेंड को ही फ़ॉलो करके ऑप्शन ट्रेडिंग कीजिए।
  • LOT SIZE:- OPTION TRADING करते समय आपको लॉट साइज का बहुत ध्यान रखना होगा। आपका कैपिटल कितना हैं, उसके अनुसार आप कितना लॉस ले सकते हो उस हिसाब से ही लॉट लेकर ऑप्शन ट्रेडिंग करना जरूरी हैं। क्यू की आपके कैपिटल की क्षमता से अधिक आपने लॉट साइज को लेकर ट्रेडिंग की तो अगर लॉस होगा तो भी आपकी कैपिटल क्षमता से अधिक हो सकता हैं, इस लिए हमेशा आपकी लॉस सहेने ही क्षमता के अनुसार ही लॉट साइज लेकर ट्रेडिंग करे।
  • STOP LOSS & TARGET :- ऑप्शन सेगमेंट हो या कोई और आपको हमेशा प्रॉफिट टारगेट और स्टॉप लॉस का रेश्यो सेट करके ही ट्रेडिंग करनी हैं।  जैसे की 1:2,1:3 या 1:4 इस हिसाब से ही आपको स्टॉपलॉस और टारगेट का रेश्यो सेट सुनिश्चित करके ही ऑप्शन ट्रेडिंग करनी हैं। मतलब हमेशा आपका प्रॉफिट टारगेट स्टॉपलॉस से दुगना या उससे अधिक का ही होना चाहिए। तो ही आपको ओवर ऑल प्रॉफिट हो सकता हैं।
  • OVER TRADE :- ट्रेडिंग चाहे ऑप्शन हो या और कोई आप हमेशा दिन में 2/3 ही ट्रेड करे। उससे अधिक ट्रेड होगे तो जोखिम भी अधिक उठानी होगी। और हर बार आपका अनुमान  सही नही हो सकता, इस लिए कभी कभी लॉस पे लॉस भी  हो सकता हैं। हमेशा लिमिटेड ट्रेड ही करना उचित होता हैं। इसलिए हमेशा ओवर ट्रेड से दूर रहे।

इस तरह हमने यहां पर OPTION TRADING के लिए जरूरी टिप्स और नियमो को समझा हैं। ध्यान रहे आपको इन सब नियमों का पालन करके ही ऑप्शन ट्रेडिंग करनी जरूरी हैं।

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BANKNIFTY CALL & PUT BOTH SIDE OPTION CHAIN

इस प्रकार उपर बताए गए नियमों का सक्ति के साथ पालन करोगे तो 1000₹ जैसी छोटी कैपिटल राशि के साथ भी ऑप्शन ट्रेडिंग किए जा सकती हैं। लेकिन इतनी छोटी कैपिटल राशि को लेकर ट्रेडिंग करने की हम बिल्कुल भी सलाह नहीं देंगे।

OPTION TRADING ये बहुत ही जोखिम भरा सेगमेंट हैं, और HIGH VOLATILITY के कारण इतनी छोटी राशि को खतम होने में यहां देर नहीं लगेगी। इसलिए इससे थोड़ा बड़ा कैपिटल लेकर ट्रेडिंग करना बेहतर होगा।

और यह भी ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि 1000₹ जैसे छोटे  कॅपिटल राशी के साथ  ट्रेडिंग करना संभव हैं, लेकीन ये बिलकुल भी सही ट्रेडिंग विक्लप नही हो सकता। आप ट्रेडिंग करते समय कितना स्टॉप लॉस और टारगेट  सुनिश्चित करके ट्रेडिंग करते हो इस पर किसी भी ट्रेडिंग सेगमेंट में ट्रेडिंग के लिए आपको कितने कैपिटल जरूरत होगी, ये निर्भर होता हैं।

OPTION TRADING ये एक अति गतिमान ट्रेडिंग सेगमेंट होता हैं, इस लिए होने वाले लॉस को RECOVER करने के लिए भी आपको एक आवश्यक फंड की जरूरत होगी । तो ऐसे में ट्रेडिंग करने के लिए उतना कैपिटल तो आपको रखना बहुत जरूरी हैं।

अगर कैपिटल बड़ा रखकर ट्रेडिंग होगी तो आपको प्रॉफिट टारगेट और स्टॉप लॉस अच्छे से सेट करने में आसानी होगी। और उपर बताए गए रेश्यो अनुसार स्टॉप लॉस और टारगेट लगाकर ऑप्शन ट्रेडिंग आप करोगे तो आप यहां से अच्छा प्रॉफिट निकाल सकते हो।

इस प्रकार हमने OPTION TRADING क्या हैं और ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे करते हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग के क्या नियम होते हैं है, इसको समझा हैं।

इस लेख से आपने क्या सीखा ?

हमने इस लेख में ऑप्शन ट्रेडिंग के बारे में जानकारी दी हैं। ये एक जोखिम भरा ट्रेडिंग सेगमेंट होता हैं। और यहां पर 1000₹ जैसे कम कैपिटल को लेकर OPTION TRADING किए जा सकती हैं। 1000₹ जैसे छोटे कैपीटल से यहां ऑप्शन ट्रेडिंग करना संभव होता हैं। लेकिन फिर भी इतने छोटे कैपिटल से ट्रेडिंग करना कभी भी सही नही हो सकता। ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए एक आवश्यक कैपिटल की जरूरत होती हैं। आवश्यक कैपिटल को लेकर ही ट्रेडिंग करना बेहद जरूरी होता हैं।

और हमने यहां पर ये भी समझ लिया हैं की, 1000₹ जैसी छोटी कैपिटल राशि के साथ ऑप्शन ट्रेडिंग कर सकते हैं या नहीं, और ये कितना सही हो सकता है।

इस प्रकार से हमने यहां पर ऑप्शन ट्रेडिंग संबंधित पूरी जानकारी देना का प्रयास किया हैं। हमारे द्वारा दिए गई जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित हो, हम ये अपेक्षा करते हैं। आपको ये लेख कैसा लगा और यदि आप हमें कोई सुझाव देना चाहते हो तो कृपया नीचे कॉमेंट्स में लिखिए।

SWING TRADING KYA HAIN & BEST SWING TRADING STRATEGY IN HINDI 2023

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शेयर मार्केट में SWING TRADING एक बहुत ही लोकप्रिय ट्रेडिंग स्ट्रेटजी हैं। जिसका उपयोग वो ट्रेडर्स लोग करते हैं, जो मार्केट से ज्यादा जोखिम नहीं उठाना चाहते। और जो ट्रेडर ट्रेडिंग के लिए अधिक समय नहीं दे सकते। उनके लिए SWING TRADING एक उत्तम विकल्प होता हैं। इस लिए SWING TRADING क्या हैं और स्विंग ट्रेडिंग कैसे करते हैं? ये हम यहां पर समझेंगे।

अब हम विस्तृत रूप में समझेंगे की SWING TRADING स्ट्रेटजी क्या होती हैं , और स्विंग ट्रेडिंग किस प्रकार से किए जाती हैं।

SWING TRADING MEANING AND SWING TRADING STRATEGY

SWING TRADING क्या है ? SWING TRADING MEANING

इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में एक दिन से लेकर कम से कम कुछ हफ़्तो तक पोजिशन को होल्ड किया जाता हैं। और चुने हुए स्टॉक की प्राइस में हो रही VOLATALITY का फायदा उठाकर ट्रेडिंग किए जाती हैं।  जब स्टॉक प्राइज अपने LOW पर होता हैं, तो उसे ख़रीद लिया जाता हैं। और जब स्टॉक प्राइज HIGH पर जाता हैं, तो उसे बेच कर प्रॉफिट बनाया जाता है। इस तरह से कीए जाने वाले ट्रेडिंग को SWING TRADING कहते हैं।

अब हम समझते हैं कि SWING TRADING कैसे करते हैं ?

SWING TRADING कैसे करें ?

SWING TRADING एक ऐसी ट्रेडिंग पद्धति है जिसमें कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों तक पोजीशन को होल्ड किया जाता है, और शॉर्ट-टर्म में होने वाली स्टॉक की प्राइज मूवमेंट का फ़ायदा उठा कर ट्रेडिंग किए जाती हैं। यह ट्रेडिंग प्रणाली SCALPING TRADING से बिल्कुल विपरीत होती है, INTRADAY TRADING में एक दिन के अंदर ही ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ करनी होती है, इस लिए SWING TRADING में इंट्राडे की तुलना में थोड़ा कम जोखिम होता हैं।

SWING TRADING EXAMPLE
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  • SWING TRADING के लिए सबसे पहले कोई अच्छा स्टॉक या इंडेक्स का चयन करें। जिसमे अच्छी VOLATALITY हो।
  • TECHNICAL ANALYSIS का उपयोग करके सर्व प्रथम कोई अच्छी सी स्ट्रेटजी बनाकर ट्रेड करे।
  • आपने जिस स्टॉक या इंडेक्स को स्विंग ट्रेडिंग हेतु चुना हैं, उसकी प्राइज में चल रहे उतार चढ़ाव को समझ लें।  
  • कब आपको ट्रेड Entry लेनी हैं और कब Exit करना हैं ये सुनिश्चित करे।
  • मार्केट में चल रहे सेंटीमेंट को समझकर ट्रेंड सुनिश्चित करे, और ट्रेड एंट्री करे।
  • आपको SWING TRADING करते समय कितना STOP LOSS और TARGET लगाकर ट्रेड लेना हैं, ये सुनिश्चित करे।
  • आपके कैपिटल अनुसार प्रॉफिट-लॉस रेश्यो सेट करके ट्रेड करे।

आपको उपर बताए गए सभी बातों को समझकर SWING TRADING करनी हैं। इस प्रकार से हमने स्विंग ट्रेडिंग कैसे करते हैं, ये समझ लिया हैं।


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SWING TRADING के लिए STOCK कैसे चुनें ?

SWING TRADING में कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों  तक स्टॉक या इंडेक्स में बनाई हुई ट्रेड पोजिशन को होल्ड किया जाता हैं। इस लिए स्विंग ट्रेडिंग के लिए आप जो स्टॉक या इंडेक्स को चुन रहे होते हो तो कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को अच्छे से समझ लेना जरूरी हैं। वह महत्त्वपूर्ण बाते कोनसी हैं, ये हम समझते हैं।

  • VOLATALITY :- हमे स्विंग ट्रेडिंग के लिए सिर्फ ऐसे स्टॉक को चुनना हैं। जिसके प्राइज में अच्छे से उतार चढ़ाव देखने को मिलता हो। मतलब हमेशा स्विंग TRADING के लिए अच्छे VOLATALITY वाले स्टॉक ही चुने। क्यू की ऐसे स्टॉक में प्रॉफिट मिलने की संभावना अधिक होती हैं।
  • MARKET TREND :- शेयर मार्केट में कोनसा ट्रेंड चल रहा हैं। मार्केट पॉजिटिव या निगेटिव मूड़ में चल रहा हैं। उसके अनुसार जिस स्टॉक के प्राइज में अच्छे उतार चढ़ाव बन रहे हो ऐसे स्टॉक के HIGH & LOW को देखकर आप SWING TRADING कर सकते हो।
  • TECHNICAL ANALYSIS :- आप टेक्निकल चार्ट पर कुछ इंडीकेटर को सेट करके भी स्टॉक प्राइज के HIGH & LOW का अंदाजा लगा सकते हो। जैसे की BOLINGER BAND, RSI,MOVEING AVERAGE का उपयोग करके भी स्टॉक प्राइज का HIGH & LOW को समझाना आसान हो जाता हैं।
  • FUNDAMENTAL NEWS :- किसी न्यूज या घटना के कारण मार्केट में कोनसा सेंटीमेंट चल रहा हैं। कोनसे सेक्टर के स्टॉक में उतार या चढ़ाव हो सकता हैं। ये सब जानकारी लेकर ही स्विंग ट्रेडिंग के लिए स्टॉक का चयन करे।

इस प्रकार से बताए गए सभी बातों को समझकर  आपको SWING TRADING करने के लिए स्टॉक को चुनना हैं।

अब हम समझते हैं की स्विंग ट्रेडिंग करने के  कोनसे नियम होते हैं?

SWING TRADING के नियम :-

शेयर मार्केट में SWING TRADING सबसे लोकप्रिय ट्रेडिंग प्रणाली हैं। लेकिन इसका उपयोग करते समय कुछ नियमों का अवश्य पालन करेंगे तो आप स्विंग ट्रेडिंग से अच्छे लाभ प्राप्त कर सकते हो। वह कोनसे नियम हैं ये अब हम समझेंगे।

  • STOCK SELECTION :- स्विंग ट्रेडिंग करने के लिए आप जिस किसी भी स्टॉक का चयन कर रहे हो उसमे HIGH VOLATILITY होनी आवश्यक होती हैं। क्यू की चुने हुए स्टॉक प्राइज में वोलाटालिटी अधिक होगी तो आपका प्रॉफिट टारगेट कम समय के अंदर ही पूरा होने की संभावना बढ़ जाती हैं। इस लिए SWNING TRADING के लिए हमेशा HIGH VOLATILE स्टॉक का ही चयन करे।
  • TRADING STRATEGY :- स्विंग ट्रेडिंग के लिए आपको एक अच्छे ट्रेडिंग स्ट्रेटजी की आवश्यकता होती हैं। जिस स्ट्रेटजी की एक्युरेसी कम से कम 70/80% निकलती हो ऐसी ही बॅक टेस्टेड स्ट्रेटजी का प्रयोग आपको SWING TRADING के लिए करना हैं। इस लिए एक अच्छी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का उपयोग करके ही स्विंग ट्रेडिंग करे।
  • CAPITAL MANAGEMENT :- स्विंग ट्रेडिंग करते समय आपको आपका सारा कैपीटल एक ही ट्रेड में बिलकुल भी नहीं लगाना चाहिए। आपको किसी ट्रेड में चाहे कितना भी कॉन्फिडेंस क्यू ना हो फिर भी किसी एक ट्रेड में पूरा कैपिटल न लगाए। क्यू की आखिर ये मार्केट हैं अगर उसी ट्रेड में आपका प्रिडिक्शन गलत हो गया तो आपको एक ही ट्रेड में बड़ा लॉस हो सकता हैं। इस लिए एक ही ट्रेड में पूरा कैपिटल लगाकर ट्रेड ना करे।
  • STOP LOSS :- आप चाहे किसी भी प्रकार में ट्रेडिंग कर रहे हो फिर भी आपको STOP LOSS लगाकर ही ट्रेडिंग करना बेहद जरूरी होता हैं। क्यू की ट्रेडर के लिए STOP LOSS एक फ्रेंड जैसा काम करता हैं। स्टॉप लॉस लगाकर ट्रेड करेंगे तो अगर आपका ट्रेंड अनुमान  गलत भी हो जाए तो भी हमे कम नुकसान हो सकता हैं। और होने वाले बड़े लॉस से स्टॉप लॉस हमे बचाता हैं। इस लिए हमेशा स्टॉप लॉस लगाकर ही ट्रेडिंग करे।
  • PROFIT & LOSS RATIO :- स्विंग ट्रेडिंग के लिए आप जो भी TRADING STRATEGY का उपयोग कर रहे हो फिर भी आपका प्रॉफिट और लॉस का रेश्यो(प्रमाण) पहले से सेट होना चाहिए। जैसे की 1:2,1:3 या फिर 1:4 तक आप प्रॉफिट लॉस रेश्यो सेट करके ट्रेडिंग करोगे तो आपको होने वाले प्रॉफिट की संभावना बढ़ जाती हैं। इस लिए हमेशा सही प्रॉफिट लॉस रेश्यो सेट करके ही SWING TRADING करे।

इस प्रकार से हमने यहां पर SWING TRADING के लिए जो जरूरी नियम होते हैं। उसे समझा हैं। इन नियमो का पालन करके ही SWING TRADING करे।

BEST SWING TRADING STRATEGY कोनसी हैं ?

SWING TRADING करने के लिए आप कोनसी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का प्रयोग कर रहे हो ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता हैं। क्यू की आप जिस किसी भी स्ट्रेटजी का उपयोग कर रहे हो उसका प्रॉफिट लॉस रेश्यो कम से कम  70/80 % तो जरूर होना चाहिए। इस लिए HIGH एक्युरेसी स्ट्रेटजी का ही स्विंग ट्रेडिंग के लिए उपयोग करे।

SWING TRADING EXAMPLE
TEJASNET SWING TRADING EXAMPLE

शेयर मार्केट में स्विंग ट्रेडिंग के लिए ट्रेडर्स तरह तरह की स्ट्रेटजी का उपयोग करते हैं। उस में से हम कुछ लोकप्रिय ट्रेडिंग स्ट्रेटजी को यहां पर समझेंगे। 

  • MOVING AVERAGE :- मूविंग एवरेज का टेक्निकल चार्ट पर उपयोग करके स्विंग ट्रेडिंग अच्छे से कीए जा सकती हैं। ये एक बहुत ही आसान तरीका हैं। आपको सिर्फ टेक्निकल चार्ट पर 4 घंटे या 1 दिन का टाइम फ्रेम सेट करके  20 या फिर 50 DAYS के EMA को सेट करना होता हैं। जब भी स्टॉक प्राइस EMA के अप साइड ब्रेकआउट देती हैं। तब वहां से आपको छोटा स्टॉप लॉस लगाकर BUY की पोजिशन लेनी हैं। इस तरह से आपको छोटा स्टॉप लॉस के बदले बड़ा प्रॉफिट मिलने की संभावना बढ़ जाती हैं।
  • BREAKOUT STRATEGY :- इस प्रकार की ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में आपने जिस स्टॉक को स्विंग ट्रेडिंग के लिए चुना हैं, उसका प्राइस अगर एक ही झोन मे ट्रेड कर रहा हैं , तो ऐसे में उस स्टॉक का प्राइस जब भी ऊपर की साईड में ब्रेकआउट देगा, उस मोमेंट का आपको इन्तजार करना हैं। जब भी स्टॉक का  प्राइस अप साइड जाता हैं, और उस झोन को अप साईड मे ब्रेक कर देता हैं, तो वहा से तुरंत आपको छोटा स्टॉप लॉस लगाकर BUY की पोजिशन लेनी हैं। इस तरह से बड़ी प्रॉफिट रैली मिलने की संभावना अधिक होती हैं। अगर लॉस हुआ तो छोटा होगा और प्रॉफिट बड़ा मिल सकता हैं।
  • SUPPORT & RESISTANCE :- सपोर्ट और रेसिस्टेंस का उपयोग करके भी SWING TRADING आसानी से किए जाती हैं। इस स्ट्रैटेजी में आपको टेक्निकल चार्ट पर PIVOT PONIT इस इंडीकेटर को सेट करना हैं। इसके बाद आपको चार्ट पर ऑटोमेटिकली  सपोर्ट और रेसिस्टेंस लेवल मिल जाएंगे। उसका उपयोग करके आपको आसानी से ट्रेड एंट्री मिल सकती हैं। इसमें  आपको सपोर्ट पर छोटा स्टॉप लॉस लगाकर BUY पोजिशन लेनी हैं। और जब स्टॉक प्राइज रेजिस्टेंस लेवल पर जाता हैं,  वहा पर आपको प्रॉफिट बुक करना होता हैं। इस तरह से बिल्कुल आसान तरीके से आप स्विंग ट्रेडिंग कर सकते हो।
  • MARKET TREND :- अगर आपको शेयर मार्केट का सही नॉलेज हैं, तो आप आसानी से स्टॉक का ट्रेंड BULLIAH हैं या BEARISH चल रहा हैं, इसका अनुमान लगा सकते हो। और मार्केट में चल रहे ट्रेंड को फॉलो करके ट्रेड ENTRY और EXIT कर सकते हो। आपको सिर्फ स्टॉक प्राइज के TREND को ही देखकर जब प्राइज लो पर होगा तो वहा से छोटा स्टॉप लॉस लगाकर BUY पोजिशन लेनी हैं। और HIGH पर प्रॉफिट बुक करके ट्रेड पोजिशन से एक्जिट लेनी हैं। इस तरह से भी आप SWING TRADING कर सकते हो।

इस प्रकार से हमने SWING TRADING के लिए जो बेस्ट ट्रेडिंग स्ट्रेटजी होती हैं, उन्हें यहां पर समझा हैं। लेकिन ध्यान रहे, आपको हमेशा मार्केट का सावधानी और सूझबूझ से अनुमान लगाना हैं। इसी के साथ आपको स्टॉप लॉस लगाकर ही ट्रेडिंग करनी बहुत जरूरी हैं।

अब हम स्विंग ट्रेडिंग को उदाहरण के साथ समझते हैं।

SWING TRADING EXAMPLE :-

मान लीजिए कि WIPRO इस स्टॉक का करंट प्राइज 390₹ पर चल रहा हैं। और आपको लगता हैं, की WIPRO इस स्टॉक का प्राइज 390₹ से  480₹+ जा सकता हैं। तो आप ऐसे में 390₹ के नीचे 20 पॉइंट्स मतलब 370₹ का स्टॉप लॉस लगाकर 470/80₹+ प्रॉफिट टारगेट के लिए 100 क्वांटिटी  BUY करते हो। और आप इस पोजीशन को कुछ दिनों तक होल्ड करके प्रॉफिट का इंतजार करते हो। इसे SWING TRADING कहते हैं।

और फिर कुछ दिनों बाद आपने जैसा अनुमान लगाया था बिल्कुल वैसा ही होकर WIPRO इस स्टॉक  का प्राइज 390₹ से बढ़कर 470₹ हो जाता हैं। तो आपको ऐसी स्थिति में 20 पॉइंट्स के रिस्क लेने के बदले 80 पॉइंट्स का प्रॉफिट हो जाता हैं । और आपने 100 क्वांटिटी को खरीदा था , तो इस लिए आपको 80 पॉइंट्स प्रॉफिट के हिसाब से 8000₹ का प्रॉफिट हो जाता हैं।

इस प्रकार से स्विंग ट्रेडिंग किए जाती हैं। और मार्केट से प्रॉफिट बनाया जाता हैं।

अब हम SWING TRADING के फायदे और नुकसान क्या हैं ये समझते हैं।

SWING TRADING के फायदे :-

SWING TRADING इस ट्रेडिंग प्रकार में एक दिन से लेकर कुछ हफ्तों तक ट्रेड पोजिशन होल्ड करके ट्रेडिंग किए जाती हैं। इस ट्रेडिंग प्रणाली के क्या फायदे होते हैं, ये हम यहाँ पर समझेंगे।

  • LOW RISK :- इंट्राडे ट्रेडिंग की तुलना में स्विंग ट्रेडिंग में समय अधिक होता हैं। इस लिए जब आपकी ट्रेड पोजिशन लॉस में चल रही होती हैं,  तब जल्दबाजी में लॉस बुक करने की कोई आवश्यकता नही होती। 1 दिन से लेकर हफ्तों तक आप पोजिशन होल्ड करके, जब आपका ट्रेड प्रॉफिट में चल रहा हो तब ही प्रॉफिट बुक करके पोजिशन से एक्जिट कर सकते हो। इस लिए समय के अधिक होने के कारण आपका जोखिम यहां बहुत ही कम हो जाता हैं।
  • EMOTION :- इस ट्रेडिंग प्रणाली में हमे कुछ हफ्तों तक का समय मिलता हैं, इस कारण यदि शुरू में हमारी पोजिशन लॉस में चल रही हो, फिर भी हम कुछ ज्यादा परेशान या इमोशन में आकर  पोजिशन लॉस में काटने की नही सोचते। क्यू की हमारे पास समय अधिक होता हैं। इस लिए हम जब प्रॉफिट होगा, तब ही पोजिशन को स्क्वेयर ऑफ करने की सोचते हैं। कहा जाए तो यहां एक प्रकार से इमोशन लेस ट्रेडिंग होती हैं।
  • TIME :- जैसे की इंट्राडे में हमे जब तक हमारी ट्रेड  पॉजिशन स्क्वेयर ऑफ नही हो जाती, तब तक मार्केट को देखना पड़ता हैं। लेकिन स्विंग ट्रेडिंग में हमे कुछ हफ्तों तक का समय मिलता हैं। इस लिए एक बार पोजिशन लेने बाद मार्केट पर नजर रखने की कोई जरूरत नही होती। जिनको ट्रेडिंग के लिए ज्यादा समय नहीं मिलता उन ट्रेडर्स के लिए स्विंग ट्रेडिंग एक अच्छा विकल्प हैं।
  • BIG PROFIT :- स्विंग ट्रेडिंग में ट्रेडर्स लंबे समय तक पोजीशन होल्ड करते हैं, तो ऐसे में जब उस स्टॉक प्राइस में बड़ी मूवमेंट होती हैं, तो बड़ी प्रॉफिट रैली मिलने की संभावना अधिक होती हैं। इस लिए SWING TRADING में बड़े प्रॉफिट मिल सकते हैं।

SWING TRADING के नुकसान :-

  • CAPITAL :- इंट्राडे ट्रेडिंग में हम अपने ब्रोकर से कुछ परसेंट मार्जिन लेकर ट्रेडिंग कर सकते हैं। लेकिन स्विंग ट्रेडिंग एक दिन से अधिक समय में होती हैं , इस लिए ब्रोकर से हमे मार्जिन नही मिलता। तो हमे स्विंग ट्रेडिंग करने के लिए पूरा कैपिटल खुद का ही इस्तेमाल करना होता हैं। तो यहां बड़ा कैपिटल की आवश्यकता होती हैं। इस लिए ज्यादा तर स्मॉल केपिटल वाले ट्रेडर्स स्विंग ट्रेडिंग चाहकर भी नही कर सकते।
  • RISK :- स्विंग ट्रेडिंग में जो बड़े इन्वेस्टर होते हैं, वो बड़ी क्वांटिटी को लेकर पोजिशन बनाते हैं। ऐसे में अगर किसी ट्रेड में ट्रेंड अनुमान गलत हो जाए और स्टॉप लॉस हिट हो जाए तो यहां पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  • ANALYSIS :- इंट्राडे ट्रेडिंग की तुलना में SWING TRADING में बहुत ही रिसर्च और एनालिसिस करना जरूरी होता हैं। सही रिसर्च और एनालिसिस ना हो तो नुकसान हो सकता हैं।

इस प्रकार से हमने यहां पर स्विंग ट्रेडिंग के फायदे क्या हैं और नुकसान क्या होते हैं , ये अच्छे से समझा हैं।

आपने इस लेख से क्या सीखा ?

हमने यहां पर स्विंग ट्रेडिंग क्या होती हैं ? और स्विंग कैसे कीए जाती हैं? ये विस्तृत रूप में समझने की कोशिश की हैं। हमने ये समझा की इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में 1 दिन से लेकर कुछ हफ्तों तक पोजिशन होल्ड कर सकते हैं। यहां छोटा स्टॉपलॉस लगाकर बडे़ प्रॉफिट टारगेट सेट करके ट्रेडिंग होती हैं। स्विंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में ट्रेडिंग करने के लिए एक बहुत बड़े कैपिटल की आवश्यकता होती हैं। इस तरह से यहाँ हमने SWING TRADING के बारे में विस्तुत रूप में जानकारी देने का प्रयास किया हैं। ये सब जानकारी आपके लिए उपयुक्त हो ये अपेक्षा करते हैं। आपको ये लेख कैसा लगा और यदि आप हमे कोई सुझाव देना चाहते हो तो कृपया कॉमेंट्स में लिखिए।

OPTION TRADING KYA HAIN AUR KAISE KARE ? BEST OPTION TRADING STRATEGY IN HINDI 2023

OPTION TRADING

भारतीय शेयर मार्केट में पिछले कुछ सालों से OPTION TRADING करने वाले ट्रेडर्स का प्रमाण बढ़ गया हैं। क्यू की जो लोग नए नए DEMAT ACCOUNT खोलते हैं उन्हें शेयर मार्केट की सही जानकारी नहीं होती हैं। तो इन्हें ऑप्शन ट्रेडिंग ये सेगमेंट कुछ ज्यादा ही आसान लगने लगता हैं। क्यू की लॉस लिमिटेड और प्रॉफिट अन लिमिटेड ये उनके दिमाग में बैठ जाता हैं। लेकिन असल में ऐसा होता नहीं हैं।

OPTION TRADING बहुत ही जोख़िम भरा होता हैं। HIGH VOLATILITY के कारण यहां पर TREND को प्रिडिक्ट करना बहुत मुश्किल काम होता हैं। ये एक समय निर्धारित सेगमेंट होता हैं। अब हम समझते हैं की OPTION TRADING क्या हैं और कैसे करते हैं।

OPTION TRADING

OPTION TRADING क्या होता हैं?

OPTION TRADING का मतलब DERIVATIVES TRADING होता हैं। INTRADAY TRADING करने वाले ट्रेडर्स के लिए और स्मॉल केपिटल वाले ट्रेडर्स के लिए भी ऑप्शन ट्रेडिंग एक अच्छा विकल्प होता हैं। इस कारण छोटा कैपिटल लेकर आए नए नए ट्रेडर्स यहां पर अधिक प्रमाण में आकर्षित होते हैं।

OPTION TRADING ये एक ऐसा समय सीमा निर्धारित CONTRACT सेगमेंट हैं। जिसमे निर्धारित समय का मूल्य (प्रीमियम) देकर ट्रेडिंग की जाती हैं। और जैसे जैसे समय खतम हो जाता हैं। वैसे वैसे समय का मूल्य (प्रीमियम) भी घटता जाता हैं। लेकिन इसमे एक विशेष बात यह होती हैं की आपने जितने प्रीमियम को देकर ट्रेड लिया हैं। उतना ही आपका लॉस हो सकता हैं।

मतलब आपका लॉस होगा तो जितना आपने प्रीमियम देकर ट्रेड लिया था। उतना ही आपका  आखरी लॉस होगा। और एक बात यहां प्रॉफिट का कोई लिमिट नही होता है। टाइम वैल्यू अनुसार छोटा प्रीमियम देकर लॉट साइज में खरीदी और बिकवाली करके प्रॉफिट बनाने की ट्रेडिंग प्रक्रिया को OPTION TRADING कहते हैं।

इस सेगमेंट में छोटे कैपिटल से बड़े प्रॉफिट कमाने हेतु ट्रेडिंग हो सकती हैं। अगर लॉस हुआ तो जितना आपने प्रीमियम दिया हैं उतना ही होगा। और प्रॉफिट अन लिमिट भी हो सकता हैं ।

ऐसे कॉन्सेप्ट के कारण नए नए ट्रेडर्स लोग ऑप्शन ट्रेंडिंग की और अधिक आकर्षित हो रहे हैं। लेकिन ऑप्शन ट्रेडिंग बहुत ही जोखिम भरा होता हैं। मार्केट की सही जानकारी ना होने और HIGH VOLATILITY के कारण ये लोग यहां अपने पैसे गवा दे रहे हैं।

लेकिन सही तकनीक से TECHNICAL ANALYSIS करके ऑप्शन ट्रेडिंग से भी बहुत अच्छे प्रॉफिट कमाए जा सकते हैं। अब हम समझते हैं की OPTION TRADING किस प्रकार से की जाती हैं।

OPTION TRADING कैसे करते हैं ?

OPTION TRADING स्टॉक और इंडेक्स दोनो में ही की जाती हैं। इस ट्रेडिंग प्रणाली में सुनिश्चित किए हुए स्टॉक या इंडेक्स को लेकर लॉट के हिसाब से ट्रेडिंग की जाती हैं। जैसे की FUTURE में किए जाती हैं।

STOCK LOT SIZE EXAMPLE :-

  • CIPLA  :- 650 QUANTITY
  • TATA MOTERS :- 1425 QUANTITY

INDEX LOT SIZE EXAMPLE :-

  • NIFTY :- 50 QUANTITY
  • BANKNIFTY :- 25 QUANTITY

इस प्रकार से लॉट साइज के हिसाब से ट्रेडिंग होती हैं। मगर ये एक समय निर्धारित CONTRACT होने के कारण एक अवधि के बाद ये CONTRACT एक्सपायर भी होता हैं। इस तरह स्टॉक और इंडेक्स की EXPIRY DATE भी अलग अलग होती हैं। जैसे की स्टॉक में ये हर महीने की एक सुनिश्चित तिथि को होती हैं। और इंडेक्स में ये हर हफ्ते गुरुवार के दिन होती हैं। इस लिए स्टॉक की तुलना में इंडेक्स में वोलाटालिटी अधिक देखने को मिलती हैं।

ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे करते हैं ये समझने से पहले हमे ऑप्शन ट्रेडिंग कितने प्रकार से करते हैं। ये समझना जरूरी होगा।

OPTION TRADING के प्रकार :-

जैसे की हम सब जानते हैं की नॉर्मल ट्रेडिंग में हम पहले SELL करके बाद में BUY करके भी प्रॉफिट बनाने का प्रयास कर सकते हैं। लेकिन इस ट्रेडिंग प्रणाली में ज्यादातर सिर्फ BUY करके ही ट्रेड एंट्री ली जाती हैं। इसका मतलब OPTION TRADING में SELL करके एंट्री नहीं की जा सकती ऐसा बिल्कुल भी नही हैं।

ऑप्शन में SELL करके भी ट्रेड में एंट्री की जा सकती हैं पर ऑप्शन BUY करने की तुलना में ऑप्शन SELL करने के लिए एक बड़े कैपिटल की आवश्यकता होती हैं। और ज्यादातर ट्रेडर्स का कैपिटल स्मॉल होता हैं। इस लिए वो कम प्रीमियम का ऑप्शन BUY करना ही अधिक पसंद करते हैं।

ऑप्शन ट्रेडिंग में अधिक प्रमाण में BUYING होती है। इसका और एक कारण भी हैं।ऑप्शन SELL करते हुए बड़े कैपिटल की आवश्यकता होती हैं। ये तो हो गया लेकिन उसके साथ साथ ऑप्शन ट्रेडिंग में ऑप्शन सेल करके होना वाला प्रॉफिट जितना आपका प्रीमियम हैं उतना ही हो सकता हैं। और STOP LOSS ना लगाकर ट्रेड किया तो होने वाला लॉस अन लिमिटेड भी हो सकता हैं। मतलब की यहां पर उल्टा होता हैं। प्रॉफिट लिमिटेड और लॉस अनलिमिटेड होता हैं।

इस कारण ऑप्शन BUYER का प्रमाण SELLER से अधिक होता हैं।

OPTION TRADING में आपने चुना हुआ स्टॉक या इंडेक्स पर आपका प्रिडिक्शन BULLISH या BEARISH हैं। इस के आधार पर OPTION में मुख्य रूप से दो प्रकार से ट्रेडिंग की जाती हैं।

  • CALL OPTION TRADING
  • PUT OPTION TRADING

किसी भी स्टॉक या इंडेक्स के प्राइस के बढ़ते और गिरते क्रमानुसार OPTION CHAIN बनती रहती हैं। CALL OPTION की प्राइस स्टॉक या इंडेक्स के चढ़ते क्रमानुसार बढ़ती जाती हैं। और PUT OPTION की प्राइस स्टॉक या इंडेक्स के गिरते क्रमानुसार बढ़ती जाती हैं। ऑप्शन में ये समझना बेहद जरूरी हैं।

इस प्रकार से OPTION CHAIN में CALL OPTION को ‘CE’ से और PUT OPTION को ‘PE’ से निर्देशित किया जाता हैं।


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अब हम CALL OPTION और PUT OPTION क्या होता हैं ? और इसमें कैसे ट्रेडिंग की जाती हैं ये समझेंगे।

CALL OPTION क्या हैं और CALL OPTION में कैसे ट्रेड करे?

जब आपको लगता हैं की आपने चुना हुआ स्टॉक या इंडेक्स का प्राइस बढ़ने वाला हैं। मतलब उस स्टॉक या इंडेक्स पर आपका प्रिडिक्शन BULLISH हैं। तो एसी स्थिति में आप उस स्टॉक या इंडेक्स के स्ट्राइक प्राइज पर चल रहे ‘CE’ के प्रीमियम को लॉट साइज के स्वरूप में BUY करते हो तो उसे CALL OPTION TRADING कहते हैं।

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BANKNIFTY CALL OPTION CHAIN

इसका सरल अर्थ ये होता हैं की कॉल ऑप्शन BULLISH TREND निर्देषित ट्रेडिंग होती हैं। और CALL OPTION को  संक्षिप्त में ‘CE’ कहते हैं। चलिए अब CALL OPTION को हम उदाहरण से समझते हैं।

CALL OPRMTION EXAMPLE :-

मान लीजिए आपने BANKNIFTY को ऑप्शन के लिए चुना हैं। और आपको लगता हैं की बैंकनिफ्टी करंट प्राइस से बढ़ने वाला हैं। BANKNIFTY उस टाइम 42000 पर चल रहा हैं। ऐसी स्थिति में आपने BANKNIFTY के 42000 CE (CALL OPTION) को 300₹ प्रीमियम पर 1 लॉट BUY कर लिया । और आपके प्रिडिक्शन अनुसार  बैंकनिफ्टी के उसी ऑप्शन EXPIRY DATE तक 42000CE के कॉल ऑप्शन का प्राइस 300₹ से बढ़कर 370₹ हो जाता हैं। और बैंकनिफ्टी का लॉट साइज 25 हैं। तो उस हिसाब से आपको एक लॉट पर 1500₹ का प्रॉफिट हुआ। इस तरह से CALL OPTION में ट्रेडिंग होती हैं। 

PUT OPTION इससे एकदम उल्टा होता हैं।अब हम समझते हैं की PUT OPTION क्या हैं।

PUT OPTION क्या हैं और PUT OPTION में कैसे ट्रेड करे ?

जब आपको लगता हैं की आपने चुना हुआ स्टॉक या इंडेक्स का प्राइस गिरने वाला हैं। मतलब उस स्टॉक या इंडेक्स पर आपका प्रिडिक्शन BEARISH हैं। तो एसी स्थिति में आप उस स्टॉक या इंडेक्स के स्ट्राइक प्राइज पर चल रहे ‘PE’ के प्रीमियम को लॉट साइज स्वरूप में BUY करते हो तो उसे PUT OPTION TRADING कहते हैं।

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BANKNIFTY PUT OPTION CHAIN

इसका अर्थ ये निकलता हैं की पुट ऑप्शन BEARISH TREND निर्देषित ट्रेडिंग होती हैं। और PUT OPTION को  संक्षिप्त में ‘PE’ कहते हैं।

अब हम PUT OPTION को उदाहरण से समझते हैं।

PUT OPTION EXAMPLE :-

ऐसा मान लीजिए की आपने NIFTY को ऑप्शन के लिए चुना हैं। और आपको लग रहा हैं की NIFTY करंट प्राइस से गिरने वाला हैं। NIFTY उस टाइम 18000 पर चल रहा हैं। ऐसी स्थिति में आपने NIFTY के 18000 PE (PUT OPTION) को 150₹ प्रीमियम पर 1 लॉट BUY कर दिया ।और आपके प्रिडिक्शन अनुसार निफ्टी के उसी ऑप्शन EXPIRY DATE तक 18000PE के पुट ऑप्शन का प्राइस 150₹ से बढ़कर 190₹ हो गया। NIFTY का लॉट साइज 50 हैं। तो उस हिसाब से आपको एक लॉट पर 2000₹ का प्रॉफिट हुआ। इस प्रकार से PUT OPTION में ट्रेडिंग की जाती हैं।

OPTION PREMIUM VALUE :-

जैसे की हमने यहां पर समझा की OPTION TRADING एक समय सीमित कॉन्ट्रैक्ट ट्रेडिंग होती हैं। तो किसी भी स्टॉक या इंडेक्स के ऑप्शन का प्रीमियम वैल्यू दो बातों पर निर्भर होता हैं।

OPTION TRADING में ट्रेडिंग करने से पहले आपको OPTION CHAIN और GREEK की समझ होनी जरूरी हैं। आपने जिस स्टॉक या इंडेक्स को ट्रेडिंग के लिए चुना हैं। उसकी चल रहीं मार्केट प्राइस बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। आपने किस प्राइज पर ट्रेड लिया हैं उस पर ही आपका प्रॉफिट और लॉस डिपेंड होता हैं। उसे हम नीचे उदाहरण से समझेंगे।

OPTION CHAIN क्या होता हैं ?

किसी भी स्टॉक या इंडेक्स के ऑप्शन में तीन प्राइस को लेकर ट्रेडिंग किए जाती हैं। और इन तीनो प्राइस लिस्ट से ही स्टॉक या इंडेक्स की OPTION CHAIN बनती हैं।

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BANKNIFTY CALL & PUT BOTH SIDE OPTION CHAIN
  • 1) AT THE MONEY (ATM) :- किसी भी स्टॉक या इंडेक्स का जो करंट प्राइस चल रहा होता हैं। उस ऑप्शन प्राइज को AT THE MONEY ऑप्शन कहते हैं। ATM ऑप्शन प्राइज प्रीमियम को लेकर ट्रेडिंग करना हमेशा उचित होता हैं। लेकिन इसका प्रीमियम हमेशा अधिक होता है।

EXAMPLE :- मान लीजिए BANKNIFTY का करंट रेट 42030 चल रहा हैं तो BANKNIFTY का AT THE MONEY 42000 होगा। उस समय 42000 पर जो प्रीमियम चल रहा हैं उसे AT THE MONEY प्राइज(ATM) कहते हैं।

  • 2) IN THE MONEY ( ITM) :- किसी भी स्टॉक या इंडेक्स का जो करंट प्राइस चल रहा होता हैं। तो ऐसे में उसके TREND के हिसाब से अंदर का जो प्राइज लिस्ट होता हैं। उसे IN THE MONEY PRICE ( ITM ) कहते हैं। ITM ऑप्शन प्राइज प्रीमियम को लेकर ट्रेडिंग करना हमेशा उचित होता हैं। लेकिन इसका प्रीमियम हमेशा ATM प्राइज से भी अधिक होता है। इसमें आपको होने वाले लॉस की संभावना बहुत कम हो सकती हैं। लेकिन यहां प्रीमियम भी ज्यादा देना पड़ता हैं।

EXAMPLE :- मान लीजिए BANKNIFTY का करंट रेट 42030 चल रहा हैं तो BANKNIFTY का IN THE MONEY प्राइस CALL SIDE में 42000 से कम चल रही प्राइज लिस्ट से शुरू होगा। जैसे की..41900/800/700 ऐसे.. और PUT SIDE में 42000 से ज्यादा बढ़ रही प्राइज लिस्ट से शुरू होगा। जैसे की.. 42100/200/300 ऐसे।

  • 3) OUT OF THE MONEY :- किसी भी स्टॉक या इंडेक्स का जो करंट प्राइस चल रहा होता हैं। तो उसके चल रहे TREND के हिसाब से करंट प्राइज से जितना दूर जाने वाला प्राइज लिस्ट होता हैं। वो सब OUT OF MONEY में आता हैं। उसे OUT OF MONEY PRISE कहते हैं। OUT OF MONEY में करंट ऑप्शन प्राइज से ज्यादा दूर के प्रीमियम को लेकर ट्रेडिंग करना जोखिम भरा हो सकता हैं। लेकिन इसका प्रीमियम हमेशा ATM प्राइज से हमेशा कम होता है। इसमें आपको होने वाले लॉस की संभावना बढ जाती हैं। लेकिन यहां प्रीमियम भी सबसे कम देना पड़ता हैं।

EXAMPLE:- मान लीजिए BANKNIFTY का करंट रेट 42030 चल रहा हैं तो BANKNIFTY का OUT OF MONEY प्राइस CALL SIDE में 42000 से बढ़ रही प्राइज लिस्ट से शुरू होगा। जैसे की..42100/200/300 ऐसे.. और PUT SIDE में 42000 से कम हो रही प्राइज लिस्ट से शुरू होगा। जैसे की.. 41900/800/700 ऐसे होगा।

इस प्रकार से हमने ऑप्शन चैन को विस्तृत में समझा हैं। और ऑप्शन में किस प्रीमियम को लेकर OPTION TRADING करना सही होगा ये जानकारी यहां से प्राप्त की हैं।

OPTION PREMIUM क्या होता हैं ?

किसी स्टॉक या इंडेक्स के ऑप्शन का प्रीमियम दो मूल्यों से बनता हैं। वो क्या होते हैं ये हम अब समझेंगे।

  • INTRINSIC VALUE ( मूल कीमत ) :- किसी स्टॉक या इंडेक्स की INTRINSIC VALUE उसकी स्ट्राइक प्राइज और स्टॉक या इंडेक्स की चल रही करंट प्राइस के बीच में होने वाले डिफरेंस पर आधारित होती हैं। INTRINSIC VALUE से हमे होने वाले प्रॉफिट का अंदाजा मिल सकता हैं। इससे हमे किस स्ट्राइक प्राइज से ट्रेड लेना हैं इसकी जानकारी मिलती हैं।
  • TIME VALUE( समय कीमत ) :- TIME VALUE उस स्टॉक या इंडेक्स की EXPIRY DATE और VOLATILITY पर आधारित होती हैं। EXPIRY DATE जैसे जैसे नजदीक आती हैं वैसे TIME VALUE कम होती जाती हैं।

इस प्रकार से INTRINSIC VALUE और TIME VALUE पर स्टॉक या इंडेक्स के प्रीमियम की वैल्यू निर्धारित होती हैं।

OPTION TRADING STRATEGIES IN HINDI

शेयर मार्केट में OPTION TRADING ये एक ऐसा सेगमेंट की यहां पर नए ट्रेडर हो या अनुभवी ये सब आकर्षित होते हैं। मगर जिनको OPTION TRADING के बारे में सही जानकारी और समझ हैं वो ट्रेडर्स यहां से पैसा कमाते हैं। बाकी यहां अपने पैसे गवा देते हैं।

लेकिन शेयर मार्केट की सही जानकारी और सुझबुझ जिन्हें हैं वो ट्रेडर्स OPTION TRADING में कम कैपिटल के साथ कम अवधि में अच्छे प्रॉफिट कमाते हैं। इस के लिए वो कुछ तकनीक और स्ट्रेटजी का उपयोग करते हैं। तो हम OPTION TRADING के लिए सबसे असरदार और बेहतर स्ट्रेटजी कोनसी हैं ये हम यहां पर समझेंगे।

  • SCALPING TRADING :- स्कैल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का OPTION TRADING में सबसे अधिक उपयोग किया जाता हैं। क्यू की स्कैल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में स्टॉक या इंडेक्स के HIGH VOLATILITY का फ़ायदा उठाया जाता हैं। स्टॉक या इंडेक्स में होने वाली मूवमेंट अनुसार हर एक स्विंग पर छोटे स्टॉप लॉस को सेट करके छोटे छोटे प्रॉफिट बुक करने के लिए बार बार ट्रेड लिए जाते हैं। ऑप्शन में HIGH VOLATILITY होने के कारण यहां पर स्कैल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का आसानी से उपयोग करके ऑप्शन में ट्रेडिंग की जाती हैं। स्कैल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी क्या हैं और कैसे की जाती हैं ये समझने के लिए यहां पर क्लिक करे।
  • CALL – PUT HEDGING :- इस ऑप्शन स्ट्रेटजी का भी सबसे अधिक में उपयोग किया जाता हैं। क्यू की ये स्ट्रेटजी जो ट्रेडर नए हैं और मार्केट के बारे में उन्हें कुछ ज्यादा जानकारी नहीं हैं। उनके लिए समझने में बिल्कुल आसान होती हैं। जिनको स्टॉक या इंडेक्स का TREND अप साइड हैं या डाउन साइड ये पता करना मुश्किल हो जाता हैं। ऐसे में वो ट्रेडर्स किसी स्टॉक या इंडेक्स की समान EXPIRY DATE की एक ही स्ट्राइक प्राइज के CALL और PUT ऑप्शन दोनो ही समान क्वांटिटी में खरीद लेते हैं। फिर मार्केट चाहे किसी भी TREND की साइड में जाए। ये ट्रेडर्स इस स्ट्रेटजी से OPTION TRADING में आसानी से प्रॉफिट कमाते हैं। मगर SIDEWAYS मार्केट में इस स्ट्रेटजी से लॉस भी हो सकता हैं। ये स्ट्रेटजी TRANDING मार्केट में ही अच्छे प्रॉफिट रिजल्ट दे सकती हैं। इस स्ट्रेटजी को OPTION STRADDLE भी कहते हैं।
  • EMA CROSS OVER:- टेक्निकल चार्ट पर EMA इस इंडिकेटर की मदत से भी OPTION TRADING किए जाती हैं। EXPONATIONAL MOVING AVERAGE ( EMA ) ये एक सबसे लोकप्रिय और समझने के लिए सबसे आसान इंडिकेटर हैं। इसके लिए हमें चार्ट पर 5 से 15 मिनिट के बीच का टाइम फ्रेम सेट करना होता हैं। और फिर इंडीकेटर में जाकर आपको 9DAYS और 20DAYS ऐसे 2 EMA सेट करने होते हैं। और फिर जैसे ही टेक्निकल चार्ट पर 9DAYS का EMA 20DAYS के EMA को उपर की साइड क्रॉस करे तो आपको उस स्टॉक या इंडेक्स का CALL को BUY करना हैं। और वैसे ही चार्ट पर 9DAYS का EMA 20DAYS के EMA को नीचे की साइड को क्रॉस करे तो आपको उस स्टॉक या इंडेक्स के PUT को BUY करना हैं। इस प्रकार से यहां पर छोटा स्टॉपलॉस लगाकर आप OPTION TRADING कर सकते हों।

इस प्रकार से हमने यहां पर OPTION TRADING STRATEGIES को समझा हैं। अब हम ऑप्शन ट्रेडिंग टिप्स और नियमों को समझते हैं।

OPTION TRADING TIPS :-

OPTION TRADING समय निर्धारित ट्रेडिंग होती हैं। और HIGH VOLATILITY के कारण ये जोख़िम भरी भी होती हैं। लेकिन कुछ नियमों का पालन करके इस सेगमेंट्स से भी अच्छे प्रॉफिट कमाए जा सकते हैं।

  • HIGH VOLATILITY :- OPTION TRADING में सबसे महत्वपूर्ण होता स्टॉक या इंडेक्स का चयन करना। जो स्टॉक या इंडेक्स HIGH VOLATILE  होते हैं तो उसमे ट्रेड कम समय में पूरा हो जाता हैं। और कम VOLATILITY हो तो ऑप्शन का प्रीमियम समय अनुसार घटते जाता हैं। इस लिए OPTION TRADING के लिए HIGH VOLATILE स्टॉक या इंडेक्स का ही चयन करे।
  • LOT SIZE :- ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए आपका कैपिटल कितना हैं। उस के अनुसार ही LOT SIZE लेनी जरूरी होती हैं। अगर आपने LOT SIZE बहुत बड़ा लिया हैं।और उसी ट्रेड में आपको कुछ पॉइंट्स का भी लॉस हो जाता हैं। तो भी ऐसे में आपको बहुत बड़ा लॉस हो सकता हैं। लॉट साइज हमेशा उतनी ही लीजिए जितना आप लॉस सेह कर सकोगे। इस लिए हमेशा अपने केपिटल अनुसार ही लॉट साइज लेकर ट्रेडिंग करे।
  • STRIKE PRISE :- जिस स्टॉक या इंडेक्स को आपने ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए चुना हैं। उसके चल रहे करंट प्राइज से ट्रेंड के हिसाब से ज्यादा दूर का ऑप्शन प्रीमियम ना खरीदे। मतलब OUT OF THE MONEY ऑप्शन प्रीमियम लेकर प्रॉफिट होने का CHANCE बहुत ही कम होता हैं। जब आपके ट्रेंड की साईड बड़ी मूवरमेंट रैली आती हैं तो ही OTM प्रीमियम से आपको प्रॉफिट होने के चांस बढ़ जाते हैं। और मार्केट में बड़ी रैली बार बार नहीं आती हैं। इस लिए चल रहे करंट प्राइज ( ATM ) प्रीमियम को ही OPTION TRADING के लिए चुनिए।
  • PROFIT & LOSS RATIO :- किसी भी ट्रेडिंग सेगमेंट में PROFIT -LOSS रेश्यो बहुत महत्वपूर्ण होता हैं। ऑप्शन में भी आप 1:2 से 1:4 तक ही प्रॉफिट लॉस रेश्यो सेट करके OPTION में ट्रेडिंग करे। मतलब छोटा स्टॉपलॉस लगाकर उससे अधिक का प्रॉफिट टारगेट सेट करके ट्रेडिंग करे। लेकिन बहुत बड़ा टारगेट भी सेट ना करे। हमेशा PROFIT – LOSS रेश्यो सेट करके ही ट्रेडिंग करे।
  • MARKET TREND :- हमेशा मार्केट में चल रहे TREND को जानकर ही ट्रेड करे। RANGE BOND मार्केट में ओवर ट्रेड बिल्कुल भी न करे। ऐसी स्थिति में आपका प्रीमियम घटते जायेगा और आपको अन्त में आपको बड़ा लॉस उठाना पड़ेगा। इस लिए हमेशा जो TREND चल रहा हैं। उस हिसाब से ही ट्रेड कीजिए। रेंज बाउंड मार्केट के चलते ट्रेडिंग ना करे। ऐसे में आपका स्टॉप लॉस बार बार हिट होगा और टारगेट मिस होता रहेगा। इस लिए मार्केट जब TRENDING हो तो ही ट्रेडिंग करे।
  • OVER TRADE :-  सभी प्रकार के ट्रेडिंग में OVER TRADE करना जोखिम भरा हो सकता हैं। क्यू की हर बार हमारा प्रिडिक्शन (अनुमान) सही नही हो सकता। तो बार बार ट्रेड लेने से हम हर बार जोखिम ले लेते हैं। इस लिए OVER TRADE करके अपना कैपिटल जोखिम में ना लाए। और जब सही में ट्रेड का मौका लग रहा हो तो ही ट्रेड एंट्री कीजिए।

इस प्रकार से हमने यहां पर OPTION TRADING के लिए जरूरी टिप्स और नियमो को समझा हैं।

OPTION TRADING के फ़ायदे और नुकसान क्या हैं ?

भारतीय शेयर मार्केट में OPTION TRADING सेगमेंट सबसे लोकप्रिय ट्रेडिंग सेगमेंट बनता जा रहा हैं। लेकिन इस सेगमेंट के फायदे के साथ साथ कुछ नुकसान भी होते हैं।

OPTION TRADING के फायदे :-

  • ऑप्शन ट्रेडिंग का सबसे बड़ा फायदा ये हैं की इस सेगमेंट में जिसका कैपिटल सबसे छोटा हैं। उसको भी कम प्रीमियम पर यहां बड़ी वेल्यू स्टॉक या इंडेक्स में ट्रेडिंग का मोका मिलता हैं। और वो भी ऑप्शन में आसानी से ट्रेडिंग करके अच्छा प्रॉफिट कमा सकता हैं।
  • इस सेगमेंट में लॉट साइज में ट्रेडिंग होती हैं। कम प्रीमियम पर यहां बड़ी वेल्यू स्टॉक या इंडेक्स में ट्रेडिंग होती हैं। इस कारण ऑप्शन में ट्रेडिंग ट्रांसेक्शन टर्नओवर भी कम हो हो जाता हैं। तो ऐसे में ऑप्शन में लॉट अनुसार 13₹ से 20₹ के बीच में ही ब्रोकरेज चार्ज होता हैं।जो की बहुत ही कम होता हैं।
  • ऑप्शन ट्रेडिंग में यदि आप सही तरह से TREND को PREDICT ( अनुमान ) नहीं कर पा रहे हो तो भी आप दोनो साइड के CALL और PUT ऑप्शन को ख़रीद के HEDGING कर सकते हो।
  • OPTION TRADING में हाई वोलेटिलिटी होने के कारण आप ऑप्शन में SCALPING करके कम समय में अच्छे प्रॉफिट कमा सकते हो।
  • OPTION EXPIRY के दिन आप बहुत ही कम प्रीमियम देकर ट्रेडिंग कर सकते हो। और TEANDING मार्केट में बड़ा प्रॉफिट बना सकते हो।

OPTION TRADING के नुकसान :-

  • OPTION में HIGH VOLATILITY होने के कारण ऑप्शन ट्रेडिंग बहुत ही जोखिम भरा होता हैं। यदि आप मार्केट की दिशा का सही अनुमान नही लगा पाए तो आपको लॉस उठाना पड़ सकता हैं। इस लिए सभी सेगमेंट में ऑप्शन सबसे अधिक जोखिम भरा होता हैं।
  • ऑप्शन में यदि आपका टारगेट और स्टॉप लॉस रेश्यो सही नही हैं तो आपको यहां बड़ा लॉस भी हो सकता हैं। विशेष करके जब मार्केट रेंज बाउंड चल रहा होता हैं।
  • OPTION की EXPIRY DATE जैसे जैसे नजदीक आती हैं। वैसे उसका प्रीमियम घटता जाता हैं। ऐसे में ऑप्शन को होल्ड करके रखने सबसे ज्यादा जोखिम भरा होता हैं।

इस तरह से हमने यहां पर OPTION TRADING के सभी फायदे और नुकसान को विस्तृत रूप में समझा हैं।

आपने इस लेख से क्या सीखा ?

हमने यहां पर OPTION TRADING क्या होती हैं ? और OPTION TRADING कैसे की जाती हैं? ये विस्तृत रूप में समझने की कोशिश की हैं। हमने यहां ये भी समझा हैं की ये ट्रेडिंग सेगमेंट बहुत ही जोखिम भरा होता हैं। यहां पर बताए गए टिप्स और नियमों का OPTION TRADING में पालन ना करेंगे तो बड़ा लॉस उठाना पड़ सकता हैं। और सही तकनीक से और नियमो के साथ OPTION TRADING करेंगे तो यहां से भी बहुत अच्छे प्रॉफिट बनाए जा सकते हैं। इस तरह से यहाँ हमने OPTION TRADING के बारे में विस्तुत रूप में जानकारी देने का प्रयास किया हैं। अपेक्षा करते हैं की ये सब जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित हो। आपको ये लेख कैसा लगा और यदि आप हमे कोई सुझाव देना चाहते हो तो कृपया कॉमेंट्स में लिखिए।

SCALPING TRADING KYA HAIN AUR KAISE KARE? IN HINDI 2022

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शेयर मार्केट में SCALPING TRADING ए क ऐसी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी हैं की जिसका प्रयोग करके स्कॅल्पर मार्केट से अच्छे प्रॉफिट कमाते हैं। इस लिए SCALPING TRADING क्या हैं और उसका ट्रेडिंग में कैसे प्रयोग करे? ये बात हम यहां पर समझेंगे।

SCALPING TRADING

अब हम विस्तृत रूप में समझेंगे की स्काल्पिंग स्ट्रेटजी क्या होती हैं और ट्रेडिंग में उसका कैसे प्रयोग करते हैं।

SCALPING TRADING क्या है ?

ये एक अल्प समय ट्रेडिंग स्ट्रेटजी होती हैं। इसमें 1 से 5 मिनिट के अंदर ही ट्रेड स्क्वेयर ऑफ किया जाता हैं। इस में स्टॉक की ज्यादा क्वांटिटी लेकर कम कीमत पर BUY करना और अधिक कीमत पर SELL करना होता हैं।ऐसे ट्रेड दिन में बार बार लेकर शेयर मार्केट से प्रॉफिट निकालना। इस तरह से कीए जाने वाले ट्रेडिंग स्ट्रेटजी को स्कॉल्पिंग ट्रेडिंग कहते हैं।

इस प्रकार की ट्रेंडिंग स्ट्रेटजी में 1 से लगभग 5 मिनिट के अंदर आपने ट्रेडिंग के लिए जो स्टॉक चुने हुए हैं। उस स्टॉक की क़ीमत में होने वाले उतार चढ़ाव का फायदा उठाना होता हैं। इसमें स्टॉक की LOW प्राइस पर छोटा स्टॉप लॉस लगाकर छोटे प्रॉफिट के लिए खरीदना और स्टॉक के HIGH प्राइस पर छोटा स्टॉपलॉस लगाकर छोटे प्रॉफिट के लिए बेचना होता हैं। ऐसा करके दिन में कई बार ट्रेडिंग करके छोटे छोटे प्रॉफिट बुक करते रहना। इस प्रकार की ट्रेंडिंग को SCALPING TRADING कहते हैं।

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SCALPING TRADING WITH EMA

लेकिन इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में आपको छोटा स्टॉपलॉस और छोटा प्रॉफिट ही सेट करके ट्रेड करना होगा। आप प्रॉफिट और लॉस का प्रमाण 1:2 से लेकर 1:3 तक रख सकते हैं। ऐसे में आपको लॉस हुआ तो छोटा होगा और प्रॉफिट हुआ तो भी छोटा होगा। स्कॅलपर ज्यादा क्वांटिटी लेकर ज्यादा ट्रेड करते हैं। इस लिए उन्हें लॉस की तुलना में प्रॉफिट ज्यादा होता हैं। इसमें स्कॅल्पर लगभग 10 सेकंड से लेकर 5 मिनिट के अंदर अपना ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ कर देते हैं। लेकिन वो अपने ट्रेड बढ़ाते हैं। स्कॅलपर एक दिन मे ज्यादा क्वांटिटी के साथ कम से कम 10 से 50 बार तक ट्रेड लेते हैं। इस लिए वो बहुत तेजी से ट्रेड ऑर्डर प्लेस और स्क्वेयर ऑफ करते हैं।और छोटे छोटे प्रॉफिट मार्केट से निकालते रहते हैं।

SCALPING TRADING कैसे करें ये समझने से पहले उसके क्या नियम होते हैं इसके हैं ये समझते हैं।

SCALPING TRADING के RULE क्या हैं ?

  • HIGH VOLATILE STOCK :– स्कॉल्पिंग ट्रेडिंग के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता हैं HIGH VOLATILE स्टॉक का चयन करना। क्यू की यहां अति अल्प समय में अपना ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ करना जरूरी होता हैं। चुने हुए स्टॉक के प्राइस में अच्छी मूवमेंट होगी तो ही अल्प समय में ट्रेड पूरा होगा। और कम समय में ही टारगेट और स्टॉप लॉस बुक होगा। इस लिए यहां पर HIGH VOLATILE स्टॉक को चुनना जरूरी होता हैं।
  • TRADING STRATEGY: – स्काल्पिंग करने से पहले कोई एक उत्तम स्ट्रेटजी सुनिश्चित करना जरूरी होता हैं। जिसकी एक्युरेसी कम से कम 70-80% तो जरूर होनी चाहिए। क्यू की स्ट्रेटजी की एक्यूरेसी अच्छी होगी तो आपके स्टॉप लॉस कम जाएंगे और आपकी प्रॉफिट बुकिंग ज्यादा होगी। इस कारण जिसकी एक्यूरेसी अधिक निकलती हैं ऐसी ही स्ट्रेटजी का स्काल्पिंग में उपयोग करे।
  • TIME FRAME :- इस प्रकार की ट्रेडिंग में टाइम फ़्रेम का बहुत बड़ा रोल होता हैं। क्यू की टेक्निकल चार्ट पर छोटा टाइम सेट करेंगे तो छोटे प्रॉफिट के लिए छोटा स्टॉपलॉस रखकर ट्रेड मिलना आसान हो जाता हैं। यहां पर छोटा टाइम ही सेट करना आवश्यक होता हैं। बड़ा टाइम सेट करेंगे तो स्टॉपलॉस भी बड़े निकल सकते हैं। इस लिए टेक्निकल चार्ट पे कम समय का ही टाइम सेट करके ट्रेंडिंग के लिए मौका ढूंढने का प्रयास करे।
  • STOCK QUANTITY:- स्काल्पिंग करने के लिए अधिक कैपिटल की जरूरत होती हैं। इसमें प्रॉफिट-लॉस का प्रमाण भले ही छोटा रखा जाता हैं। लेकिन बड़े ट्रेडर अधिक मात्रा में स्टॉक क्वांटिटी लेकर ट्रेड करते हैं। इस लिए अगर स्टॉप लॉस हिट हो जाए तो होने वाला लॉस अपनी लॉस सहने की क्षमता से अधिक ना हो इसका विचार करके ही अपनी क्षमता के अनुसार क्वांटिटी लेकर ट्रेडिंग करे। क्यू की अधिक मात्रा में क्वांटिटी होगी तो लॉस भी बड़ा हो सकता हैं। तो इस बात का जरूर ध्यान रखे।
  • PROFIT & LOSS RATIO:- इस तकनीक से ट्रेडिंग करते समय आपको टारगेट और स्टॉपलॉस का एक उचित प्रमाण सेट करना जरूरी होता हैं।आपको हर एक ट्रेड में प्रॉफिट और लॉस रेश्यो 1:2 या 1:3 तक ही रखना सही होता हैं। इस से अधिक प्रॉफिट टारगेट बिल्कुल भी सेट ना करे। हर ट्रेड में यही प्रॉफिट-लॉस प्रमाण सेट करके ट्रेड करे।
  • EMOTIONLESS TRADING:- इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी के अनुसार हमारा हर एक ट्रेड अति अल्प समय में स्क्वेयर ऑफ होना आवश्यक होता हैं।इस लिए हमने जो प्रॉफिट लॉस का फॉर्म्युला सुनिश्चित किया होता हैं।उसके अनुसार लॉस बुक करना ये भी एक इस स्ट्रेटजी का हिस्सा होता हैं। यदि आप ऐसी स्थिति में इमोशन में आकर हो रहे छोटे लॉस को बुक ना करेंगे तो बड़ा लॉस भी हो सकता हैं। और अगर प्रॉफिट हो रहा हो तब ज्यादा बड़े प्रॉफिट के लिए अड़े रहना इस कारण भी बाद में बड़ा नुकसान हो सकता है। इस लिए इमोशनलेस (भावना विरहित) ट्रेडिंग करे। और लालच से दूर रहे।

इस तरह से ऊपर बताए गए नियमों का सक्ति के साथ पालन करके आप इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का उपयोग करके ट्रेडिंग कर सकते हो। अब हम समझते हैं की SCALPING TRADING कैसे करें ?

SCALPING TRADING कैसे करते हैं ?

इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में बहुत ही जल्द गति से ट्रेडिंग करनी होती हैं। इस कारण स्कॅलपर अपने अपने हिसाब से ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का उपयोग करते हैं। जैसे की टेक्निकल चार्ट पर कँडेल स्टिक पॅटर्न या फिर कूछ चार्ट इंडिकेटर का स्कॅलपर ट्रेडिंग करते समय उपयोग करते हैं। ट्रेडिंग के लिए चुने हुए स्टॉक के प्राइज में हो रही VOLATILITY का फायदा उठाकर ट्रेड लिए जाते हैं।

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SUPPORT & RASISTANCE SCALPING TRADING STRATEGY

स्टॉक प्राइस में हो रहें उतार चढ़ाव को समझकर स्टॉक प्राइस जब SUPPORT के उपर जाने की कोशिश कर रहा होता हैं तब वहा से छोटा स्टॉपलॉस लगाकर कम कीमत में खरीदना और उसी प्रकार से स्टॉक प्राइस RASISTANCE के नीचे जाने की कोशिश कर रहा होता हैं तब वहा से तुरंत छोटा स्टॉपलॉस लगाकर स्टॉक को अधिक कीमत पर बेचना। इस प्रकार से छोटे छोटे प्रॉफिट के बनाने हेतु बार बार ट्रेड लेकर प्रॉफिट बनाते रहना इस प्रकार की ट्रेडिंग तकनीक को स्काल्पिंग ट्रेडिंग कहते हैं।

BEST SCALPING TRADING STRATEGIES कोनसी हैं

शेयर मार्केट में ऐसे बहुत तरीके हैं जिसका उपयोग करके SCALPING TRADING की जाती हैं। उसमे से कुछ अच्छी और ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली स्ट्रेटजी कोनसी हैं इसकी हम यहां जानकारी लेंगे।

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EMA BASED SCALPING TRADING STRATEGY
  • EXPONENTIAL MOVING AVERAGE ( EMA) :- इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी अनुसार टेक्निकल चार्ट पर 1 मिनिट से 5 मिनिट तक का टाइम फ्रेम सेट करना जरूरी होता है। आपको टेक्निकल चार्ट पर 5 DAYS या 10 DAYS का EMA सेट करना होता हैं। और चार्ट पर SIMPLE CANDLESTICK  ही सेट करनी होती है।जब स्टॉक प्राइज EMA का सपोर्ट लेकर अप साइड जाने लगती हैं तब वहा से छोटा स्टॉपलॉस लगाकर BUY की पोजिशन लेनी हैं।और जब स्टॉक का प्राइस EMA को रेसिस्टेंस बनाकर नीचे की साइड जाने की कोशिश करता हैं तो वहां से छोटा स्टॉपलॉस लगाकर SELL की पॉजिशन लेनी हैं।आपको चुने हुए स्टॉक की क़ीमत में होने वाले उतार चढ़ाव का फायदा उठाकर ट्रेडिंग करनी हैं। इस प्रकार से टेक्निकल चार्ट पर EMA का उपयोग करके स्काल्पिंग की जाती हैं। मार्केट चाहे साइडवेज हो या ट्रेंडिंग हो फिर भी स्कॅलपर इस स्ट्रेटजी का प्रयोग करके शेयर मार्केट से प्रॉफिट कमाते हैं। लेकिन ध्यान रहे इस स्ट्रेटजी में स्टॉपलॉस और टारगेट STRICTLY सेट करके ही ट्रेडिंग करनी होगी। इस तरह ये सबसे आसान और लोकप्रिय स्काल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी भी मानी जाती हैं।
  • SUPPORT & RASISTANCE :-  सपोर्ट और रेजिस्टेंस का स्काल्पिंग ट्रेडिंग में उपयोग करके भी स्काल्पिंग ट्रेडिंग आसान हो जाती हैं। इस का प्रयोग करने के लिए आपको टेक्निकल चार्ट पर PIVOT POINT इस इंडिकेटर को सेट करना हैं। इस इंडिकेटर द्वारा आपको ऑटोमेटिकली लेवल मिल जाते हैं। इस से हमे सपोर्ट और रेसिस्टेंस का पता लग जाता हैं। इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का ट्रेडिंग में प्रयोग करने से पहले आपको डबल कन्फर्मेशन के लिए 10 Days का EMA भी चार्ट पर लगाना हैं। ध्यान रहे आपको हमेशा EMA का ट्रेंड अप साइड हैं या डाउन साइड ये समझकर ही ट्रेड पोजिशन लेनी हैं। और फिर आपने चुने हुए स्टॉक का प्राइस नीचे की साइड सपोर्ट लेकर फिर से ऊपर की साइड मूव करने लगता हैं तो आपको तुरंत वहा से छोटा स्टॉपलॉस लगाकर BUY की पॉजिशन लेनी हैं। और इसी तरह जब स्टॉक प्राइस उपर की साईड रेजिस्टेंस लेवल तक जाकर फिर से नीचे की साइड मूव करने लगता है तो आपको वहा से तुरंत छोटा स्टॉपलॉस लगाकर SELL पोजिशन लेनी हैं। इसमें आपका स्टॉपलॉस और टारगेट रेश्यो उपर बताए गए नियम अनुसार ही होना चाहिए। इस तरह सपोर्ट और रेसिस्टेंस का प्रयोग करके SCALPING कर सकते हैं।
  • BOLINGER BAND :– बोलिंगर बैंड ये एक टेक्निकल चार्ट इंडिकेटर हैं। इसके प्रयोगसे भी स्काल्पिंग आसान तरीकेसे की जा सकती हैं। ये भी एक अच्छा और सटिक तरीका माना जाता हैं। इस में आपको टेक्निकल चार्ट पर 5 मिनिट या उससे कम का टाइम सेट करके बॉलिंगर बैंड इस इंडीकेटर को लगाना होता हैं। इस इंडिकेटर से चार्ट पर सपोर्ट और रेजिस्टेंस की लेवल मिलती हैं। जब स्टॉक प्राइज रेसिस्टेंस तक जाकर फिर से नीचे की साइड जाने लगे तो वहा से ऊपर छोटा स्टॉपलॉस लगाकर आप SELL पोजिशन ले सकते हो। और इसी तरह स्टॉक प्राइस सपोर्ट से मुड़कर फिर से अप साइड जाने लगे तो वहा से सपोर्ट से नीचे छोटा स्टॉपलॉस लगाकर आप BUY की पोजिशन बना सकते हो। इस प्रकार से आप BOLINGER BAND को सेट करके ट्रेडिंग कर सकते हो। सिर्फ आपको टारगेट और स्टॉप लॉस का प्रमाण बताए गए नियम अनुसार ही रखकर ट्रेडिंग करना जरूरी हैं।
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BOLINGER BAND SCALPING TRADING

इस प्रकार की अनेक ट्रेडिंग स्ट्रेटजी हैं। जिसका टेक्निकल चार्ट पर उपयोग करके SCALPING TRADING आसान तरीके से की जाती हैं। लेकिन हमने यहां पर सिर्फ ऐसी स्ट्रेटजी को विस्तृत रूप में समझा हैं की जो सबसे आसान और अच्छी एक्योरेसी वाली स्ट्रेटजी हैं।

SCALPING TRADING EXAMPLE :-

अब हम मान लेते हैं की आपने जो स्टॉक को ट्रेडिंग के लिए चुना हैं उसकी क़ीमत 120 ₹ चल रही हैं। और आपने उस प्राइस पर 1000 QUANTITY ख़रीद ली। फिर उसके साथ ही आपने 119 ₹ पर 1 ₹ का स्टॉपलॉस लगा दिया। और 103 ₹ पर आपने 3 ₹ का टारगेट सेट कर दिया ऐसे में एक तो आपका स्टॉपलॉस हिट हो जाता हैं तो आपको 1000 ₹ का लॉस होगा और आपका अगर टारगेट हिट हो जाता हैं तो आपको 3000 ₹ का प्रॉफिट होगा। उसके बाद उस स्टॉक की प्राइस आपने जो प्रिडिक्शन किया था उस के अनुसार अगर 3₹ बढ़ जाती हैं। और आप तुरंत 3 ₹ प्रॉफिट पर आपकी पोजिशन स्क्वेयर ऑफ़ कर लेते हो। तो वहा पर आपको 1000 ₹ की जोखिम उठाने के बदले में 3000 ₹ का प्रोफिट हो जाता हैं। इस तरह स्कॅल्पर ट्रेडिंग करते हैं।


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अब हम यहां पर स्काल्पिंग ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान क्या हैं ये समझते हैं।

SCALPING TRADING STRATEGY के फायदे और नुकसान क्या हैं ?

फ़ायदे :-

इस रणनीती से ट्रेडिंग करने के फायदे अनेक होते हैं। यहां पर इस रणनीती का अर्थ ही कम समय में ट्रेड पूरा करके दिन भर में बार बार ट्रेडिंग करना होता हैं। इससे हमे शेयर मार्केट में हो रही मूवमेंट का बार बार लाभ मिल जाता हैं।

  • TIME :- इस ट्रेडिंग प्रकार में अति अल्प समय में ट्रेड पूरा हो जाता हैं। यहां अधिक समय तक ट्रेड को होल्ड नहीं करना पड़ता।
  • OPPORTUNITY :- इसमें बहूत कम समय में ही ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ की जाती हैं इस कारण शेयर मार्केट मे मिलने वाली ऑपर्युनिटी का लाभ आप बार बार उठा सकते हो।
  • MARKET TREND :- इस स्टैटजी में मार्केट किसी भी ट्रेंड में चल रहा हो चाहे अप साइड हो या डाउन साइड हो या फिर साइड वेज चल रहा हो फिर भी आसानी से ट्रेडिंग की जा सकती हैं। क्यू की इस में टारगेट और स्टॉपलॉस छोटा सेट करके ही ट्रेड किए जाते हैं।
  • PROFIT & LOSS :- इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में प्रॉफिट और लॉस का प्रमाण 1:2 और 1:3 इस प्रकार से रखकर ट्रेडिंग होती हैं। इस लिए स्टॉप लॉस हिट भी होगा तो छोटा लॉस होगा और प्रॉफिट रेश्यो अधिक होने के कारण ओवरऑल प्रॉफिट ही हो सकता हैं। इस से प्रॉफिट की संभावना बढ़ जाती हैं।

नुकसान:-

इस प्रकार की ट्रेडिंग रणनीति की कुछ कमियां या नुकसान दायक पहेलू भी हैं।

  • BIG CAPITAL :- इस तकनीक से ट्रेडिंग करने के लिए सबसे बड़ी समस्या ये हैं की इसमें ट्रेडिंग के लिए बहुत ही बड़ा कैपीटल आवश्यक होता हैं। छोटा ट्रेडर चाहकर भी इस तकनिक से ट्रेडिंग नही कर पाता। इस प्रकार की ट्रेडिंग में ज्यादा क्वांटिटी के साथ ट्रेडिंग की जाती हैं। तो ये छोटे ट्रेडर के लिए आसान बात नहीं होती।
  • BROKERAGE CHARGE :- इस ट्रेडिंग प्रकार में अधिक क्वांटिटी लेकर बार बार ट्रेड किए जाते हैं। दिन भर में कम से कम 10 से लेकर 50/60 बार ट्रेड होते हैं तो इस तरह ब्रोकर को ज्यादा ब्रोकरेज चार्ज भी देना पड़ता हैं। जो की ये भी बहुत बड़ा हो सकता हैं।

इस तरह हमने यहां पर स्काल्पिंग ट्रेडिंग के सभी फायदे और नुकसान को समझ लिया है।

निष्कर्ष :-

हमने यहां पर स्काल्पिंग ट्रेडिंग क्या होती हैं ? और स्काल्पिंग कैसे की जाती हैं? ये विस्तृत रूप में समझने की कोशिश की हैं। हमने ये भी समझा की इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी अनुसार ज्यादा क्वांटिटी लेकर छोटा स्टॉपलॉस और छोटा टारगेट सेट करके ट्रेडिंग होती हैं। और इस स्ट्रेटजी में हर एक ट्रेड अल्प समय में ही स्क्वेयर ऑफ किया जाता हैं। स्काल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में ट्रेडिंग करने के लिए एक बहुत बड़े कैपिटल की आवश्यकता होती हैं। इस तरह से यहाँ हमने SCALPING TRADING के बारे में विस्तुत रूप में जानकारी देने का प्रयास किया हैं। ये सब जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित हो ये अपेक्षा करते हैं। आपको ये लेख कैसा लगा और यदि आप हमे कोई सुझाव देना चाहते हो तो कृपया कॉमेंट्स में लिखिए।


 

INTRADAY TRADING KYA HEIN AUR INTRADAY TRADING KAISE KARE ? HINDI 2023

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शेयर मार्केट से पैसे कमाने के लिए जिन्होंने डीमेट अकाउंट ओपन किया होगा उन्हें सबसे पहला प्रश्न आएगा की इंट्राडे ट्रेडिंग क्या हैं और INTRADAY TRADING ट्रेडिंग कैसे करे ? जो लोग मार्केट में बिल्कुल ही नए हैं। वो लोग इस पोस्ट को पढ़कर अच्छे से जान लेंगे की INTRADAY में ट्रेडिंग कैसे करते हैं। लेकिन जिन्होंने अभी तक ट्रेडिंग के लिए डीमेट अकाउंट ही नही ओपन किया हो वो लोग यहां से फ्री में डीमैट अकाउंट ओपनिंग की प्रोसेस कर सकते हैं।

INTRADAY TRADING

शेयर मार्केट में तीन प्रकार से ट्रेडिंग होती हैं। INTRADAY , SHORT TERM और LONG TERM TRADING ये ट्रेडिंग के मुख्य प्रकार हैं । अगर कोई भी ट्रेडर अपनी बनाई ट्रेड पॉजिशन को एक दिन से लेकर लगभग एक साल तक होल्ड करता हैं तो उसे शॉर्ट टर्म ट्रेंडिंग कहते हैं। और जो कोई ट्रेडर अपनी बनाई हुई ट्रेड पॉजिशन को एक सालसे अधिक समय तक होल्ड करके पैसे कमाते हैं उसे लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग कहते हैं। और अब इंट्राडे ट्रेडिंग क्या हैं ये समझते हैं।

INTRADAY TRADING किसे कहते हैं ?

भारतीय शेयर मार्केट पर SEBI का कंट्रोल होता हैं। SEBI के नियमानुसार भारतीय स्टॉक मार्केट सुबह 9.15 मिनिट पर खुलता हैं और दोपहर 3.30 मिनिट पर बंद हो जाता हैं। तो जो ट्रेडर सुबह 9.15 मिनिट के बाद कोई ट्रेड लेता हैं और 3.30 मिनिट के अंदर कभी भी अपनी ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ कर देता हैं तो उसे INTRADAY TRADING कहते हैं। इंट्राडे ट्रेडिंग में आपको एक दिन के अंदर ही आपकी ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ करनी होती हैं। चाहे आपको प्रॉफिट हो या लॉस हो। यहां पर हमे समय की पाबंदी होती हैं। अगर आप सेम डे अपनी ट्रेड पोजिशन से एक्जिट नही करते तो ब्रोकर का सिस्टम आपकी पोजिशन को ऑटो स्क्वेयर ऑफ के देगा। समय की पाबंदी होने के कारण INTRADAY ट्रेडिंग जोखिम भरा होता हैं। लेकिन सही तकनिक और जानकारी के साथ ट्रेडिंग करते हो तो यहा से अच्छे पैसे भी कमाए जाते हैं।

 


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INTRADAY TRADING के नियम (RULE) क्या हैं ?

शेयर मार्केट में डीमेट अकाउंट ओपन करके जो नए लोग आते हैं उन्हें इंट्राडे ट्रेडिंग बहुत आसान और सरल लगती हैं। जब की असल में ऐसा होता नहीं हैं।समय की पाबंदी के कारण इंट्राडे ट्रेडिंग बड़ी जोखिम भरी होति हैं। यहां पर सही तकनीक और सूझबूझ से ट्रेडिंग नहीं हुई तो बड़े बड़े लॉस हो सकते हैं। वैसे भी इंट्राडे ट्रेडिंग करने वाले सिर्फ 5-10 % ही लोग पैसे कमाते हैं बाकी सब यहां अपना कैपीटल लॉस ही कर देते हैं। कुछ सही टेक्निक से इंट्राडे में ट्रेडिंग करके अच्छे प्रॉफिट किया जा सकता हैं। अब हम इंट्राडे के नियम क्या होते हैं ये समझते हैं। 

INTRADAY TRADING के ( RULE) नियम:-

  1. इंट्राडे ट्रेडिंग करने के लिए सबसे पहले अच्छे VOLATILITY वाले स्टॉक ही चुनिए।आपको ऐसे स्टॉक चुनने हैं की जिसकी स्टॉक प्राइस में दिन भर में अच्छा मूवमेंट आता हो। क्यू की स्टॉक प्राइस में अच्छी VOLATILITY होंगी तो ही कम समय में आपका ट्रेड पूरा होगा।
  2. कोई एक टेक्निकल एनालिसिस आधारित स्ट्रैटजी सुनिश्चित कीजिए जिसकी एक्युरेसी कम से कम 60 से 80% के बीच में हो। और आपको अच्छा रिजल्ट मिल सके।
  3. ट्रेडिंग शुरू करने से पहले प्रॉफिट और लॉस का फॉर्म्युला सेट कीजिए। जिसे आपको आपके ट्रेड में लगाना हैं।आपकी ट्रेडिंग में प्रॉफिट और लॉस का एक सही प्रमाण लगाकर ट्रेडिंग कीजिए।
  4. प्रॉफिट और लॉस रेश्यो आपकी कैपिटल के हिसाब से रखिए। पर फिर भी 1:2,1:3 और 1:4 ये प्रमाण रखकर ही ट्रेडिंग करना उचित होगा। जादा बड़ा टारगेट और स्टॉप लॉस ना लगाए।
  5. स्टॉप लॉस लगाए बिना ट्रेडिंग बिल्कुल भी न करे। चाहे किसी स्टॉक में आपको चाहे कितना भी कॉन्फिडेंस क्यू ना हो। डिसिप्लिन और सुझबुझ से ही हर एक ट्रेड कीजिए।
  6. एक दिन में 2से 4 ही ट्रेड कीजिए। जो लॉस हुआ हैं उसे उसी दिन रिकवर करने की कोशीश ना करे।ओवर ट्रेड से हमेशा दूर रहे।
  7. जिस ट्रेड में अधीक जोखिम लग रही हैं ऐसे ट्रेड बिल्कुल भी न करे । हमेशा अपना कैपिटल बचाने का प्रयास करे। क्यू की कैपिटल रहेगा तो ही हम मार्केट से प्रॉफिट बना सकेंगे।
  8. जितना भी आपका कैपिटल हैं उसे अलग अलग ट्रेड में डिवाइड करके ट्रेड लीजिए। किसी एक ही ट्रेड में पूरा कैपिटल ना लगाए।
  9. हमेशा इमोशन लेस (भावना विरहित) ट्रेडिंग करे। प्रॉफिट और लॉस हो जाना ये मार्केट में स्वाभाविक बात हैं। इस लिए ट्रेडिंग करते समय भावनीक संतुलन बनाए रखे।
  10. हमेशा मार्केट से सीखते रहे। किसी न्यूज और टिप्स पर ट्रेडिंग ना करे। खुद की स्ट्रेटजी विकसित कीजिए।

इस प्रकार से आप बताए गए सभी नियमों के साथ ट्रेडिंग करते हैं तो आसानी से शेयर मार्केट से प्रॉफिट ले सकते हो। एखाद स्टॉप लॉस भी लग जाए तो भी ओवरऑल ट्रेड से दिन भर में आपको अच्छा मुनाफा हो सकता हैं।

INTRADAY TRADING कैसे करे ?

डीमेट अकाउंट ओपन करने के बाद जब ट्रेडिंग करने की बात आती हैं तो नए ट्रेडर इंट्राडे में ही ट्रेडिंग करना जादा पसंद करते हैं। क्यू की उन्हें इंट्राडे ट्रेडिंग सबसे आसान लगती हैं। लेकिन सही में देखा जाए तो इंट्राडे ट्रेड करके प्रॉफिट बनाना उतना आसान होता नहीं हैं। समय की कमी के कारण यहां पर लोग अपने पैसे लॉस कर बैठते हैं। यहां पर डिसिप्लिन के साथ टेक्निकल एनालिसिस पर आधारित कोई बेस्ट इंट्राडे ट्रेडिंग स्ट्रैटजी का उपयोग करके आप इंट्राडे ट्रेंडिंग से भी अच्छा प्रॉफिट बना सकते हो। 

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  • PROPER ENTRY & EXIT:- जब एक बार डीमेट अकाउंट ओपन हो जाए तो सबसे पहेले हमे ट्रेड पोजिशन कैसे लेते हैं ये सीखना होगा। मतलब की आपने ट्रेडिंग के लिए जो स्टॉक चुना हैं। उसकी क्वांटिटी कैसे सेट करे स्टॉप लॉस कैसे लगाएं और टारगेट कसे सेट करे ये सब अच्छे से सीखना होगा। नही तो ऐन वक्त पर आपकी कोई गलत इंट्री भी पड सकती हैं। इसके लिए जिस ब्रोकर के साथ आपने डीमेट अकाउंट ओपन किया हैं उसके यूट्यूब पे ट्रेडिंग के डेमो वीडियो आप देख सकते हो। और सही प्रकार से ट्रेड में एंट्री कैसे लेते हैं, स्टॉप लॉस और टारगेट कैसे लगाते हैं ये सिख सकते हो। उसके बाद ही आप  फंड डालकर करके ट्रेडिंग की शुरुवात कर सकते हो।
  • HIGH VOLATILITY STOCK:- इंट्राडे ट्रेडिंग में हमे समय की पाबंदी होती हैं। इस लिए कम से कम समय में ही मतलब की एक दिन के ट्रेडिंग सेशन में ही हमने बनाई हुई ट्रेड पॉजिशन स्क्वेयर ऑफ हो जानी चाहिए। इस स्थिति में अच्छे मूवमेंटम स्टॉक में ही हम जल्दी से प्रॉफिट बुक कर सकते हैं। और पोजिशन को EXIT कर सकते हैं। इस कारण INTRADAY के लिए अच्छे वोलाटाइल स्टॉक ही चुनिए।
  • TRADING STRATEGY:- इंट्राडे में ट्रेडिंग करने से पहले आपको कौनसी स्ट्रैटजी के साथ ट्रेडिंग करनी हैं ये सुनिश्चित करना होगा। चार्ट पर टेक्निकल एनालिसिस आधारित कोई स्ट्रेटजी का प्रयोग कर के भी इंट्राडे में अच्छा प्रॉफिट बन सकता हैं। चाहे आपकी स्ट्रेटजी की एक्युरेसी 60 से 80% के बीच में भी होगी तो भी स्ट्रीक्ट स्टॉपलॉस और टारगेट सेट करके आप इंट्राडे ट्रेडिंग करके पैसे कमा सकते हो। जैसे की टेक्निकल चार्ट पर MOVING AVERAGE ( EMA /SMA) ,BOLINGER BAND, VWAP, MACD आदि इंडिकेटर की मदत से अच्छी स्ट्रैटजी बनाकर ट्रेड करके मार्केट से प्रॉफिट बनाना आसान हो जाता हैं।
  • STRICT STOP LOSS :– शेयर मार्केट में स्टॉप लॉस लगाए बिना ट्रेडिंग करना मतलब अपने केपिटल को खुद खतम करवाने जैसा हैं। क्यू की आप किसी भी स्टॉक में चाहे कितने भी शास्वत क्यू ना हो फिर भी स्टॉप लॉस के बिना ट्रेड करना हानिकारक हो सकता हैं। विशेष करके जो स्मॉल कैपिटल लेके ट्रेड करते हैं उनका एक भी ट्रेड स्टॉप से बिना हो जाए और उस ट्रेड में ट्रेंड आपके विरोध में जाए तो एक ही ट्रेड में सब कैपिटल खतम होने में देर नहीं लगेगी। इस लिए हमेशा स्टॉप लॉस लगाकर ही ट्रेडिंग करे।
  • PROFIT & LOSS RATIO:- यदी आप ट्रेडिंग को एक बिजनेस मानकर ट्रेड करते हो और आपको एक यशस्वी ट्रेडर बनाना हैं तो आपको हमेशा कोई भी ट्रेड में इंट्री लेने से पहले प्रॉफिट और लॉस का रेश्यो सुनिश्चित करके ही ट्रेडिंग करनी होगी। मतलब ये की अगर आपने किसी ट्रेड में आपका प्रॉफिट 1000₹ सेट करके रखा हैं तो उस स्थिति में आपको स्टॉप लॉस उस 250₹ या फिर 500₹ ही रखना सबसे उचित रेश्यो होगा। आप हमेशा प्रॉफिट लॉस रेश्यो 1:2,1:3 या फिर 1:4 ये रख सकते हो। क्यू की INTRADAY में जादा बड़ा टारगेट कभी-कभी ही मिलता हैं। जब मार्केट में कोई बड़ा ट्रेंड आता हैं तब और छोटे छोटे टारगेट आसानी से मिल जाते हैं। अगर स्टॉप लॉस हिट भी हो जाए तो आपका लॉस कम होता हैं। और प्रॉफिट का प्रमाण जादा होता हैं।इस कारण 1:2,1:3 या फिर 1:4 ये रेश्यो ही इंट्राडे में सर्वोत्तम रेश्यो माना जाता हैं। इस लिए प्रॉफिट लॉस रेश्यो इस प्रकार सेट करके ही इंट्राडे ट्रेडिंग करे।
  • OVER TRADE:- शेयर मार्केट में हर एक ट्रेड में प्रॉफिट ही होगा ये किसी के लिए भी संभव नहीं होता ।तो इस लिए कभी कभी स्टॉप लॉस भी हिट जाता हैं। लेकिन ऐसी  स्थिति में हो गया हुआ लॉस को उसी दिन रिकवर करने के चक्कर में बहुत ट्रेड हो जाते हैं। तो जादा ट्रेड होगे तो जोखिम भी बढ़ेगा। और फिर एक लॉस रिकवर करने के चक्कर में लॉस पे लॉस हो जाता हैं। और फिर दिन के आखिर में एक बड़ा लॉस लेकर बैठना पड सकता हैं। इस लिए प्रॉफिट लॉस का रेश्यो सेट करने के बाद लॉस होगा भी तो वो कम ही होगा। और आपसे भावनिक संतुलन खोकर जादा ट्रेड होंगे भी नही। इस लिए ओवर ट्रेड से हमेशा बचने का प्रयास करे।
  • AVOID RISKY TRADE:- किसी न्यूज या टिप्स के चक्कर में पड़कर जिसमे अधिक जोखिम हो ऐसे ट्रेड में इंट्री ही न करे। किसी न्यूज को सुनकर किसी स्टॉक में जादा शास्वत होकर अपना पूरा कैपिटल एक ही ट्रेड में लगा देना बिल्कुल ही गलत हो सकता हैं। क्यू की यदि उस ट्रेड पॉजिशन में ट्रेंड आपके विरोध में जाता हैं तो आपको एक बड़ा लॉस उठाना पड़ सकता हैं। और कभी कभी छोटा प्रॉफिट लेने के लिए एक बड़ा लॉस सेट करके ट्रेड लेने से आपको बड़ा लॉस होने की संभावना बढ़ती हैं।इस लिए हमेशा अधिक जोख़िम भरे ट्रेड से दूर ही रहे।  
  • EMOTIONLESS TRADE:- शेयर मार्केट में सबसे अधिक नुकसान होने का हमेशा बस एक ही कारण होता हैं। वो हैं भावना ( EMOTION) इस पर कंट्रोल करना सबके लिए बड़ा मुश्किल काम होता हैं। क्यू की ट्रेडिंग करते समय प्रॉफिट हो जाना या लॉस हो जाना ये तो स्वाभाविक बात होती हैं। लेकिन कई बार ऐसा हो जाता हैं की हमारा PREDICTION सही होता हैं। और उस समय मार्केट RETRACEMENT कर देता हैं। और हमे लॉस दिखने लगता हैं। तब इमोशन में हमारा संतुलन खो जाता हैं। और हम लॉस में हमारी पोजिशन काट देते हैं। और फिर कुछ देर बाद वही स्टॉक का प्राइस हमने सेट किए हुए टारगेट साइड की और चला जाता हैं। फिर ऐसी स्थिति में हम पछतावा करते हैं की हमने जल्दबाजी में लॉस बुक न किया होता तो अब अच्छा टारगेट मिल जाता। ऐसा सब के साथ हुआ होगा। इसलिए हमेशा हमे स्टॉप लॉस और टारगेट एक बार सेट किया तो उसमे चेंज नहीं करना चाहिए। और हमें इमोशन लेस ट्रेडिंग ही करनी होगी तो जाके हम मार्केट से प्रॉफिट बना सकेंगे।

INTRADAY TRADING किसके लिए फायदेमंद है ?

INTRADAY TRADING करने के भी कुछ सही तरीके होते हैं। इनका उपयोग करके अनुभवी ट्रेडर सुझबुझ से मार्केट से पैसे कमाते हैं। जानकार ट्रेडर अलग अलग स्ट्रैटजी का प्रयोग करके जैसे की स्कॅल्पिंग, स्विंग ट्रेडिंग,ऑप्शन ट्रेडिंग करके मार्केट से प्रॉफिट करते हैं।

इंट्राडे ट्रेडिंग में स्कॅल्पिंग एक सबसे अच्छा तरीका होता हैं। स्कॅल्पिंग में ट्रेड 2 से 5 मिनिट में पूरा हो जाता हैं। पर क्वांटिटी जादा होती हैं। और टारगेट और स्टॉप लॉस छोटा होता हैं। इस लिए इंट्राडे में इस तकनीक से ट्रेडिंग सबसे अधिक फायदेमंद होती हैं। वैसे ही स्विंग ट्रेडिंग में मार्केट में आनेवाली मूवमेंट का फायदा उठा कर HIGH पर SELL और LOW पर BUY की पॉजिशन बनाकर ट्रेडिंग होती हैं। और आसानी से यहा से ट्रेडर पैसे कमाते हैं। इस प्रकार से इंट्राडे में ऑप्शन ट्रेडिंग बहुत ही जादा की जाति हैं। क्यू की ऑप्शन ट्रेडिंग में छोटे कैपिटल से भी अधिक प्रॉफिट बनाने की संभावना होती हैं।और ऑप्शन में HIGH VOLATILITY होती हैं। इस कारण इंट्राडे में निफ्टी और बैंकनिफ्टी में ऑप्शन ट्रेडिंग अधिक प्रमाण से की जाती हैं।

इस लिए INTRADAY में इन तीनों प्रकार से ट्रेडिंग करने वाले ट्रेडर्स अधिक सक्रिय होते हैं। इनके लिए INTRADAY TRADING हमेशा फायदेमंद होती है।

निष्कर्ष:-

इस प्रकार से यहां हमने समझा है की इंट्राडे ट्रेडिंग जोखिम भरी जरूर होती हैं। पर फिर भी उपर बताए गए ट्रेडिंग नियमों का सक्ति से पालन करके और कोई टेक्निकल एनालिसिस आधारित स्ट्रैटजी का उपयोग करके यहा से भी डेली अच्छा मुनाफा बनाया जा सकता हैं। इस तरह हमने इंट्राडे ट्रेडिंग क्या होती हैं, और कैसे करते हैं। ये विस्तृत स्वरूप में समझा हैं। अपेक्षा करते हैं की ये जानकारी आपके लिए फायदेमंद होगी। अगर ये लेख आपको अच्छा लगा होगा और आप हमे कोई सुझाव देना चाहते हो तो कृपया नीचे कॉमेंट्स में लिखिए।


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BEST INTRADAY TRADING STRATEGY KONSI HAIN ? IN HINDI 2022

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शेयर मार्केट में बेस्ट INTRADAY TRADING STRATEGY कोनसी हैं? ये प्रश्न जिन लोगो ने नया- नया DEMAT ACCOUNT ओपन किया हैं उनके सामने आता हैं। उनको शेयर मार्केट में कैसे काम करते हैं इसका का सही ज्ञान नहीं होता तो उनके सामने ट्रेडिंग करने से पहले सबसे बड़ा सवाल आता हैं की शेयर मार्केट में बेस्ट इंट्राडे स्ट्रैटरजी कोनसी हैं? आज हम इसी बात को समझेंगे किस-किस प्रकार की ट्रेडिंग योजनाओं से हम इंट्राडे में ट्रेडिंग करके कम जोखिम के साथ अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

करने से पहले सबसे बड़ा सवाल आता हैं की शेयर मार्केट में बेस्ट इंट्राडे स्ट्रैटरजी कोनसी हैं? आज हम इसी बात को समझेंगे किस-किस प्रकार की ट्रेडिंग योजनाओं से हम इंट्राडे में ट्रेडिंग करके कम जोखिम के साथ अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

INTRADAY TRADING STRATEGY

INTRADAY TRADING क्या होता हैं और कैसे करे?

शेयर मार्केट में कैसे डीमेट अकाउंट ओपन करके पैसे कमाए जाते हैं ये समझने के लिए हमे स्टॉक मार्केट में कितने प्रकार से ट्रेडिंग की जाती हैं ये जानना होगा। शेयर मार्केट में ट्रेडिंग प्रमुख तीन प्रकार से होती हैं।

  1. INTRADAY TRADING
  2. SHORT TERM TRADING
  3. LONG TERM TRADING

यहां पर हम INTRADAY ट्रेडिंग क्या होता हैं और कैसे करे ? इस के बारे में समझेंगे। इंट्राडे ट्रेडिंग मतलब एक दिन के ट्रेडिंग सेशन में ही अपनी बनाई हुई पोजिशन को प्रॉफिट हो या लॉस के साथ SQUARE OFF करना ये होता हैं। सुबह जब मार्केट 9.15 बजे ओपन हो जाता हैं उसके बाद जब भी हम ट्रेडर्स कोई ट्रेड लेते हैं तो उस ट्रेड को हमे दोपहर 3.15 के अंदर-अंदर SQUARE OFF करना बंधनकारक होता हैं और अगर हम उस पोजिशन को इतने समय के अंदर एक्जिट नही करते तो ब्रोकर का सिस्टम हमारी उस पोजिशन को AUTO SQUARE OFF कर देता हैं ये नियम इंट्राडे ट्रेडर्स को लागू होता हैं।और इस प्रकारसे ट्रेडिंग करने के तरीके को INTRADAY ट्रेडिंग कहते हैं।

अक्सर देखा जाता हैं की शेयर मार्केट में आने वाले नए लोगों को INTRADAY ट्रेडिंग बहुत ही आसान लगती हैं। और वो बिना कुछ नॉलेज के ट्रेडिंग करके अपने सारे पैसे मार्केट में गवा देते हैं। अगर आप मार्केट में नए हो और आपको शेयर मार्केट का बिल्कुल भी नोलेज नही हैं तो शेयर मार्केट में कैसे इन्वेस्टमेंट करके पैसे कमाते हैं इस बात को अच्छे से जानकर आज से ही इन्वेस्टमेंट चालू करे। इंट्राडे ट्रेडिंग बहुत ही जोखिम भरा होता हैं आपको यहां ट्रेडिंग की सही तकनिक और जानकारी नहीं हैं तो आपका कैपिटल यह आसानी से खतम हो जायेगा। लेकिन आप कुछ योजनाएं और जानकारी के साथ ट्रेडिंग करोगे तो INTRADAY TRADING में भी आसानी से शानदार प्रॉफिट हो सकते हैं।

इंट्राडे ट्रेडिंग के बारे में यहां पर हम कुछ ऐसी स्ट्रेटजी समझेंगे की जिसका उपयोग ट्रेडर्स अगर बताए गए नियमों के अनुसार करते हैं तो वो सब मार्केट से डेली पैसे कमा सकते हैं।

INTRADAY TRADING STRATEGY के प्रकार

  • MOMENTUM TRADING STRATEGY :- इंट्राडे ट्रेडिंग करते समय सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये ही की आपने जिस स्टॉक को ट्रेडिंग के लिए चुना हैं वो स्टॉक VOLATILE होना बहुत ही आवश्यक होता हैं। क्यू की इंट्राडे ट्रेडिंग में समय की पाबंदी होती हैं। इसका मतलब ये की आपने चुनें हुए स्टॉक का प्राइस एक दिन के ट्रेडिंग सेशन में अच्छे तरह से कम जादा होना जरूरी होता हैं। तो ऐसी स्थिती में आपने निर्धारित किया हुआ TARGET कम समय में ही पूरा हो जाए और आपको अधिक समय तक उस पोजीशन में टिके रहेने की जरूरत न पड़े। इसलिए इंट्राडे में ट्रेड करने के लिए अच्छे VOLATILE STOCK चुनना बेहद जरूरी होता हैं। उसी के साथ-साथ  आपने बनाई हुईं हर एक पोजिशन में आपका टारगेट और स्टॉप लॉस छोटा ही होना चाहीए। TARGRT और STOP LOSS कैसे लगाएं इसका प्रमाण आपके कैपिटल पर निर्धारित होता हैं। इस प्रकार से HIGH VOLATILITY वाले STOCK में आप पोजिशन बनाकर एक सही प्रोफिट और लॉस के प्रमाण को सुनिश्चित करके इंट्राडे में अच्छा मुनाफा कमा सकते हो।
  • BREAKOUT TRADING STRATEGY :- जब इंट्राडे ट्रेड करना हो तो ब्रेकआउट क्या होता हैं ये समझना जरूरी होगा। लेकिन नए ट्रेडर और जिन्हे टेक्निकल चार्ट की कोई जानकारी नहीं हैं उनके लिए ब्रेकआउट कैसे पता करे ये समस्या आ सकती हैं। तो अब हम पहले ब्रेकआउट क्या होता हैं ये समझेंगे। टेक्निकल चार्ट पर ब्रेकआउट पॉइंट पता करने के लिए आपको टेक्निकल चार्ट पर एक तो मैन्युअली लेवल निकलने होगे या फिर PIVOT POINT’S इंडिकेटर का उपयोग करना होगा। मैनुअली लेवल निकलने का सबसे आसान तरीका ये हैं की टेक्निकल चार्ट पर 5/10/15 मिनिट के टाइम फ्रेम सेट करके आपको चार्ट पर कैंडल स्टिक के कुछ दो से अधिक ऐसे पॉइंट्स को जोड़कर एक Horizontal Line Draw करनी हैं..और फिर वो स्टॉक उस लेवल के उपर की साईड ब्रेकआऊट दे तो BUY के लिए और नीचे की साईड में कैंडल ब्रेकडाउन देता हैं तो SELL के लिए एक छोटा स्टॉप लॉस लगाकर अपनी पोजीशन बना सकते हो। ..और अगर आप PIVOT POINTS इंडिकेटर का उपयोग करते हो तो आपको बना बनाया लेवल मिल जाता हैं। उस स्थिति में उपर की लेवल को रेसिस्टेंस और नीचे की लेवल को सपोर्ट कहते हैं। अगर टेक्निकल चार्ट में उपर की लेवल ( रेसिस्टेंस ) के उपर कैंडल बनकर SUATAIN करती हैं तो आपको उससे अगली कैंडल पर एक छोटा स्टॉप लॉस लगाकर छोटे टारगेट के लिए अपनी BUY पोजीशन बनानी हैं। और अगर मार्केट PIVOT के नीचे SUSTAIN करे तो ऐसी स्थिति में आपको छोटा स्टॉप लॉस लगाकर SELL पोजिशन लेनी होगी।इससे आपकी मार्केट से लॉस होने की संभावना बहुत ही कम होती हैं और प्रॉफिट होने की संभावना बढ़ती हैं। सिर्फ आपको प्रॉफिट और स्टॉप लॉस का प्रमाण आपके मूल कैपिटल के अनुसार रखना महत्वपूर्ण होता हैं। इन नियमों के साथ ट्रेडिंग होगी तो प्रॉफिट जरूर होगा।
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EMA 20 BREAKOUT
  • MOVING AVERAGE STRATEGY :- MOVING AVERAGE एक अधिक बहुचर्चित इंडीकेटर हैं। इस स्ट्रेटजी के साथ इंट्राडे ट्रेडिंग आसान और सुलभ हो जाती हैं। सब के लिए समझने में ये स्ट्रेटजी बहुत ही आसान हैं। यहां पर आपको कुछ जादा नियम लगाने नही होते आपको टेक्निकल चार्ट पर सिर्फ और सिर्फ एक ही इंडिकेटर लगाना पड़ता हैं। आपको टेक्निकल चार्ट पर सिर्फ 20 या 50 का EMA ( EXPONENTIAL MOVING AVERAGE ) सेट करना होगा। 20 का EMA 50 के EMA से स्टॉपलॉस और टारगेट बड़ा देगा। पर मेरा ये मानना हैं की 20 का EMA छोटे ट्रेडर्स के लिए हमेशा फायदेमंद रहता हैं। क्यू की छोटे ट्रेडर्स का कैपिटल लिमिटेड होता हैं। तो 20 के EMA के साथ ट्रेडिंग होगी तो स्टॉप लॉस और टारगेट दोनो छोटे-छोटे मिलेंगे और आपका मार्केट से जादा नुकसान होने की संभावना भी कम हो जाएगी। अगर आप इसे दूसरे इंडिकेटर के साथ कॉम्बिनेशन में उपयोग करना चाहते हो तो भी कर सकते हो। लेकिन आपको यहां भी प्रॉफिट लॉस के प्रमाण को सुनिश्चित करके ही ट्रेड करना होगा। तो ही आपकी यहां से प्रॉफिट होने की संभावना बढ़ती है।
  • CROSS OVER TRADING STRATEGY :- शेयर मार्केट में ये सबसे पसंदीदा ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में से एक  मानी जाती हैं। क्यू की इसे टेक्निकल चार्ट पर हर कोई आसानी से लगाकर उस हिसाब से ट्रेड कर सकता हैं। इसकी AQURECY भी बहुत अधिक सही निकल के आती हैं। आपको इसमें टेक्निकल चार्ट पर सिर्फ एक की जगह दो अलग अलग EMA ( EXPONENTIAL MOVING AVERAG ) सेट करने होगे। जैसे की आपको एक 20 और दूसरा 50 का EMA चार्ट पे सेट करना होगा। जब भी 20 का EMA 50 के EMA को उपर की साईड को क्रॉस करता हैं उससे अगली कैंडल से आपको वहा कुछ पॉइंट्स का स्टॉप लॉस लगाकर ‘BUY‘ के लिए पोजिशन बनानी हैं। और यदि 20 का EMA 50 के EMA को नीचे की साईड क्रॉस करता हैं तो उससे अगली कैंडल से आपको कुछ पॉइंट्स का स्टॉप लॉस लगाकर ‘SELL‘ के लिए पोजिशन बनानी हैं। ध्यान रहे यहां भी आपको प्रॉफिट लॉस के प्रमाण को सुनिश्चित करके ही ट्रेड करना हैं।इसे चार्ट पर सिर्फ 5 से 10 मिनिट के टाइम फ्रेम के साथ ही उपयोय करेंगे तो आपको मार्केट से नुकसान कम और मुनाफा अधिक होने की संभावना बढ़ती हैं।
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EMA 20 & EMA 50 CROSS OVER
  • SCALPING TRADING STRATEGY :- इस प्रकार की स्ट्रैटर्जी में इंडिकेटर से अधिक आपका धैर्य कितना हैं इस पर आपका प्रॉफिट और लॉस निर्धारित होता हैं। इस लिए जो ऑटोमेटिक ट्रेडिंग ( ALGO TRADING ) के सेटअप होते हैं वहा पर इस स्ट्रैटजी का उपयोग करके बहुत बड़े बड़े प्रॉफिट कमाए जाते हैं। जब ट्रेडिंग AUTOMATICALY हो जाती हैं तो उसमे भावनाएं नही होती और यहां सिर्फ स्ट्रेटजी+ मैथमेटिक्स काम करता हैं। सबसे पहले आपको इस स्ट्रेटजी में HIGH VOLATILITY वाले स्टॉक ही ट्रेंडिंग के लिए चुनने हैं। और सिर्फ 20 का EMA टेक्निकल चार्ट पे सेट करना होता हैं। यहां पर आपको टारगेट और स्टॉप लॉस बहुत ही छोटे छोटे रखने होते हैं। लेकिन यहां आपके ट्रेड जादा मात्रा में होते हैं इसमें कोई भी ट्रेड 1 से 3 मिनिट के अंदर अंदर ही खतम हो जाता हैं। लेकिन अधिक Quantity और अधिक मात्रा में ट्रेड होने के कारण यदि आपकी AQYURECY 60-70% भी निकल के आती हैं तो भी आपका बड़ा प्रॉफिट हो जाता हैं। आप इसे दूसरे इंडिकेटर के साथ कॉम्बिनेशन में उपयोग करना चाहते हो तो भी कर सकते हो। लेकिन आपको चार्ट पर टाइम फ्रेम 1 से 3 मिनिंट के अंदर ही सेट करना होगा। SCALPING का उपयोग विशेष रूप से निफ्टी और बैंकनिफ्टी ऑप्शन में अधिक होता हैं। यहां पर इमोशन को कोई स्थान नहीं होता ALGO ट्रेडिंग में इसके उपयोग से हमेशा प्रॉफिट ही होता हैं।
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  • REVERSAL TRADING STRATEGY : रिवर्सल ट्रेडिंग स्ट्रैटजी का मतलब उसके नाम से ही हमे पता चलता हैं। इस स्ट्रेटजी का उपयोग करने के लिए हमे टेक्निकल चार्ट सिर्फ एक ही इंडिकेटर की जरूरत होती हैं। आपको टेक्निकल चार्ट में सिर्फ 20 या 50 के SMA ( SIMPLE MOVING AVERAGE ) को  सेट करना होता हैं। ये भी ट्रेडिंग के लिए एक आसान और सुलभ योजना मानी जाती हैं। लेकिन इसमें आपको चार्ट पर नजरें बनाए रखनी होती हैं। क्यू की जब भी मार्केट में कोई ट्रेंड आता हैं। चाहे वो अप साइड हो या डाउन साइड हो मार्केट सीधा सीधा उपर या नीचे की और जाता नही हैं ये मार्केट का नियम हैं क्यू की यहां BUYER और SELLER में एक दबाव बन चुका होता हैं इस लिए स्टॉक प्राइस बीच बीच में रिवर्स होती रहती हैं लेकिन वो एक विशिष्ट सपोर्ट या रेसिस्टेंस बनाती रहती हैं। तो ऐसे में आपको सिर्फ ट्रेंड के अनुसार ही उस स्टॉक की प्राइस को रिवर्स होने का इंतजार करना होता हैं। मान लीजिए स्टॉक प्राइस जब उपर की साईड जा रहा हैं तो वो बीच बीच में  रिवर्स होके एक सपोर्ट लेता हैं और फिर उपर की साईड जाता हैं। तो आपको उस सपोर्ट से कुछ पॉइंट्स का अंतर छोड़ कर ‘BUY‘ पोजिशन बनानी होती है। और ऐसे ही स्टॉक प्राइस जब नीचे की साईड जा रहा हैं तो वो बीच बीच में रिवर्स होके एक रेसिस्टेंस पे अटकता हैं और फिर नीचे की साइड जाता हैं तो आपको उस रेसिस्टेंस से कुछ पॉइंट्स का अंतर छोड़ कर ‘SELL’ पोजिशन बनानी होती है। इस प्रकार से छोटा स्टॉप लॉस लगाकर आप यहा से अच्छा मुनाफा कमा सकते हो।

इस तरह से सबसे असरदार साबित होने वाली कुछ स्ट्रैटजी का हमने यहां पर विस्तृत रूप में विश्लेषण किया हैं। फिर भी आपको अपनी सही सुझबुझ और समझदारी के साथ ही शेयर मार्केट में अपने पैसे को निवेश करके ट्रेडिंग करनी हैं। किसी की टिप्स पर अपने पैसे दाव पर लगाने से अच्छा हैं की खुद ट्रेडिंग की नॉलेज लेकर शेयर मार्केट से पैसे कमाए।


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INTRADAY TRADING  के क्या नियम हैं..?

INTRADAY TRADING करते समय आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा जो की इंट्राडे के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं।

  1. आपको इंट्राडे में काम शुरू करने से पहले कुछ अच्छे HIGH VOLATILITY वाले स्टॉक को अपने WATCHLIST में ADD करने होगे।
  2. आपको किस स्ट्रेटजी को ट्रेडिंग के लिए उपयोग करना हैं ये पहले आपको सुनिश्चित करना होगा।
  3. आपको किसी भी स्टॉक में ट्रेड पोजिशन लेने से पहले आपको उस ट्रेड में प्रॉफिट और लॉस का प्रमाण सुनिश्चित करना होगा।
  4. किसी भी ट्रेड पोजिशन में आप चाहे कितने भी शास्वत क्यू ना हो पर फिर भी आपको सक्ती के साथ स्टॉप लॉस लगाकर अपना टारगेट छोटा ही रखना हैं। जादा लालाच बिल्कुल भी न करे।
  5. और कभी आपका स्टॉप लॉस हिट हो जाए तो उसे रिकव्हर करने के लिए इस दिन ओवर ट्रेड न करे।
  6. अधीक जोखिम भरे लगने वाले ट्रेड से दूर रहे।
  7. हमेशा स्टॉप लॉस और टारगेट का प्रमाण 1:1,1:2 या 1:3 से अधिक ना रखे।
  8. किसी भी ट्रेड में जादा भरवासा भी हो तो भी अपना सारा कैपीटल ( पैसा ) एक ही ट्रेड में लगाकर बड़ी जोखिम ना ले।
  9. भावनाओं (EMOTION) के साथ ट्रेडिंग ना करे। ट्रेडिंग को व्यापार की तरह समझे।
  10. किसी के सलाह पर अपने पैसे को दाव पर ना लगाए ।शेयर मार्केट संदर्भ में खुद का नॉलेज बढ़ाते रहे और मार्केट से पैसे कमाए।

इस लेख से आपने क्या सीखा..?

इस लेख में हमने INTRADAY TRADING के लिए सबसे सही और सटीक स्ट्रैटजी का यहां पर विस्तृत रूप में विश्लेषण किया हैं। फिर भी आपको अपनी सही सुझबुझ और समझदारी के साथ ही शेयर मार्केट में अपने पैसे लगाकर ट्रेडिंग करनी हैं।

आपको HIGH VOLATILITY वाले स्टॉक ही ट्रेडिंग के लिए चुनने हैं। और शेयर मार्केट में STOP LOSS कैसे लगाएं और टारगेट का प्रमाण कैसे सुनिश्चित करे इन सभी बातों को इस लेख में हमने विस्तृत प्रकार से समझा हैं। इसी के साथ साथ हमे भावना विरहित ट्रेडिंग करके ओवर ट्रेड से भी बचना हैं। इस तरह यहां हमने इंट्राडे ट्रेडिंग किस प्रकार से करते हैं इसका विस्तार से विष्लेषण किया हैं। यदि आपको ये लेख अच्छा लगता हैं तो.. या हमे कोई सुझाव देना चाहते हो तो कृपया कॉमेंट्स में लिखिए।

STOP LOSS KYA HAIN AUR STOP LOSS KAISE LAGAYE ?IN HINDI 2022

STOP LOSS

शेयर मार्केट में काम की शुरुवात करने से पहले STOP LOSS क्या होता हैं और ट्रेडिंग करते समय कैसे स्टॉप लॉस लगाया जाता हैं ये समझना बहुत जरूरी हो जाता हैं। लेकिन मार्केट में जो नए लोग आते हैं ओ स्टॉप लॉस लगाना जरूरी नहीं समझते और बाद में बड़ा नुकसान कर बैठते हैं।

STOP LOSS क्या होता है?

शेयर मार्केट में काम करने के लिए आपने किसी भी ब्रोकर के साथ डीमेट अकाउंट ओपन किया हो वो सभी ब्रोकर ट्रेडर्स को ट्रेडिंग करते समय ‘STOP LOSS’ ये सुविधा प्रदान करते हैं। इसके लिए कोई चार्ज नहीं लिया जाता। अपने ट्रेडिंग platform पे STOP LOSS एक ऐसा विकल्प होता हैं जो ट्रेडर को होने वाले बड़े लॉस को उसने सुनिश्चित किए गए लिमिट में कंट्रोल करता हैं। और अधिक मात्रा में होने वाले नुकसान से बचाता हैं। मतलब हम ट्रेड लेते समय अपने अपने केपिटल के हिसाब से स्टॉप लॉस सेट कर सकते हैं। इस सारी प्रक्रिया को STOP LOSS कहते हैं।

STOP LOSS

STOP LOSS क्या होता हैं ये अब हम उदाहरण के साथ समझेंगे।

मान लीजिए की आपने किसी कंपनी के शेयर को 100 Rs. में खरीदा और आप 20 Rs. प्रॉफिट लेने के लिए मार्केट में पोजीशन बनाए बैठे हैं। इसके लिए उस शेयर का प्राइस 100 Rs. से 120 Rs. जाना होगा तो आपको 20 Rs. का प्रॉफिट होगा। ये बात सब के समझ में आ गई होगी। पर यदि आपने जो सोचा था कि उस शेयर का प्राइस बढ़ेगा इसके उल्टा हो जाता हैं..और शेयर का प्राइस गिरके 75 Rs. हो जाता हैं। तो ऐसे हालात में उस शेयर का प्राइस आपके एंट्री प्राइस से 25 Rs. अपोजिट साइड जाएगा। तो आपको 25Rs. LOSS हो जायेगा। लेकिन हम ऐसी स्थिति में STOP LOSS का सही उपयोग करेंगे तो होने वाले बड़े लॉस को हम कम कर सकते हैं और होने वाले भारी नुकसान से बच सकते हैं। इस कारण ट्रेडिंग करते समय STOP LOSS का उपयोग करके हम हमारे कैपिटल को होने वाले जादा से जादा नुकसान से सुरक्षित कर सकते हैं।

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ट्रेडिंग करते समय STOP LOSS कैसे लगाए ?

अक्सर शेयर मार्केट में जो नए लोग आते हैं उन्हें एक तो स्टॉप लॉस क्या होता हैं ? ये पता नही होता..और जिन्हे पता भी हो तो ओ ट्रेड लेते समय स्टॉप लॉस लगाना जरूरी नहीं समझते। इसका परीणाम स्वरूप वो अपना पूरा CAPITAL ( पैसा )  शेयर मार्केट में खत्म कर बैठते हैं।

शेयर मार्केट में काम करते हुए स्टॉप लॉस कितना जरूरी है ये ओ लोग अच्छे से समझेंगे की..जिनका पूरा कैपिटल STOP LOSS ना लगाने के कारण खतम हो गया होगा।

अब हम समझते हैं की STOP LOSS कैसे लगाए.? STOP LOSS कुछ नियम और पद्धति के अनुसार लगाना सही होता हैं। आम तौर पर प्रमुख 3 प्रकार से स्टॉप लॉस लगाया जाता हैं।

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ऐसी स्थिति में स्टॉप लॉस न लगाया होता तो बड़ा नुसाकन हो सकता था.. 
  • PROFIT-LOSS RATIO के अनुसार :- शेयर मार्केट में INTRADAY TRADING और SHORT TERM में काम करने वाले जादा तर Traders लोग इसी पद्धति का उपयोग करते हैं। मतलब यह है की आपको ट्रेडिंग करते समय प्रॉफिट और लॉस का फार्मूला अपने मांइड में सुनिश्चित करना होगा।जैसे की आपको हर एक ट्रेड में आपको किस RATIO में प्रॉफिट लॉस बुक करना हैं ये प्रमाण 1:1 ,1:2 ,1:3 या फिर 1:4 सुनिश्चित करना होगा। लेकिन फिर भी इसमें सबसे लोकप्रिय स्टॉप लॉस RATIO 1:1 और 1:2 ये माना जाता हैं। क्यूं कि प्रॉफिट बुकिंग के संभावना इसमें सबसे जादा होती हैं VOLATILE  MARKET में आपने सुनिश्चित किया हुआ टारगेट आपको आसानी से मिल सकता हैं। पर 1:3 और 1:4 इस RATIO में प्रॉफिट होने की संभावना थोड़ी कम हो जाती हैं। इसमें हर बार प्रॉफिट मिलना मुश्किल हो जाता हैं। क्यू की 1:3 और 1:4 RATIO में प्रॉफिट बुक होने के लिए मार्केट में बड़ी MOVE या रैली आनी जरूरी होती हैं जो मार्केट में कभी कभी ही आती हैं। तो हो सकता की आपको इस RATIO में आपको बार बार लॉस बुक करना पड़ सकता हैं। लेकिन जब प्रॉफिट होगा तो वो भी बहुत बड़ा हो सकता हैं।इस लिए शेयर मार्केट में 1:1 और 1:2 RATIO के हिसाब से STOP LOSS  लगाना सबसे सही तरीका माना जाता हैं । इसका कारण हैं की जब भी आपको लॉस होगा तो वो कम से कम मात्रा में होता हैं। इससेे आपका केपिटल बचाता हैं और आपका कैपिटल सुरक्षित रहने के कारण मार्केट में टिके रहे सकते हैं और आपकी प्रॉफिट की संभावना बढ़ती है।
  • SUPPORT & RASISTANCE के अनुसार:- इस पद्धति में SUPPORT-RASSISTANCE की लेवल के अनुसार स्टॉप लॉस लगाया जाता हैं। SL लगाने का ये भी एक आसान सा तरीका हैं । इंट्राडे, शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म में काम करने वाले सभी ट्रेडर्स इस पद्धति का उपयोग कर सकते हैं। यहां पर कोई calculation करणे की जरुरत नहीं होती। आप सिर्फ टेक्निकल चार्ट में सपोर्ट और रेसिस्टेंस लेवल देख कर SL लगा सकते हैं। लेकिन इस तरीके में एक समस्या होती हैं की सपोर्ट और रेसिस्टेंस की लेवल अनुसार SL बड़ा निकल सकता हैं। जिनका कैपिटल स्मॉल हैं वो ट्रेडर्स को इस तरीके से SL लगायेंगे तो उन्हे बड़ी मात्रा में लॉस सहना होगा। विषेश रूप से ये प्रणाली शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म में काम करने वाले पोजिशनल ट्रेडर्स के लिए जादा उपयुक्त होती हैं।
  • CHART & CANDEL PATTERN के अनुसार:- आपको अगर टेक्निकल चार्ट रीडिंग का अच्छा knowledge हैं तो आप चार्ट पर CANDEL STICK या HEIKIN ASHI कैंडल पेटर्न को सेट करके SL लगा सकते हैं। मतलब आपको जहा से ट्रेड पोजीशन लेनी हैं उसके पहेली आने वाली उससे बड़ी कैंडल का HIGH- LOW मार्क करना होगा..मान लीजिए आपने चार्ट पर जो टाइम फ्रेम सेट किया हैं उस टाइम फ्रेम मे जिस कैंडल से आपको BUY की पोजशन लेनी हैं तो उस कैंडल से पहले आने वाली उससे बड़ी कैंडल का  LOW मार्क करके LOW से नीचे की साइड कुछ पॉइंट्स का बफर (अंतर) छोड़ कर स्टॉप लॉस सेट करना होगा।मगर SELL पोजीशन लेने के लिए आपको इस से उल्टा करना होगा।आपने चार्ट पर जो टाइम फ्रेम सेट किया हैं उस टाइम फ्रेम मे जिस कैंडल से आपको SELL की पोजीशन लेनी हैं तो उस कैंडल से पहले आने वाली उससे बड़ी कैंडल का HIGH को मार्क करके HIGH से उपर की साइड कुछ पॉइंट्स बफर (अंतर) छोड़ कर स्टॉप लॉस सेट करना होगा।लेकिन एक जरूरी बात आप चार्ट पर जितना बड़ा टाइम फ्रेम सेट करोगे उतना ही आपका SL और TARGET बड़ा होगा। इस लिए बेहतर हैं की अगर आपका केपिटल स्मॉल हैं तो छोटे टाइम फ्रेम में ही काम करे।

STOP LOSS के फायदे और नुकसान क्या हैं ?

अगर आप एक सकारात्मक सोच रखेंगे तो आप को ट्रेडिंग में  स्टॉप लॉस एक BEST FRIEND लग सकता हैं। मगर जो लोग मार्केट में नए नए आते है उन्हे लगता हैं की स्टॉप लॉस से नुकसान होता हैं इस लिए वो स्टॉप लगाना उचित नहीं समझते और बड़ी गलती कर बैठते हैं। चलो हम सबसे पहले STOP LOSS के फायदे क्या हैं ये समझते हैं।

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STOP LOSS के क्या फायदे हैं?

स्टॉप लॉस कितना महत्वपूर्ण हैं ये सिर्फ वहीं लोग अच्छी तरह जानते हैं की जिन्होंने स्टॉप लॉस ना लगाने से अपना पूरा CAPTITAL अपने आंखों के सामने खतम होते देख लिया और अपना सारा कैपिटल लॉस कर दिया। अगर आप एक सकारात्मक विचार से सोचेंगे तो स्टॉप लॉस हमेशा हमारे केपिटल को होने वाले जादा नुकसान से सुरक्षित राखता हैं..इस लिए हम TRADERS के लिए स्टॉप लॉस एक अच्छे FRIEND की तरह काम करता हैं।

STOP LOSS
ऐसी स्थिती में हम छोटा स्टॉप लॉस सेट करके अच्छा प्रॉफिट बुक कर सकते हैं ये स्टॉप लॉस सेट करने का सही तरीका होता हैं।

क्यू की कई बार ऐसा होता हैं की..आपकी कोई मार्केट में पोजिशन होती हैं और मार्केट के संदर्भ में कोई POSITIVE या NIGETIVE न्यूज आती हैं तो अगर मार्केट आपके प्रिडिक्शन के खिलाफ़ जाता हैं और उस स्थिति में आपने स्टॉप लॉस ना लगाया हो तो आप को बहुत बड़ा नुकसान हो सकता हैं। ऐसे नुकसान से बचने हेतु ही स्टॉप लॉस का उपयोग करना होता हैं। ताकि हम एक बड़े नुकसान से बचे और एक सीमित मात्रा में लॉस बुक करके आप उस पोजिशन से बाहर निकल जाए। और आपका केपिटल सेफ रहे।

क्यू की आपका केपिटल अगर बचेगा तो ही आप अगला ट्रेड कर सकते हो। मतलब आपने स्टॉप लॉस नही लगाया तो ये कहना मुुश्किल हैं की शायद मार्केट आपको पिछले लॉस को रिकवर करने का मोका देगा भी या नहीं । इस लिए बड़े नुकसान से बचने के लिए STOP LOSS लगाके ट्रेड करना हमारे लिए सबसे फायदेमंद और सर्वोत्तम उपाय हैं।

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STOP LOSS के नुकसान क्या हैं ?

वैसे देखा जाए तो स्टॉप लॉस के साथ ट्रेडिंग होगी तो कैपिटल हमेशा सुरक्षित रहेगा और आपका कैपिटल बचाता हैं तो ही आप मार्केट में टिके रहेंगे। लेकिन जो लोग मार्केट में नए नए आए हैं और उन्हें ट्रेडिंग का कोई विशेष अनुभव नहीं हैं वो STOP LOSS लगाकर ट्रेड करना उचित नहीं समझते क्यू की मार्केट से हम प्रॉफिट ही करने आए हैं ये सोच होती हैं नए लोगो की।

लेकिन हा कभी कभी एक निगेटिव पॉइंट भी देखने में आता हैं। जो हम सब ने अपने ट्रेडिंग journey मे face किया होगा। एखादबार ऐसा होता हैं की हमारी कोई पोजिशन चल रही होती हैं । हमने सही सही स्टॉप लॉस भी सेट किया होता हैं तब मार्केट में ऐसी मूवमेंट आती हैं की हमारा स्टॉप लॉस हीट हो जाता हैं और हमे लॉस देकर मार्केट उस पोजिशन से बाहर निकाल देता हैं। उसके बाद फिर से कुछ ही देर में मार्केट जहा हमने प्रॉफिट टारगेट लगाया था उससे आगे निकल जाता हैं। इस स्थिति में हमे बहुत बुरा लगता हैं और हम ये सोचते हैं की काश मैंने स्टॉप लॉस ना लगाया होता तो अब मेरा प्रॉफिट बुक हुआ होता। इस कारण कुछ लोग SL नहीं लगाते।

मगर ये बहुत ही गलत सोच हैं क्यू की ऐसी स्थिति बार बार नहीं आती एखाद बार ऐसा हो सकता हैं लेकिन हमेशा स्टॉप लॉस लगाकर ट्रेडिंग होगी तो SL हमें होने वाले बड़े लॉस से बार बार बचाते रहेगा। मार्केट ऐसे ही चलता हैं..स्टॉप लॉस के बिना ट्रेडिंग करना मतलब अपने केपिटल को खुद खतम करने की संभावना को बढ़ावा देना ये हैं।

आपने इस लेख से क्या सीखा..?

इस तरह से हमने STOP LOSS के बारे में सविस्तर रूप में जानकारी देने की कोशिश की हैं। हम ये मान के चलते हैं की आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी का आपके ट्रेडिंग जर्नी में बेहद उपयोग होगा। और हमे आशा हैं की ये लेख आपको अच्छा और जानकारी पुर्ण लगा होगा..आपको हमे कोई सुझाव देना हो तो कृपया कमेंट्स में लिखिए।

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SHARE MARKET MEIN INVESTMENT KAISE KARE ? IN HINDI 2022

INVESTMENT

SHARE MARKET से अगर आप पैसे कमाना चाहते हो तो आपको SHARE MARKET में कैसे INVESTMENT करे? ये समझना जरूरी होगा। आपने अगर DEMAT ACCOUNT खोला हैं तो शेयर बाजार में पैसे निवेश करना अब बहुत आसान हो गया हैं। लेकीन नए लोगो के लिए बस एक मुश्किल होती हैं की कोनसे स्टॉक में INVESTMENT करे ? जिनके पास इस SHARE MARKET में INVESTMENT करने का सही KNOWLEDGE हैं ओ यहां आसानी से पैसे कमा सकते हैं।

INVESTMENT

SHARE MARKET में दो प्रकार के INVESTER होते है। जो अपने पैसे SHARE MARKET मे कम या अधीक समय के लिये INVESTMET करके पैसा कमाते हैं। आज हम SHORT TERM INVESTER और LONG TERM INVESTER मे क्या फरक होता हैं ये समझेंगे।

SHORT TERM INVESTMENT :- जो इन्वेस्टर अपने पैसे को SHARE MARKET में एक दिन से जादा और जादा से जादा एक साल से कम समय तक किसी STOCK मे INVEST करते हैं। और मुनाफा बनाते हैं । इनको हम SHORT TERM INVESTER कहते हैं।

LONG TERM INVESTMENT :- जो इन्वेस्टर अपने पैसे को SHARE MARKET में एक साल से जादा समय तक किसी STOCK मे INVEST करते हैं। और अक्सर अच्छा मुनाफा बनाते हैं । इनको हम LONG TERM INVESTER कहते हैं।

जितने समय तक हम अपने पैसे SHARE MARKET मे INVEST करते हैं उस पर PROFIT/LOSS डिपेंड होता हैं। लेकिन समय के साथ साथ कुछ और बातें भी मार्केट से प्रॉफिट करने के लिए जरूरी होती हैं।

आपको अपने पैसे किसी STOCK के शेयर मे INVESTMENT करने से पहले आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।

FUNDAMENTAL:- आपको किसी भी स्टॉक के शेयर में निवेश करने से पहले उस कंपनी का फंडामेंटल देखना बेहत जरूरी होता हैं। जिसके के शेयर में आप अपने पैसे INVEST करने वाले हो। FUNDAMENTAL मतलब उस स्टॉक की COMPANY की आर्थिक स्थिति कैसी हैं। उस कंपनी पर कोई कर्जा हैं या नहीं? अगर कर्जा हैं भी तो उस COMPANY के पास FREE CASH कितनी AVAILABLE हैं। उनके पास INVENTORY कितनी हैं।

भविष्य में कंपनी की GROWTH और DEMAND कैसी रहेगी। कंपनी अपने शेयर होल्डर को कितना DIVIDENT देती हैं? और हर साल में कितने प्रतिषत का RETURNS इन्वेस्टर को मिल रहा हैं.. आदि बाते देख कर इस स्टॉक में INVESTMENT करे।

MARKET STUDY & RESEARCH:-
आपको मार्केट में निवेश करने से पहले खुद उस कंपनी के बारे में जानना होगा। किसी के कहने पर या ADVISE पर अपने पैसे INVEST करना बिलकुल ही गलत हैं। फंडामेंटल & टेक्नीकल एनालिसिस करके दोनो के कंफ्रमेशन के बाद ही शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट करे।

INVESTMENT

STOCK PRICE:- जिस स्टॉक में आप निवेश करना चाहते हो इस स्टॉक का आपको HIGH & LOW पता होना चाहिए। HIGH-LOW जानें बिना आपकी BUYING HIGH PRICE पे होगी तो आपको लॉस भी हो सकता हैं। शेयर मार्केट में STOCK PRICE मे उतार -चढ़ाव होते रहते हैं। इसलिए याद रहे की आपको खरीदारी हमेशा कम भाव में करनी चाहिए। इस पर ही आपका PROFIT & LOSS डिपेंड होता हैं। और मिनिमम राशि से शुरुआत करना बहुत जरूरी हैं। क्यू की जैसे-जैसे आपका शेयर मार्केट मे नॉलेज बढ़ेगा उस हिसाब से आपको थोड़ा थोड़ा अमाउंट जब कम भाव पर किसी अच्छे STOCK के शेयर मिल रहें हो तो इन्वेस्ट करना हैं।

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शेयर मार्केट मे कैसे डीमेट अकाउंट ओपन करके पैसे कमाऐ ?

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SURPLUS FUND:- एक सबसे महत्त्वपूर्ण बात की आपको SHARE MARKET मे INVESTMENT करने के लिए सिर्फ SURPLUS FUND ही USE करना हैं। SURPLUS FUND मतलब आपकी सैलरी या इनकम में से आपकी सबसे महत्त्वपूर्ण जरूरतों पर खर्चा करके जो पैसा बचाता हैं उन पैसों को ही INVEST करे। कर्जा लेकर या किसी से उधार लेकर मार्केट में बिलकुल भी निवेश ना करे। क्यू की मार्केट में नफा-नुकसान सुनिश्चित नही होता कभी लॉस हो जाए तो आप के लिए मुश्किल हो सकती हैं।

EMOTIONS:- शेयर बाजार मे ट्रेडर हो या इन्वेस्टर इनको लॉस होने का एक बड़ा कारण हैं EMOTIONS कंट्रोल न होना। जब STOCK का PRICE गिर रहा हो तो ऐसे हालात में कुछ लोग जल्दबाजी में अपनी पोजीशन LOSS मे काट लेते हैं। और बाद में वही स्टोक का PRICE बढ़ जाता हैं। ऐसा बहुत बार होता हैं। क्यू की किसी इंटर नेशनल गतिविधियों के कारण या कोई तत्कालीन विषय के कारण शेयर मार्केट में बड़ी गिरावट या मंदी आ सकती हैं। शेयर बाज़ार में जब मंदी आती हैं तब सभी स्टॉक के भाव गिरते हैं।

लेकिन जिनका फंडामेंटल STRONG होता हैं उस STOCK के PRICE कम समय में RECOVER हों जाते हैं। लेकिन जिस कंपनी के फंडामेंटल मे कोई PROBLEM होता हैं वो स्टॉक्स के PRICE जल्दी से RECOVER नहीं होते। कुछ तो घटते ही जाते हैं। ऐसे STOCKS कम दाम में मिल रहे इस लिए जल्दबाजी में खरीदना गलत हो सकता हैं। इस कारण सब से अच्छा तरीका ये हैं की ‘NIFTY 50’ में LISTED STOCKS मे ही इन्वेस्टमेंट करे। PENNY STOCKS से दूर रहे। PENNY STOCKS मतलब जिन कंपनी का MARKET CAP बहुत ही कम हैं या उस स्टॉक का प्राइस गिर कर बहुत कम हो गया हो। ऐसे STOCKS से हमेशा दूर रहे।

इस तरह आपको उपर निर्देशीत की गई सभी बातों की समीक्षा करके ही शेयर मार्केट मे इन्वेस्टमेंट करना हैं।


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इस लेख में आपने क्या सिखा ?

यह पोस्ट पढ़कर आप ये अच्छे से समझ गए होगें की SHARE MARKET मे कैसे INVESTMENT करे ? हमे शेयर बाजार में निवेश करने से पहले कोन कोनसी बातों का ध्यान रखना चाहिए। जिस स्टोक्स में हम इन्वेस्ट करने जा रहे हैं वो फंडामेंटली मजबूत हो। हर साल वो कंपनी अच्छा RETUNS और DIVIDEND देती हो। हमे मिडकैप या लार्ज कैप COMPANY मे ही इन्वेस्ट करना हैं। PENNY STOCKS से हमेशा दूर रहे। मुझे लगता हैं की मेरे इस पोस्ट से आपको जरूर कुछ अच्छा सीखने को मिला होगा। अगर मेरे लेख में आपको कोई अच्छी बाते लगती हैं। या आप हमे कोई सुझाव देना चाहते हो तो PLEASE COMENTS में लिखिए।

THANK TOU…

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