शेयर मार्केट में SCALPING TRADING ए क ऐसी ट्रेडिंग स्ट्रेटजी हैं की जिसका प्रयोग करके स्कॅल्पर मार्केट से अच्छे प्रॉफिट कमाते हैं। इस लिए SCALPING TRADING क्या हैं और उसका ट्रेडिंग में कैसे प्रयोग करे? ये बात हम यहां पर समझेंगे।

अब हम विस्तृत रूप में समझेंगे की स्काल्पिंग स्ट्रेटजी क्या होती हैं और ट्रेडिंग में उसका कैसे प्रयोग करते हैं।
SCALPING TRADING क्या है ?
ये एक अल्प समय ट्रेडिंग स्ट्रेटजी होती हैं। इसमें 1 से 5 मिनिट के अंदर ही ट्रेड स्क्वेयर ऑफ किया जाता हैं। इस में स्टॉक की ज्यादा क्वांटिटी लेकर कम कीमत पर BUY करना और अधिक कीमत पर SELL करना होता हैं।ऐसे ट्रेड दिन में बार बार लेकर शेयर मार्केट से प्रॉफिट निकालना। इस तरह से कीए जाने वाले ट्रेडिंग स्ट्रेटजी को स्कॉल्पिंग ट्रेडिंग कहते हैं।
इस प्रकार की ट्रेंडिंग स्ट्रेटजी में 1 से लगभग 5 मिनिट के अंदर आपने ट्रेडिंग के लिए जो स्टॉक चुने हुए हैं। उस स्टॉक की क़ीमत में होने वाले उतार चढ़ाव का फायदा उठाना होता हैं। इसमें स्टॉक की LOW प्राइस पर छोटा स्टॉप लॉस लगाकर छोटे प्रॉफिट के लिए खरीदना और स्टॉक के HIGH प्राइस पर छोटा स्टॉपलॉस लगाकर छोटे प्रॉफिट के लिए बेचना होता हैं। ऐसा करके दिन में कई बार ट्रेडिंग करके छोटे छोटे प्रॉफिट बुक करते रहना। इस प्रकार की ट्रेंडिंग को SCALPING TRADING कहते हैं।

लेकिन इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में आपको छोटा स्टॉपलॉस और छोटा प्रॉफिट ही सेट करके ट्रेड करना होगा। आप प्रॉफिट और लॉस का प्रमाण 1:2 से लेकर 1:3 तक रख सकते हैं। ऐसे में आपको लॉस हुआ तो छोटा होगा और प्रॉफिट हुआ तो भी छोटा होगा। स्कॅलपर ज्यादा क्वांटिटी लेकर ज्यादा ट्रेड करते हैं। इस लिए उन्हें लॉस की तुलना में प्रॉफिट ज्यादा होता हैं। इसमें स्कॅल्पर लगभग 10 सेकंड से लेकर 5 मिनिट के अंदर अपना ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ कर देते हैं। लेकिन वो अपने ट्रेड बढ़ाते हैं। स्कॅलपर एक दिन मे ज्यादा क्वांटिटी के साथ कम से कम 10 से 50 बार तक ट्रेड लेते हैं। इस लिए वो बहुत तेजी से ट्रेड ऑर्डर प्लेस और स्क्वेयर ऑफ करते हैं।और छोटे छोटे प्रॉफिट मार्केट से निकालते रहते हैं।
SCALPING TRADING कैसे करें ये समझने से पहले उसके क्या नियम होते हैं इसके हैं ये समझते हैं।
SCALPING TRADING के RULE क्या हैं ?
- HIGH VOLATILE STOCK :– स्कॉल्पिंग ट्रेडिंग के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता हैं HIGH VOLATILE स्टॉक का चयन करना। क्यू की यहां अति अल्प समय में अपना ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ करना जरूरी होता हैं। चुने हुए स्टॉक के प्राइस में अच्छी मूवमेंट होगी तो ही अल्प समय में ट्रेड पूरा होगा। और कम समय में ही टारगेट और स्टॉप लॉस बुक होगा। इस लिए यहां पर HIGH VOLATILE स्टॉक को चुनना जरूरी होता हैं।
- TRADING STRATEGY: – स्काल्पिंग करने से पहले कोई एक उत्तम स्ट्रेटजी सुनिश्चित करना जरूरी होता हैं। जिसकी एक्युरेसी कम से कम 70-80% तो जरूर होनी चाहिए। क्यू की स्ट्रेटजी की एक्यूरेसी अच्छी होगी तो आपके स्टॉप लॉस कम जाएंगे और आपकी प्रॉफिट बुकिंग ज्यादा होगी। इस कारण जिसकी एक्यूरेसी अधिक निकलती हैं ऐसी ही स्ट्रेटजी का स्काल्पिंग में उपयोग करे।
- TIME FRAME :- इस प्रकार की ट्रेडिंग में टाइम फ़्रेम का बहुत बड़ा रोल होता हैं। क्यू की टेक्निकल चार्ट पर छोटा टाइम सेट करेंगे तो छोटे प्रॉफिट के लिए छोटा स्टॉपलॉस रखकर ट्रेड मिलना आसान हो जाता हैं। यहां पर छोटा टाइम ही सेट करना आवश्यक होता हैं। बड़ा टाइम सेट करेंगे तो स्टॉपलॉस भी बड़े निकल सकते हैं। इस लिए टेक्निकल चार्ट पे कम समय का ही टाइम सेट करके ट्रेंडिंग के लिए मौका ढूंढने का प्रयास करे।
- STOCK QUANTITY:- स्काल्पिंग करने के लिए अधिक कैपिटल की जरूरत होती हैं। इसमें प्रॉफिट-लॉस का प्रमाण भले ही छोटा रखा जाता हैं। लेकिन बड़े ट्रेडर अधिक मात्रा में स्टॉक क्वांटिटी लेकर ट्रेड करते हैं। इस लिए अगर स्टॉप लॉस हिट हो जाए तो होने वाला लॉस अपनी लॉस सहने की क्षमता से अधिक ना हो इसका विचार करके ही अपनी क्षमता के अनुसार क्वांटिटी लेकर ट्रेडिंग करे। क्यू की अधिक मात्रा में क्वांटिटी होगी तो लॉस भी बड़ा हो सकता हैं। तो इस बात का जरूर ध्यान रखे।
- PROFIT & LOSS RATIO:- इस तकनीक से ट्रेडिंग करते समय आपको टारगेट और स्टॉपलॉस का एक उचित प्रमाण सेट करना जरूरी होता हैं।आपको हर एक ट्रेड में प्रॉफिट और लॉस रेश्यो 1:2 या 1:3 तक ही रखना सही होता हैं। इस से अधिक प्रॉफिट टारगेट बिल्कुल भी सेट ना करे। हर ट्रेड में यही प्रॉफिट-लॉस प्रमाण सेट करके ट्रेड करे।
- EMOTIONLESS TRADING:- इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी के अनुसार हमारा हर एक ट्रेड अति अल्प समय में स्क्वेयर ऑफ होना आवश्यक होता हैं।इस लिए हमने जो प्रॉफिट लॉस का फॉर्म्युला सुनिश्चित किया होता हैं।उसके अनुसार लॉस बुक करना ये भी एक इस स्ट्रेटजी का हिस्सा होता हैं। यदि आप ऐसी स्थिति में इमोशन में आकर हो रहे छोटे लॉस को बुक ना करेंगे तो बड़ा लॉस भी हो सकता हैं। और अगर प्रॉफिट हो रहा हो तब ज्यादा बड़े प्रॉफिट के लिए अड़े रहना इस कारण भी बाद में बड़ा नुकसान हो सकता है। इस लिए इमोशनलेस (भावना विरहित) ट्रेडिंग करे। और लालच से दूर रहे।
इस तरह से ऊपर बताए गए नियमों का सक्ति के साथ पालन करके आप इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का उपयोग करके ट्रेडिंग कर सकते हो। अब हम समझते हैं की SCALPING TRADING कैसे करें ?
SCALPING TRADING कैसे करते हैं ?
इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में बहुत ही जल्द गति से ट्रेडिंग करनी होती हैं। इस कारण स्कॅलपर अपने अपने हिसाब से ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का उपयोग करते हैं। जैसे की टेक्निकल चार्ट पर कँडेल स्टिक पॅटर्न या फिर कूछ चार्ट इंडिकेटर का स्कॅलपर ट्रेडिंग करते समय उपयोग करते हैं। ट्रेडिंग के लिए चुने हुए स्टॉक के प्राइज में हो रही VOLATILITY का फायदा उठाकर ट्रेड लिए जाते हैं।

स्टॉक प्राइस में हो रहें उतार चढ़ाव को समझकर स्टॉक प्राइस जब SUPPORT के उपर जाने की कोशिश कर रहा होता हैं तब वहा से छोटा स्टॉपलॉस लगाकर कम कीमत में खरीदना और उसी प्रकार से स्टॉक प्राइस RASISTANCE के नीचे जाने की कोशिश कर रहा होता हैं तब वहा से तुरंत छोटा स्टॉपलॉस लगाकर स्टॉक को अधिक कीमत पर बेचना। इस प्रकार से छोटे छोटे प्रॉफिट के बनाने हेतु बार बार ट्रेड लेकर प्रॉफिट बनाते रहना इस प्रकार की ट्रेडिंग तकनीक को स्काल्पिंग ट्रेडिंग कहते हैं।
BEST SCALPING TRADING STRATEGIES कोनसी हैं
शेयर मार्केट में ऐसे बहुत तरीके हैं जिसका उपयोग करके SCALPING TRADING की जाती हैं। उसमे से कुछ अच्छी और ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली स्ट्रेटजी कोनसी हैं इसकी हम यहां जानकारी लेंगे।

- EXPONENTIAL MOVING AVERAGE ( EMA) :- इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी अनुसार टेक्निकल चार्ट पर 1 मिनिट से 5 मिनिट तक का टाइम फ्रेम सेट करना जरूरी होता है। आपको टेक्निकल चार्ट पर 5 DAYS या 10 DAYS का EMA सेट करना होता हैं। और चार्ट पर SIMPLE CANDLESTICK ही सेट करनी होती है।जब स्टॉक प्राइज EMA का सपोर्ट लेकर अप साइड जाने लगती हैं तब वहा से छोटा स्टॉपलॉस लगाकर BUY की पोजिशन लेनी हैं।और जब स्टॉक का प्राइस EMA को रेसिस्टेंस बनाकर नीचे की साइड जाने की कोशिश करता हैं तो वहां से छोटा स्टॉपलॉस लगाकर SELL की पॉजिशन लेनी हैं।आपको चुने हुए स्टॉक की क़ीमत में होने वाले उतार चढ़ाव का फायदा उठाकर ट्रेडिंग करनी हैं। इस प्रकार से टेक्निकल चार्ट पर EMA का उपयोग करके स्काल्पिंग की जाती हैं। मार्केट चाहे साइडवेज हो या ट्रेंडिंग हो फिर भी स्कॅलपर इस स्ट्रेटजी का प्रयोग करके शेयर मार्केट से प्रॉफिट कमाते हैं। लेकिन ध्यान रहे इस स्ट्रेटजी में स्टॉपलॉस और टारगेट STRICTLY सेट करके ही ट्रेडिंग करनी होगी। इस तरह ये सबसे आसान और लोकप्रिय स्काल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी भी मानी जाती हैं।
- SUPPORT & RASISTANCE :- सपोर्ट और रेजिस्टेंस का स्काल्पिंग ट्रेडिंग में उपयोग करके भी स्काल्पिंग ट्रेडिंग आसान हो जाती हैं। इस का प्रयोग करने के लिए आपको टेक्निकल चार्ट पर PIVOT POINT इस इंडिकेटर को सेट करना हैं। इस इंडिकेटर द्वारा आपको ऑटोमेटिकली लेवल मिल जाते हैं। इस से हमे सपोर्ट और रेसिस्टेंस का पता लग जाता हैं। इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी का ट्रेडिंग में प्रयोग करने से पहले आपको डबल कन्फर्मेशन के लिए 10 Days का EMA भी चार्ट पर लगाना हैं। ध्यान रहे आपको हमेशा EMA का ट्रेंड अप साइड हैं या डाउन साइड ये समझकर ही ट्रेड पोजिशन लेनी हैं। और फिर आपने चुने हुए स्टॉक का प्राइस नीचे की साइड सपोर्ट लेकर फिर से ऊपर की साइड मूव करने लगता हैं तो आपको तुरंत वहा से छोटा स्टॉपलॉस लगाकर BUY की पॉजिशन लेनी हैं। और इसी तरह जब स्टॉक प्राइस उपर की साईड रेजिस्टेंस लेवल तक जाकर फिर से नीचे की साइड मूव करने लगता है तो आपको वहा से तुरंत छोटा स्टॉपलॉस लगाकर SELL पोजिशन लेनी हैं। इसमें आपका स्टॉपलॉस और टारगेट रेश्यो उपर बताए गए नियम अनुसार ही होना चाहिए। इस तरह सपोर्ट और रेसिस्टेंस का प्रयोग करके SCALPING कर सकते हैं।
- BOLINGER BAND :– बोलिंगर बैंड ये एक टेक्निकल चार्ट इंडिकेटर हैं। इसके प्रयोगसे भी स्काल्पिंग आसान तरीकेसे की जा सकती हैं। ये भी एक अच्छा और सटिक तरीका माना जाता हैं। इस में आपको टेक्निकल चार्ट पर 5 मिनिट या उससे कम का टाइम सेट करके बॉलिंगर बैंड इस इंडीकेटर को लगाना होता हैं। इस इंडिकेटर से चार्ट पर सपोर्ट और रेजिस्टेंस की लेवल मिलती हैं। जब स्टॉक प्राइज रेसिस्टेंस तक जाकर फिर से नीचे की साइड जाने लगे तो वहा से ऊपर छोटा स्टॉपलॉस लगाकर आप SELL पोजिशन ले सकते हो। और इसी तरह स्टॉक प्राइस सपोर्ट से मुड़कर फिर से अप साइड जाने लगे तो वहा से सपोर्ट से नीचे छोटा स्टॉपलॉस लगाकर आप BUY की पोजिशन बना सकते हो। इस प्रकार से आप BOLINGER BAND को सेट करके ट्रेडिंग कर सकते हो। सिर्फ आपको टारगेट और स्टॉप लॉस का प्रमाण बताए गए नियम अनुसार ही रखकर ट्रेडिंग करना जरूरी हैं।

इस प्रकार की अनेक ट्रेडिंग स्ट्रेटजी हैं। जिसका टेक्निकल चार्ट पर उपयोग करके SCALPING TRADING आसान तरीके से की जाती हैं। लेकिन हमने यहां पर सिर्फ ऐसी स्ट्रेटजी को विस्तृत रूप में समझा हैं की जो सबसे आसान और अच्छी एक्योरेसी वाली स्ट्रेटजी हैं।
SCALPING TRADING EXAMPLE :-
अब हम मान लेते हैं की आपने जो स्टॉक को ट्रेडिंग के लिए चुना हैं उसकी क़ीमत 120 ₹ चल रही हैं। और आपने उस प्राइस पर 1000 QUANTITY ख़रीद ली। फिर उसके साथ ही आपने 119 ₹ पर 1 ₹ का स्टॉपलॉस लगा दिया। और 103 ₹ पर आपने 3 ₹ का टारगेट सेट कर दिया ऐसे में एक तो आपका स्टॉपलॉस हिट हो जाता हैं तो आपको 1000 ₹ का लॉस होगा और आपका अगर टारगेट हिट हो जाता हैं तो आपको 3000 ₹ का प्रॉफिट होगा। उसके बाद उस स्टॉक की प्राइस आपने जो प्रिडिक्शन किया था उस के अनुसार अगर 3₹ बढ़ जाती हैं। और आप तुरंत 3 ₹ प्रॉफिट पर आपकी पोजिशन स्क्वेयर ऑफ़ कर लेते हो। तो वहा पर आपको 1000 ₹ की जोखिम उठाने के बदले में 3000 ₹ का प्रोफिट हो जाता हैं। इस तरह स्कॅल्पर ट्रेडिंग करते हैं।
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अब हम यहां पर स्काल्पिंग ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान क्या हैं ये समझते हैं।
SCALPING TRADING STRATEGY के फायदे और नुकसान क्या हैं ?
फ़ायदे :-
इस रणनीती से ट्रेडिंग करने के फायदे अनेक होते हैं। यहां पर इस रणनीती का अर्थ ही कम समय में ट्रेड पूरा करके दिन भर में बार बार ट्रेडिंग करना होता हैं। इससे हमे शेयर मार्केट में हो रही मूवमेंट का बार बार लाभ मिल जाता हैं।
- TIME :- इस ट्रेडिंग प्रकार में अति अल्प समय में ट्रेड पूरा हो जाता हैं। यहां अधिक समय तक ट्रेड को होल्ड नहीं करना पड़ता।
- OPPORTUNITY :- इसमें बहूत कम समय में ही ट्रेड पोजिशन स्क्वेयर ऑफ की जाती हैं इस कारण शेयर मार्केट मे मिलने वाली ऑपर्युनिटी का लाभ आप बार बार उठा सकते हो।
- MARKET TREND :- इस स्टैटजी में मार्केट किसी भी ट्रेंड में चल रहा हो चाहे अप साइड हो या डाउन साइड हो या फिर साइड वेज चल रहा हो फिर भी आसानी से ट्रेडिंग की जा सकती हैं। क्यू की इस में टारगेट और स्टॉपलॉस छोटा सेट करके ही ट्रेड किए जाते हैं।
- PROFIT & LOSS :- इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में प्रॉफिट और लॉस का प्रमाण 1:2 और 1:3 इस प्रकार से रखकर ट्रेडिंग होती हैं। इस लिए स्टॉप लॉस हिट भी होगा तो छोटा लॉस होगा और प्रॉफिट रेश्यो अधिक होने के कारण ओवरऑल प्रॉफिट ही हो सकता हैं। इस से प्रॉफिट की संभावना बढ़ जाती हैं।
नुकसान:-
इस प्रकार की ट्रेडिंग रणनीति की कुछ कमियां या नुकसान दायक पहेलू भी हैं।
- BIG CAPITAL :- इस तकनीक से ट्रेडिंग करने के लिए सबसे बड़ी समस्या ये हैं की इसमें ट्रेडिंग के लिए बहुत ही बड़ा कैपीटल आवश्यक होता हैं। छोटा ट्रेडर चाहकर भी इस तकनिक से ट्रेडिंग नही कर पाता। इस प्रकार की ट्रेडिंग में ज्यादा क्वांटिटी के साथ ट्रेडिंग की जाती हैं। तो ये छोटे ट्रेडर के लिए आसान बात नहीं होती।
- BROKERAGE CHARGE :- इस ट्रेडिंग प्रकार में अधिक क्वांटिटी लेकर बार बार ट्रेड किए जाते हैं। दिन भर में कम से कम 10 से लेकर 50/60 बार ट्रेड होते हैं तो इस तरह ब्रोकर को ज्यादा ब्रोकरेज चार्ज भी देना पड़ता हैं। जो की ये भी बहुत बड़ा हो सकता हैं।
इस तरह हमने यहां पर स्काल्पिंग ट्रेडिंग के सभी फायदे और नुकसान को समझ लिया है।
निष्कर्ष :-
हमने यहां पर स्काल्पिंग ट्रेडिंग क्या होती हैं ? और स्काल्पिंग कैसे की जाती हैं? ये विस्तृत रूप में समझने की कोशिश की हैं। हमने ये भी समझा की इस ट्रेडिंग स्ट्रेटजी अनुसार ज्यादा क्वांटिटी लेकर छोटा स्टॉपलॉस और छोटा टारगेट सेट करके ट्रेडिंग होती हैं। और इस स्ट्रेटजी में हर एक ट्रेड अल्प समय में ही स्क्वेयर ऑफ किया जाता हैं। स्काल्पिंग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में ट्रेडिंग करने के लिए एक बहुत बड़े कैपिटल की आवश्यकता होती हैं। इस तरह से यहाँ हमने SCALPING TRADING के बारे में विस्तुत रूप में जानकारी देने का प्रयास किया हैं। ये सब जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित हो ये अपेक्षा करते हैं। आपको ये लेख कैसा लगा और यदि आप हमे कोई सुझाव देना चाहते हो तो कृपया कॉमेंट्स में लिखिए।
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